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अचलपुर को बेचने निकाला है पालिका प्रशासन ने

पालिका सीओ, नजूल विभाग, नगर रचना और इंजीनियर मिलकर बेच रहे नजूल लैंड

  •  राजस्व सचिव तथा जिलाधीश से की गई शिकायत

  • जुडवां शहर में सरकारी भूखंड का अवैध कारोबार

  •  नजूल विभाग अचलपुर में फेरफार का गोरखधंधा

परतवाडा/अचलपुर दि.4 – मार्च माह की 21 तारीख से शुरू हुए कडे लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए नगर पालिका अचलपुर के पदाधिकारियों सहित मुख्याधिकारी और संबंधित इंजीनियरों ने यदि कोई काम अत्यंत ईमानदारी से किया है, तो वो अचलपुर-परतवाडा स्थित नजूल भूखंडों को अवैध रूप से बेचने का. तत्कालीन सीओ अश्विनी वाघमले के जाते ही इस सरकारी भूखंडों की सौदेबाजी में अत्यंत तेजी भी देखने को मिली है. ताजा और शर्मनाक खबर यह कि सीओ राजेन्द्र फातले, भूमि अभिलेख (नजूल) विभाग, नगर रचनाकार पाटिल और कनिष्ठ अभियंता रमेश तायडे, शिवम देशमुख और पालिका बांधकाम विभाग के एक लिपिक ने मिलकर परतवाडा की हृदयस्थली कहलाते एक बडे सरकारी नजूल भूखंड को बेच डाला है. तत्कालीन सीओ अश्विनी वाघमले के जाते ही इस बडी डील को अंजाम दिया गया. सबसे बडी और काबिलेगौर बात यह है कि सन 2006 में स्वयं नगर पालिका प्रशासन ने इसी नजूल लैंड पर बसी करीब 15 दुकानों को अवैध और अतिक्रमण करार देते हुए बुलडोजर चलाकर नेस्तानाबूत कर दिया था. अब जून 2020 में कोरोना से पीडित हुए सीओ राजेन्द्र फातले और पालिका के नगर रचनाकार एंड कंपनी ने इस भूखंड को ही बेच दिया है. यह पूरा भूखंड नगर पालिका और नगर रचना विभाग की सूची में बाकायदा ‘फ्लड झोन’ की श्रेणी में भी रखा गया है. पालिका के अध्यक्ष से लेकर अन्य पदाधिकारियों के साथ ही सभी जिम्मेदार अधिकारियों ने इस नजूल भूखंड सौदे में जमकर मलाई खाने की चर्चा पालिका प्रांगण में इन दिनों सुनने को मिल रही है.
इस पूरे भूखंड भ्रष्टाचार को लेकर कडी कार्यवाही करने की लिखित शिकायत पालिका के सदस्य असलम वंजारा ने 18 अगस्त 2020 को मुख्याधिकारी से लिखित में शिकायत की थी. अपनी शिकायत पर ईमानदार मुख्याधिकारी कोई कठोर कार्रवाई जरूर करेंगे. यह सोचकर पार्षद असलम ने चार माह तक प्रतीक्षा की, लेकिन उनके हाथ ‘बाबाजी का ठुल्लू’ ही आया. इसी बीच अचलपुर शहर के एक तेजतर्रार कार्पोरेटर ने तो मुख्याधिकारी के कक्ष के सामने उक्त भूखंड को लेकर नग्न प्रदर्शन भी किया, किंतु उसका भी पालिका अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ था. पालिका प्रशासन से कोई सहयोग न मिलता देख हताश मेंबर वंजारा ने 18 दिसंबर को महसूल और वन विभाग के सचिव सहित जमाबंदी आयुक्त, संचालक भूमि अभिलेख पुणे, जिलाधीश अमरावती, उपसंचालक भूमि अभिलेख अमरावती और अधीक्षक भूमि अभिलेख अमरावती को इसकी विस्तृत लेखी शिकायत की है.
जुडवां शहर के नागरिको को याद ही होगा कि सन 2006 में नगर पालिका और नजूल विभाग अचलपुर ने एक संयुक्त अवैध निर्माण कार्य हटाओ अभियान चलाकर स्थानीय दुर्रानी चौक के सामने बिच्छन नदी के किनारे स्थित करीब 15 दुकानों पर बुलडोजर चलकर उन्हें ढहा दिया था. जिन दुकानों को गिराया गया था, उसमें पूर्व नगराध्यक्ष रम्मूसेठ अग्रवाल के भाई वेणीश्याम अग्रवाल के मालकी के श्रीराम ट्रैवल्स की तीन मंजिला इमारत का भी समावेश था. इसके अलावा अचलपुर नगर पालिका के तत्कालीन नगर अभियंता की मालकीवाली तीन दुकानों को भी ढहाया गया. बुलडोजर से प्रशासन ने दामोदर भोजनालय, राज रेडियोज, सुनील गारमेंट, दो किराणा दुकान, कन्हैया पान सेंटर, शंभु श्रीवास की सलून दुकान, एक फ्रेमिंग की दुकान और शम्भूदयाल व्यास की मिठाई की दुकान आदि सभी को धराशायी कर दिया गया था. श्रीराम ट्रैवल्स से लेकर बालाजी मंदिर संस्थान तक की सभी दुकानों को एक ही दिन, एक ही समय खाक में मिला दिया गया था. इस अवैध निर्माण को ढहाने की मुहिम के समय पालिका के तत्कालीन कनिष्ठ अभियंता ओम रामावत सहित दो कर्मी मलबे में भी दब गये थे.
तत्कालीन एसडीओ अरुण डोंगरे , सीओ गणेश देशमुख की अगुवाई में 2006 की यह अवैध निर्माण हटाओ कार्रवाई को अंजाम दिया गया था. सरकारी नजूल भूखंड पर किये गए अवैध निर्माण को ढहाने का चश्मदीद गवाह पूरा शहर रहा है. लेकिन अब इसी सरकारी नजूल भूखंड को बेचने की खुली दुकानदारी अचलपुर नगर पालिका के सभी वरिष्ठ अधिकारियों ने खोल रखी है. सीओ, नगर रचनाकार, इंजीनियर, अध्यक्ष और अन्य उनके चेले-चपाटे ग्राहक ढूंढ-ढूंढकर इस नझुल ले-आउट के प्लॉटों की बिक्री में लगे हुए है. नगर पालिका बांधकाम विभाग का लिपिक इसके लिए प्रोपर्टी ब्रोकर की भूमिका निभाने की जानकारी मिली है.

