देश के सामने टू-जी इथेनॉल व बॉयो हाईड्रोजन की चुनौति
जैविक ईंधन पर दिया जा रहा जोर
* आज विश्व जैव ईंधन दिवस
अमरावती /दि.10- ईंधन पर होने वाला बेशुमार खर्च, अर्थव्यवस्था पर होने वाला परिणाम एवं प्रदूषण के खतरे को टालने हेतु पूरी दुनिया में विगत एक डेढ दशक से जैव ईंधन पर जोर दिया जा रहा है. वन-जी इथेनॉल का प्रयोग सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद अब टू-जी इथेनॉल व बॉयो हाईड्रोजन की चुनौति का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए देश पूरी तरह से तैयार है.
बता दें कि, केंद्र मंत्री नितिन गडकरी विगत 2 दशकों से जैव ईंधन को प्रयोग में लाए जाने हेतु प्रयासरत है तथा मोदी सरकार द्बारा भी जैव ईंधन को प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिसके चलते वर्ष 2018 में इसे लेकर राष्ट्रीय नीति घोषित हुई. जिसके तहत पेट्रोल में 10 फीसद इथेनॉल मिश्रीत करने और वर्ष 2023 तक इस का प्रमाण 20 फीसद करने का नियोजन किया गया था. वहीं अब वर्ष 2025 तक ही इथेनॉल के मिश्रण को 20 फीसद करने का प्रयास सरकार द्बारा किया जा जा रहा है. इसके लिए करीब 1 हजार लीटर इथेनॉल की जरुरत पडेगी. ऐसा अनुमान है. इथेनॉल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु इथेनॉल पर लगने वाले जीएसटी को 18 फीसद से घटाकर 5 फीसद कर दिया गया. वर्ष 2013-14 में इथेनॉल की आपूर्ति 38 करोड लीटर थी, जो वर्ष 2020-21 में बढकर 322 करोड लीटर हो गई. साथ ही इस दौरान इथेनॉल के मिश्रण को 1.53 फीसद से बढाकर 8.50 फीसद कर दिया गया. जिसके चलते इथेनॉल की आपूर्ति 215 करोड से बढकर दोगुना यानि 427 करोड लिटर हो गई. इसके अलावा देश में डिस्ट्रीलरी की संख्या भी 231 हो गई है. अलग-अलग कच्चे माल से तैयार होने वाले इथेनॉल के दाम भी सरकार द्बारा निश्चित किए गए है, जो पेट्रोल की तुलना में 35 से 40 रुपए से कम है.
बता दें कि, दवा एवं रासायनिक उद्योग के क्षेत्र में इथेनॉल का प्रयोग होता है और शक्कर कारखानोें में गन्ना गलाई से तैयार होने वाले अन्य उत्पादनों के साथ वन-जी इथेनॉल तैयार होता है. चूंकि गन्ना उगाने के लिए पानी का प्रयोग बडे पैमाने पर होता है. ऐसे में टू-जी इथेनॉल एक तरह से ‘वेस्ट टू वेल्थ’ की संकल्पना पर आधारित है. इसके तहत मक्का, सडा हुआ अनाज व कृषि माल से टू-जी इथेनॉल बनाने का प्रयास शुरु है. इस समय यद्यपि टू-जी का तंत्रज्ञान उपलब्ध है, लेकिन इसके बावजूद टू-जी इथेनॉल का उत्पादन करना काफी महंगा है. जो फिलहाल आर्थिक रुप से संभव नहीं है. सौर उर्जा की तरह टू-जी के प्रकल्प बढाने पर खर्च कम होगा, ऐसा माना जा रहा है. जिसके चलते इस इंधन के 3 से 4 प्रकल्प तैयार किए जा रहे है. तमाम तरह की कसौटियों पर वन-जी इथेनॉल के खरा साबित होेने पर टू-जी इथेनॉल के लिए कौशल्य की परीक्षा हो रही है. कच्चे तेल से तैयार होनेे वाले ईंधन की किमतों के अनुसार टू-जी इथेनॉल की कीमत रखनी पडेगी. ऐसा इस क्षेत्र के जानकारों का मानना है. साथ ही बताया गया है कि, टू-जी के लिए इआईएल व ऑइल इंडिया का आसाम स्थित नुमली गड व डीपीसीएम का ओडिशा में प्रकल्प आ रहा है. जहां पर रोजाना 1 लाख लीटर ईंधन उत्पादन की क्षमता के साथ काम किया जाएगा.