सभी निजी शालाओं का शैक्षणिक शुल्क एक समान नहीं किया जा सकता
शिक्षा शुल्क को लेकर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
नागपुर/दि.22 – प्रत्येक निजी बिना अनुदानित शालाओं व महाविद्यालयों की शैक्षणिक सुविधा व गुणवत्ता में फर्क होता है. ऐसे में किसी भी शैक्षणिक संस्था के प्रबंधन को अपना शुल्क निर्धारित करते समय विविध घटकों का विचार करना पडता है. जिसके चलते निजी बिना अनुदानित शाला व महाविद्यालयों को अपने स्तर पर शैक्षणिक शुल्क निर्धारित करने की स्वतंत्रता होती है. ऐसे में सभी निजी शैक्षणिक संस्थाओं की शालाओं व महाविद्यालयों के शैक्षणिक शुल्क में समानता नहीं लायी जा सकती. इस आशय का महत्वपूर्ण निर्णय मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ द्बारा दिया गया है.
राज्य की सरकारी शाला, अनुदानित शाला, निजी बिना अनुदानित शाला तथा कायम बिना अनुदानित शाला के लिए वर्ष 2011 में महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्था शुल्क नियंत्रण कानून को लागू किया गया. जिसके अनुसार निजी बिना अनुदानित शालाओं व महाविद्यालयों को प्रशासकीय व्यवस्था, विद्यार्थी प्रवेश व शैक्षणिक शुल्क संदर्भ में आवश्यक निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी गई है. सर्वोच्च न्यायालय ने ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ मामले को लेकर सुनाए गए फैसले में इस स्वतंत्रता को मान्य किया है. जिसकी ओर ध्यान देते हुए न्यायमूर्ति द्बय अतुल चांदुरकर व वृषाली जोशी ने उपरोक्त फैसला सुनाया और कहा कि, अदालत द्बारा ऐसी शालाओं व महाविद्यालयों में शैक्षणिक शुल्क को समसमान नहीं किया जा सकता.
बता दें कि, पालक संगठन की ओर से कुछ अभिभावकों ने हाईकोर्ट में इस विषय को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी. इसमें मांग उठाई गई थी कि, निजी बिना अनुदानित शालाओं व महाविद्यालयों के शैक्षणिक शुल्क को सरकारी शालाओं व महाविद्यालयों के शैक्षणिक शुल्क से सुसंगत रखा जाए तथा बालक मंदिर से महाविद्यालय तक के शैक्षणिक शुल्क में समानता रखी जाए. इस याचिका को अपने स्तर पर खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को उनकी शिकायत का संबंधित कानून के अनुसार निराकरण करने हेतु कहा.
* पालक शिक्षक संगठन बेहद अनिवार्य
विभागीय शुल्क नियंत्रण समिति तथा प्रत्येक शाला में पालक शिक्षक संगठन स्थापित करना अनिवार्य व बंधनकारक है. शाला व महाविद्यालयों द्बारा निर्धारित शैक्षणिक शुल्क की बजाय अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जा सकता है. जिसके चलते शैक्षणिक शुल्क संदर्भ में कोई शिकायत रहने पर पालक शिक्षक संगठन से गुहार लगाई जा सकती है. साथ ही इस संगठन के किसी फैसले के खिलाफ विभागीय समिति के पास अपील की जा सकती है. ऐसा भी उच्च न्यायालय द्बारा कहा गया.