इस बार शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में भारी पड सकती है भाजपा की दावेदारी
किसी राष्ट्रीय दल का साथ चाहते है संभाग के शिक्षक
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दर्जनों शिक्षक संगठनों का भी मिल रहा समर्थन
अमरावती प्रतिनिधि/दि.१६ – अमूमन विधान परिषद सीट हेतु संभागीय शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में शिक्षक विधायक पद के लिए होनेवाले चुनाव में शिक्षक संगठनों का जबर्दस्त दबदबा दिखाई देता है. चूंकि इस चुनाव में केवल शिक्षकों को ही मतदान करने का अधिकार होता है. ऐसे में सभी पंजीकृत शिक्षक मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए शिक्षक विधायक पद का चुनाव लडनेवाले शिक्षक संगठनों और उनके प्रतिनिधियों में जबर्दस्त रस्साकसी देखी जाती है. लेकिन हाल के कुछ वर्षों के हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि, विधान परिषद में किसी चर्चा या बहस के समय शिक्षक विधायक की स्थिति निर्दलीय विधायक की तरह होती है और जब शिक्षक विधायक अपनी बात कहने के लिए खडे होते है, तो सदन लगभग खाली हो चुका रहता है. ऐसे में शिक्षक विधायक की आवाज वह असर पैदा नहीं कर पाती. जिसके लिए शिक्षकों ने उन्हें चुनकर भेजा है. ऐसे में अब संभाग के शिक्षकों की यह मानसिकता बन रही है कि, यदि उन्हें विधान परिषद में अपनी समस्याओं को प्रभावित रूप से उठाना है और मुख्य धारा की राजनीति में अपना अस्तित्व साबित करना है, तो उन्हें केवल शिक्षक संगठनों पर निर्भर रहने की बजाय किसी राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल का साथ भी लेना चाहिए. यहीं वजह है कि, इस बार के चुनाव में शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल द्वारा प्रत्याशी बनाये गये डॉ. नितीन धांडे का पलडा कुछ हद तक भारी दिखाई दे रहा है.
उल्लेखनीय है कि, संभाग में माध्यमिक, उच्च माध्यमिक व ज्यूनियर कॉलेज स्तर पर पढानेवाले शिक्षकों के कई सारे संगठन है. इसमें भी कला शिक्षक व क्रीडा शिक्षक संगठन के साथ-साथ भाषाई आधार पर बने उर्दू शिक्षक संगठन का भी समावेश है. शिक्षक विधायक चुनाव के समय सभी संगठनों द्वारा जबर्दस्त तरीके से जोर आजमाईश करते हुए अपनी ताकत दिखाई जाती है और कई संगठन इस चुनाव में अपने प्रत्याशी भी उतारते है, लेकिन इस वजह से शिक्षकों की ताकत संगठित होने की बजाय काफी हद तक बिखर जाती है. संभाग में पंजीकृत शिक्षक मतदाताओं की संख्या मात्र 35-36 हजार के आसपास है. जिनकी वेतन, पेन्शन, अनुदान व प्रमोशन से संबंधित कई समस्याएं विगत अनेक वर्षों से प्रलंबित पडी है. हैरत और मजे की बात यह है कि, इन्हीं सब मुद्दों को आधार बनाते हुए हर छह साल बाद शिक्षक विधायक पद का चुनाव लडा जाता है, लेकिन बावजूद इसके ये समस्याएं जस की तस बनी हुई है और हालात इतने बदतर है कि, बिना अनुदानित शालाओं व महाविद्यालयों में सैंकडों शिक्षक विगत 20-20 वर्षों से बिना वेतन पर काम कर रहे है और अब कही जाकर उन्हें मात्र 20 प्रतिशत अनुदान दिये जाने की घोषणा की गई है. इस अनुदान में से उन्हें वेतन के तौर पर कितने प्रतिशत राशि मिलेगी, यह अलग से खोज का विषय हो सकता है. ऐसे में अब संभाग के शिक्षकों के बीच धीरे-धीरे यह आम राय बनती जा रही है कि, अपनी समस्याओं व दिक्कतों को पूरी मजबूती के साथ उठाने और हल करवाने के लिए उन्हें किसी मजबूत राजनीतिक सहारे की जरूरत होगी. साथ ही इन सभी समस्याओं को केवल शिक्षक संगठनों के स्तर पर सुलझाया नहीं जा सकता. ऐसे में संभाग के शिक्षक इस बार शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की परंपरागत राजनीति की बजाय किसी सशक्त पर्याय की तलाश में है और किसी राष्ट्रीय दल के साथ जुडना चाह रहे है, ताकि उनकी समस्याओं को राज्य स्तर के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी एक सशक्त प्लैटफार्म मिल सके.