2005 के पीआर कार्ड की प्रॉपर्टी 2006 में ढहा दी गई

दुर्रानी चौक के सामने नदी किनारे स्थित नजूल शीट नंबर 20-ए प्लाट नंबर 13, क्षेत्रफल 127 चौरस मीटर, सत्ता प्रकार-डी, मूल मालक सरकार इस भूखंड के बारे में आरोप लगाते हुए कार्पोरेटर असलम वंजारा ने शिकायत की है कि कुछ वर्षों पूर्व नजूल सर्वेयर परतवाडा ने शासन की कोई भी अनुमति न लेते हुए गैरकानूनी ढंग से स्थायी पट्टे के उक्त भूखंड में से 252 चौ. फुट जगह भगवंतराव शिवाजी पाटिल परतवाडा के नाम पर चढा दी थी. उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र नंदू उर्फ नंदकुमार पाटिल के नाम फेरफार क्रमांक 2243 अंतर्गत उक्त जगह आवंटित कर दी गई. नंदू पाटिल ने रजिस्टर्ड खरीदी क्रमांक 1 दि. 6 जनवरी 95 को यही 252 चौरस फुट जगह सोमेश वेणीश्याम अग्रवाल को बेच दी थी. शासकीय खरीदीपत्र अनुसार उसी फेरफार क्रमांक पीआर कार्ड 2243 पर दिनांक 19 मार्च 2005 को सोमेश अग्रवाल का नाम दर्ज किया गया था. इसके बाद अग्रवाल ने इसी जगह पर अनाधिकृत रूप से आरसीसी का पक्का निर्माण कर तीन मंजिला इमारत का निर्माण किया था. इसी इमारत के माध्यम से ट्रैवल्स का व्यवसाय चलाया जाता था. तत्कालीन उपविभागीय अधिकारी (एसडीओ) अरुण डोंगरे ने उपरोक्त सभी फेरफार और खरीदी दस्तावेजों की विधिवत जांच-पडताल करने के बाद श्रीराम ट्रैवल्स की उक्त तीन मंजिला इमारत को 2006 में जमींदोज करने का आदेश दे दिया था. तीन मंजिला इमारत के साथ ही अन्य 15 व्यवसायिक पक्की दुकानों को भी नेस्तानाबूत कर दिया गया. इस अतिक्रमण अभियान के बाद खाली हुए इस पूरे भूखंड को नगर पालिका के सुपुर्द करने का आदेश भी एसडीओ ने दे दिया था. कुछ वर्षों तक यह पूरा भूखंड खाली ही रहा, लेकिन नपा प्रशासन ने इस जगह पर ध्यान देना भी जरूरी नही समझा. नगर पालिका ने यह भूखंड अपने ताबे में तो नही लिया, बल्कि इसके उलट अपने खास ग्राहकों को इसी खाली जगह पर अवैध बांधकाम करने की छूट दे दी. यह बांधकाम सिर्फ अवैध ना होकर एक प्रकार से नगर पालिका द्वारा अवैध रूप से शहर के सरकारी भूखंड को बेचने का आरोप पार्षद असलम वंजारा ने लगाया है. इस पूरे प्रकरण में नगर पालिका के साथ ही नजूल विभाग अचलपुर की मिलीभगत भी बताई जा रही.
नगर पालिका प्रशासन की मिलीभगत से सोमेश अग्रवाल ने इसी जगह पर पुन: अतिक्रमण कर 252 चौ फुट जगह पर ईट-सीमेंट और टिन शेड लगाकर दुकान का निर्माण किया. यही दुकान दिनांक 19 सितंबर 2019 को रजिस्ट्री दस्तावेज क्रमांक 3196 के जरिये राहुल अशोक जयस्वाल और अंकुश अशोक जयस्वाल को बेचने का आरोप असलम ने लगाया है. इस अतिक्रमित भूखंड दुकान की खरीदी के लिए कलेक्टर से किसी भी प्रकार की अनुमति भी नही ली गई. जयस्वाल नामक व्यक्ति द्वारा की गई खरीदी को पार्षद असलम वंजारा पूर्णत: गैरकानूनी बताते है. अब जयस्वाल ने स्थानीय नजूल सर्वेयर की सांठगांठ और वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह कर फेरफार करवा लिया. आज की तारीख में बोगस फेरफार के बल पर पीआर कार्ड (आखिव पत्रिका) पर जयस्वाल का नाम दर्ज किया जा चुका है.
पार्षद असलम ने अपनी शिकायत में लिखा है कि उक्त पूर्ण भूखंड यह सरकारी होकर उसका सत्ता प्रकार डी होने के कारण उसे स्थायी पट्टे पर लेने के लिए भी कलेक्टर की अनुमति लेना अतिआवश्यक होता है. लेकिन ऐसी कोई भी अनुमति न लेते हुए खरीदी व्यवहार और फेरफार भी कर दिया गया. नगर पालिका के सीओ और उनके इंजीनियर आँखों पर पट्टी बांधे धृतराष्ट्र होने का स्वांग कर रहे हैं. असलम ने मांग की है कि इस पूरे घोटाले में दोषी नजूल सर्वेयर, भूमि अभिलेख अधिकारी, नपा सीओ, इंजीनियर, नगर रचनाकार आदि के इस अवैध डीलिंग की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई कर यह फेरफार व खरीदी रद्द की जाए. अन्यथा जिन अन्य 14 दुकानदारों को सन 2006 में इसी ट्रैवल्स इमारत के साथ बेदखल और बेरोजगार कर दिया गया था, उन सभी को यहां पर दुकान लगाने की विधिवत अनुमति प्रदान करे. वर्ष 2006 की अवैध निर्माण हटाओ मोहिम से बेरोजगार हुये अन्य सभी 14 व्यवसायी परिवारों के प्रकरण आज भी नपा और नझुल के पास प्रलंबित पडे हैं.

