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एक ही थैली के चट्टे-बट्टे है मनपा में सभी

40 करोड के ‘पाप’ की ‘गंदगी’ से कोई अछूता नहीं

  •  कचरे व साफ-सफाई के ठेके में सभी के हाथ ‘गीले’

  •  अपने निकम्मेपन, नाकामी व लापरवाही को छिपाने की जा रही लिपापोती

  •  ‘मंडल’ के जनजागृति को बताया जा रहा चुनावी मुद्दा

अमरावती/प्रतिनिधि दि.30 – विगत एक सप्ताह से दैनिक अमरावती मंडल द्वारा अमरावती शहर में पांव पसारती डेंग्यू व चिकन गुनिया जैसी संक्रामक महामारियों के असर और संभावित कहर को देखते हुए समूचे शहर में जगह-जगह व्याप्त कचरे व गंदगी की समस्या तथा साफ-सफाई की व्यवस्था के अभाव को लेकर व्यापक जनहित के तहत समाचारों की श्रृंखला प्रकाशित की जा रही है, ताकि हालात में कुछ सुधार हो और शहर को कचरे व गंदगी की समस्या से निजात मिले. अपने इस अभियान में ‘मंडल’ ने किसी व्यक्ति विशेष अथवा पार्टी विशेष को न तो निशाना बनाया और न ही किसी का समर्थन किया. बल्कि हमने निष्पक्ष भाव से समूचे शहर में व्याप्त समस्या को जस का तस प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के सामने रखा. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि, प्रशासन व जनप्रतिनिधि इससे अनजान व अनभिज्ञ थे, लेकिन चूंकि इससे पहले इसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठ रही थी, तो सबकुछ ‘सुमडी’ में चल रहा था और ‘ऑलवेल’ दिखाने का प्रयास किया जा रहा था. लेकिन ‘मंडल’ की मुहिम शुरू होते ही अब कई राजनीतिक व सामाजिक संगठनों सहित विभिन्न प्रभागों के जागरूक नागरिकों द्वारा इसे लेकर आवाज उठाई जाने लगी है. जिसके चलते जहां एक ओर प्रशासन में जबर्दस्त हडकंप व्याप्त है, वहीं दूसरी ओर खुद को जनता का सबसे बडा हितैषी बतानेवाले जनप्रतिनिधियों के पांवतले से जमीन खिंसकी हुई है और अब इसी बदहवासी के आलम में कचरे एवं साफ-सफाई के मसले को लेकर उठनेवाली आवाजों को चुनावी मुद्दा तक बताया जा रहा है. जिसके तहत कहा जा रहा है कि, चूंकि आगामी वर्ष में महानगरपालिका के चुनाव होनेवाले है. ऐसे में जानबूझकर साफ-सफाई के मामले को हवा देते हुए मौजूदा जनप्रतिनिधियों के खिलाफ हवा बनाई जा रही है.
लेकिन यहां सबसे बडा सवाल यह है कि, अमरावती मनपा में भाजपा के 45, कांग्रेस के 15, एमआईएम के 10, शिवसेना के 7 नगरसेवक है. इसके अलावा बसपा, रिपाइं व युवा स्वाभिमान के भी पार्षद सदन में मौजूद है. क्या इन सभी नगरसेवकोें के प्रभागों में साफ-सफाई की व्यवस्था पूरी तरह से चुस्त-दुरूस्त है. क्या इनके प्रभागों में नियमित तौर से कचरा उठाया जाता है. क्या इनके प्रभागों में डेंग्यू व मलेरिया के मरीज नहीं है, क्या इनके प्रभागों में सफाई ठेकेदारों द्वारा पूरी इमानदारी के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाई जाती है और क्या ये सभी नगरसेवक खुद अपने प्रभागों की साफ-सफाई के मसले को लेकर वाकई गंभीर है. यदि इन सभी सवालों के जवाब ‘हां’ हैं, तब तो किसी भी प्रभाग में कचरे व गंदगी की समस्या ही नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन हकीकत यह है कि, आज शहर का एक भी ऐसा प्रभाग नहीं है, जो कचरे व गंदगी की समस्या से न जूझ रहा हो. जिसका सीधा मतलब है कि, हमारे द्वारा उठाये गये हर एक सवाल का जवाब ‘नहीं’ में है. ऐसे में दूसरा बडा सवाल पैदा होता है कि, अगर प्रभागों में साफ-सफाई करने और कचरा उठाने से संबंधित काम ही नहीं हो रहे है, तो इन कामों पर खर्च होनेवाली 40 से 50 करोड