प्रस्तुत प्रतिनिधि के साथ हुई अनौपचारिक चर्चा में कुछ शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना रहा कि, वे विगत 18 वर्षों के दौरान तीन शिक्षक विधायक देख चुके है, जो विशुध्द रूप से शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि थे. इन 18 वर्षों के दौरान पहले दो कार्यकाल में जिन लोगों ने इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, उस समय उनके समविचारी दलों की ही सरकार थी. वहीं विगत छह वर्षों के दौरान भी लगभग यहीं स्थिति रही, लेकिन इसके बावजूद संभाग में शिक्षकों की समस्याएं हल होने में कोई विशेष सहायता प्राप्त नहीं हुई. इसकी सीधी और साफ वजह यहीं कही जा सकती है कि, यद्यपि वे विधायक किसी राजनीतिक विचारधारा के समर्थक थे, किंतु उन्हें उन राजनीतिक दलों का सीधा प्रश्रय प्राप्त नहीं था. ऐसे में हालात कई बार ऐसे हो जाते थे, कि जब शिक्षक विधायक विधान परिषद में अपनी बात रखने के लिए खडे होते थे, तो सदन लगभग पूरी तरह से खाली हो जाया करता था. यद्यपि शिक्षक विधायकों द्वारा उठाये गये मुद्दे सदन पटल पर दर्ज किये जाते थे और सदन की कार्रवाई का हिस्सा भी होते थे. लेकिन इस परिस्थिति में रखी गयी बात अपना असर पैदा नहीं कर पाती थी. ऐसे में इस बार शिक्षकों में यह धारना बलवति होती जा रही है कि, शिक्षक विधायक के तौर पर किसी ऐसे व्यक्ति को चुना जाये, जो शिक्षा क्षेत्र में शानदार पकड रखने के साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में भी अच्छाखासा दखल रखता हो और यदि ऐसा व्यक्ति किसी सशक्त राजनीतिक दल से जुडा हो तो उस जरिये संभाग एवं राज्य के शिक्षकों की समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर यानी केंद्र सरकार तक प्रखरता के साथ पहुंचाया जा सके. ऐसे हालात में संभाग के दर्जनों शिक्षक संगठन इस चुनाव में भाजपा द्वारा अपना अधिकृत प्रत्याशी बनाये गये डॉ. नितीन धांडे के पक्ष में अपना रूझान बनाने लगे है. उल्लेखनीय है कि, चिकित्सक की उच्च विद्याविभूषित पदवी प्राप्त डॉ. नितीन धांडे ने इससे पहले करीब 18 वर्षों तक शिक्षा क्षेत्र में बतौर प्राध्यापक कार्य कर चुके है. यद्यपि आज डॉ. नितीन धांडे विदर्भ क्षेत्र की दूसरी सबसे बडी शिक्षा संस्था विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के लगातार दूसरी बार अध्यक्ष निर्वाचित होकर काम कर रहे है, किंतु संस्था पदाधिकारी का जिम्मा उन्हें उत्तराधिकार के तौर पर मिला है. क्योेंकि उनके पिता इस सोसायटी के संस्थापक पदाधिकारियोें में से एक थे. ऐसे में संस्थाध्यक्ष रहने के बावजूद डॉ. नितीन धांडे का पूरा झुकाव शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों से संबंधित समस्याओं को हल करने की ओर है. इसके साथ ही वे भाजपा के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भी है. और संभाग के विद्यार्थियों के लिए बेहतरीन शिक्षा व रोजगार के शानदार अवसर उपलब्ध कराने के लिए भी सतत प्रयासरत रहते है. जिसे संभाग के शिक्षक अपने लिए काफी मुफीद मानकर चल रहे है. ऐसे में इस चुनाव में अभी से भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल का अधिकृत प्रत्याशी रहनेवाले प्रा. डॉ. नितीन धांडे की दावेदारी मजबूत कही जा सकती है, ऐसा कहना अतिशयोक्ती नहीं होगा.