विवादित भूखंड पर हुआ दुग्ध डेयरी का उदघाटन

जयस्वाल बंधुओ ने सोमेश से खरीदी दुकान पर अभी-अभी इसी लॉकडाउन पीरियड में बाकायदा एक उच्चश्रेणी की दुग्ध डेयरी का व्यवसाय भी शुरू किया है. बताते है कि जयस्वाल की इस डेयरी का उद्घाटन करने के लिए भी अघोषित रूप से नगर पालिका के सीओ और इंजीनियर ही पधारे थे. यह उद्घाटन भी लॉकडाउन के समय ही किया गया. कायदे से किसी व्यवसाय के लिए भी नगर परिषद के लाइसेंस विभाग की भी अनुमति लेना आवश्यक होता है. यह अनुमति भी नही ली गई है.

पीडितों ने भी की है शिकायत

वर्ष 2006 के समय जिन 15 दुकानदारों के अवैध निर्माण यहां से नेस्तनाबूत किये गए, उनके द्वारा भी नगर पालिका प्रशासन और नजूल में इस दुग्ध डेयरी के अवैध निर्माण व व्यवसाय की लिखित शिकायत किये जाने की पक्की जानकारी मिली है. इसमें से एक दामोदर भोजनालय के संचालक राजू पाटिल ने तो शिकायत के साथ ही कोर्ट में भी दावा दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई है. आज जिस जगह पर जयस्वाल की दुग्ध डेयरी है, सेम टू सेम उसी जगह पर वर्ष 2005 तक पाटिल का भोजनालय हुआ करता था. इसी प्रकार एक अन्य पीडित प्रल्हाद गिदवानी ने भी नपा और नजूल को लेकर शिकायत की. प्रल्हाद इसी जगह पर सुनील गारमेंट्स के नाम से रेडीमेड कपडे का व्यवसाय बरसों तक करते रहे. इसी प्रकार अनेक पीडित दुकानदारों द्वारा शिकायत किये जाने की भी जानकारी मिली है.

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