रूपये की निधी आखिर खर्च कहा हो रही है. जिसका सीधा जवाब यह है कि, साफ-सफाई एवं कचरे से संबंधित ठेकेदारों द्वारा फर्जी व झूठे बिल लगाकर मनपा की तिजोरी को 40-50 करोड रूपये से साफ किया जा रहा है और इस काम में मनपा के स्वच्छता विभाग के अधिकारियों सहित खुद नगरसेवकों की भी मिलीभगत है, जो अपने हाथ ‘गीले’ रहने की वजह से अपनी आंखों को मूंदकर बैठे हुए है. यहां यह याद दिलाया जाना बेहद लाजमी है कि, जब चंद्रकांत गुडेवार अमरावती के मनपा आयुक्त हुआ करते थे, तब वे रोजाना करीब दो से ढाई घंटे शहर के अलग-अलग इलाकों का दौरा करते हुए साफ-सफाई संबंधी कामों का जायजा लिया करते थे. किंतु चंद्रकांत गुडेवार के काम करने का ‘स्टाईल’ कुछ लोगों को रास नहीं आया और गुडेवार का अमरावती से तबादला कर दिया गया. जिसके बाद किसी भी आयुक्त ने साफ-सफाई को लेकर शहर की ‘प्रभातफेरी’ करने की जरूरत महसूस नहीं की. ऐसे में धीरे-धीरे साफ-सफाई ठेकेदारों ने अपने मनमर्जी के हिसाब से चलना शुरू कर दिया.
यहां यह भी याद दिलाया जा सकता है कि, इससे पहले अमरावती मनपा में कांग्रेस की सत्ता हुआ करती थी. तब भी हालात कोई विशेष साफ-सूथरे नहीं थे और तब भी मनपा आमसभा में केवल साफ-सफाई व कचरे के ठेके का ही मुद्दा उठा करता था तथा हकीकत में साफ-सफाई हो रही है अथवा नहीं, इसे लेकर कोई चर्चा नहीं होती थी. इसके पश्चात वर्ष 2017 में भाजपा की सत्ता आने के बाद भी वही ‘गंदगी’ बनी हुई है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, साफ-सफाई के मसले को लेकर क्या सत्तापक्ष और क्या विपक्ष सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे है और हर मामले को आरोप-प्रत्यारोप व राजनीतिकरण देकर अपनी चमडी और दामन को बचाने में माहीर भी है. कुछ ऐसा ही इस समय भी हो रहा है.
दैनिक अमरावती मंडल द्वारा विगत एक सप्ताह से कचरे व साफ-सफाई को लेकर एक अभियान की शक्ल में प्रकाशित की जा रही समाचारों की श्रृंखला के चलते शहर के लोग अब इस विषय को लेकर मुखर होने लगे है. साथ ही गत रोज मनसे व विदर्भ लहुजी सेना ने इस मामले को लेकर निगमायुक्त प्रशांत रोडे को ज्ञापन सौंपा. वहीं प्रहार जनशक्ति पार्टी व अमरावती विकास परिषद द्वारा पत्रवार्ता लेते हुए स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को जमकर आडे हाथ लिया गया. साथ ही ‘मंडल’ की पहल के बाद अब धीरे-धीरे स्थानीय मीडिया भी इस विषय को जोर-शोर से उठाने लगा है. ऐसे में खुद को चारों ओर से घिरता हुआ देखकर मनपा के सत्तापक्ष व विपक्ष द्वारा अब इसे पूरी बेशरमी के साथ चुनावी मुद्दा करार दिया जा रहा है. जनता के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से जुडे इस मामले को चुनावी मुद्दा कहकर खारिज करनेवाले ‘चुनावी’ लोगों को हम स्पष्ट तौर पर बताना चाहेंगे कि, स्थानीय स्वायत्त संस्था होने के नाते महानगरपालिका की सबसे पहली और सबसे बडी जिम्मेदारी शहर में साफ-सफाई बनाये रखना ही होती है. नगरसेवकों को कृषि, रक्षा, वित्त, उद्योग व सडक निर्माण जैसे मंत्रालयों का काम नहीं संभालना होता और देश अथवा राज्य चलाने की नीतियां नहीं बनानी होती, बल्कि उन्हें उनके वार्ड व प्रभाग की जनता अपने वार्ड व प्रभाग में साफ-सफाई व स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए ही चुनती है. यदि इसके बावजूद साफ-सफाई का मसला कुछ नगरसेवकों को कमाई का जरिया या चुनावी मुद्दा लगता है, तो वाकई ऐसे लोगों के बारे में अमरावती की जनता ने गंभीरतापूर्वक विचार करना ही चाहिए.

  • अगर पार्षदों की अधिकारी नहीं सुनते, तो गलती किसकी?

यहां एक सबसे मजेदार व रोचक बात सामने आयी है, जिसके मुताबिक कई पार्षदों का कहना है कि, मनपा के अधिकारी उनकी बात ही नहीं सुनते. चूंकि लोकतंत्र में जनता सबसे उपर है और सरकारी कर्मचारियों को जनता की सेवा व सुविधा के लिए नियुक्त किया गया है. साथ ही जनता की बातों को सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों तक पहुंचाने के लिए ही जनप्रतिनिधियों को चुना जाता है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह भी है कि, अगर जनप्रतिनिधियों के रूप में चुने गये नगरसेवकों की मनपा अधिकारी व कर्मचारी सुनते ही नहीं है, तो इसमें नाकामी किसकी है. कहीं ऐसा तो नहीं कि जनता ने गलत और अकार्यक्षम लोगोें को अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया है, या फिर जनप्रतिनिधियों की गल्तीयों और असलियत से अधिकारी इतने अधिक वाकीफ हो गये है कि, अब उनकी सुनते ही नहीं. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि, अपने प्रतिनिधि चुनते समय जनता काफी सजग रहे, ताकि जन प्रतिनिधियों द्वारा पूरी ताकत के साथ जनता की समस्याओं और बातों को प्रशासन के सामने रखा जा सके.

  •  अब हडबडाकर जागा प्रशासन

स्वास्थ्य अधिकारी नेताम ने ली आनन-फानन में बैठक

दैनिक अमरावती मंडल द्वारा साफ-सफाई की व्यवस्था को लेकर अभियान शुरू किये जाने के बावजूद अगले कुछ दिनों तक मनपा प्रशासन इसे सिरे से खारिज करते हुए यह जताने का प्रयास कर रहा था कि, अमरावती शहर में कहीं पर भी कचरे और गंदगी की कोई समस्या ही नहीं है तथा सफाई ठेकेदारों द्वारा पूरी ईमानदारी व मुस्तैदी के साथ अपना काम किया जा रहा है. साथ ही मनपा प्रशासन द्वारा ठेकेदारों के कामों पर पूरी नजर रखी जा रही है. लेकिन इसके बावजूद ‘मंडल’ ने प्रशासन को लगातार आईना दिखाना जारी रखा, तो उस आईने में कचरे और गंदगी की असलियत को देखकर आखिरकार प्रशासन को कुछ ठोस कदम उठाने पर मजबूर होना पडा. जिसके तहत गत रोज मनपा की स्वास्थ्य व स्वच्छता अधिकारी डॉ. सीमा नेताम ने आनन-फानन में अपने अधिनस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों सहित सफाई ठेकेदारों की बैठक बुलाई. साथ ही उन्होंने गुरूवार की सुबह शहर के कुछ प्रभागों का दौरा भी किया. इस समय 16 सफाई कर्मचारी काम पर गैरहाजिर पाये गये. जिसके चलते संबंधित ठेकेदारोें को 16 हजार रूपये का जुर्माना भी ठोंका गया. इसके अलावा विगत चार माह से कोविड संक्रमण काल के दौरान पूरी तरह से नदारद रहनेवाले फॉगींग व स्प्रे मशीन अब एक बार फिर दिखाई देने लगे है तथा शहर में जगह-जगह पर एक बार फिर कीटनाशक दवाओं का छिडकाव शुरू हो गया है. इसे एक तरह से अमरावती मंडल द्वारा शुरू किये गये अभियान की सफलता कहा जा सकता है.

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