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इस बार किसी राष्ट्रीय दल का साथ चाहते हैं संभाग के शिक्षक

शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में भारी पड सकती है भाजपा की दावेदारी

  • डॉ. नितीन धांडे को मिल रहा दर्जनों शिक्षक संगठनों का समर्थन

अमरावती प्रतिनिधि/दि.२८ – अमूमन विधान परिषद सीट हेतु संभागीय शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में शिक्षक विधायक पद के लिए होनेवाले चुनाव में शिक्षक संगठनों का जबर्दस्त दबदबा दिखाई देता है. चूंकि इस चुनाव में केवल शिक्षकों को ही मतदान करने का अधिकार होता है. ऐसे में सभी पंजीकृत शिक्षक मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए शिक्षक विधायक पद का चुनाव लडनेवाले शिक्षक संगठनों और उनके प्रतिनिधियों में जबर्दस्त रस्साकशीं देखी जाती है. लेकिन हाल के कुछ वर्षों के हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि, विधान परिषद में किसी चर्चा या बहस के समय शिक्षक विधायक की स्थिति निर्दलीय विधायक की तरह होती है और जब शिक्षक विधायक अपनी बात कहने के लिए खडे होते है, तो सदन लगभग खाली हो चुका रहता है. ऐसे में शिक्षक विधायक की आवाज वह असर पैदा नहीं कर पाती. जिसके लिए शिक्षकों ने उन्हें चुनकर भेजा है. ऐसे में अब संभाग के शिक्षकों की यह मानसिकता बन रही है कि, यदि उन्हें विधान परिषद में अपनी समस्याओं को प्रभावित रूप से उठाना है और मुख्य धारा की राजनीति में अपना अस्तित्व साबित करना है, तो उन्हें केवल शिक्षक संगठनों पर निर्भर रहने की बजाय किसी राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल का साथ भी लेना चाहिए. यहीं वजह है कि, इस बार के चुनाव में शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल द्वारा प्रत्याशी बनाये गये डॉ. नितीन धांडे का पलडा कुछ हद तक भारी दिखाई दे रहा है.
उल्लेखनीय है कि, संभाग में माध्यमिक, उच्च माध्यमिक व ज्यूनियर कॉलेज स्तर पर पढानेवाले शिक्षकों के कई सारे संगठन है. इसमें भी कला शिक्षक व क्रीडा शिक्षक संगठन के साथ-साथ भाषाई आधार पर बने उर्दू शिक्षक संगठन का भी समावेश है. शिक्षक विधायक चुनाव के समय सभी संगठनों द्वारा जबर्दस्त तरीके से जोर आजमाईश करते हुए अपनी ताकत दिखाई जाती है और कई संगठन इस चुनाव में अपने प्रत्याशी भी उतारते है, लेकिन इस वजह से शिक्षकों की ताकत संगठित होने की बजाय काफी हद तक बिखर जाती है. संभाग में पंजीकृत शिक्षक मतदाताओं की संख्या 35 से 36 हजार के आसपास है. जिनकी वेतन, पेन्शन, अनुदान व प्रमोशन से संबंधित कई समस्याएं विगत अनेक वर्षों से प्रलंबित पडी है. हैरत और मजे की बात यह है कि, इन्हीं सब मुद्दों को आधार बनाते हुए हर छह साल बाद शिक्षक विधायक पद का चुनाव लडा जाता है, लेकिन बावजूद इसके ये समस्याएं जस की तस बनी हुई है और हालात इतने बदतर है कि, बिना अनुदानित शालाओं व महाविद्यालयों में सैंकडों शिक्षक विगत 20-20 वर्षों से बिना वेतन पर काम कर रहे है और अब कही जाकर उन्हें मात्र 20 प्रतिशत अनुदान दिये जाने की घोषणा की गई है. इस अनुदान में से उन्हें वेतन के तौर पर कितने प्रतिशत राशि मिलेगी, यह अलग से खोज का विषय हो सकता है. ऐसे में अब संभाग के शिक्षकों के बीच धीरे-धीरे यह आम राय बनती जा रही है कि, अपनी समस्याओं व दिक्कतों को पूरी मजबूती के साथ उठाने और हल करवाने के लिए उन्हें किसी मजबूत राजनीतिक सहारे की जरूरत होगी. साथ ही इन सभी समस्याओं को केवल शिक्षक संगठनों के स्तर पर सुलझाया नहीं जा सकता. ऐसे में संभाग के शिक्षक इस बार शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की परंपरागत राजनीति की बजाय किसी सशक्त पर्याय की तलाश में है और किसी राष्ट्रीय दल के साथ जुडना चाह रहे है, ताकि उनकी समस्याओं को राज्य स्तर के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी एक सशक्त प्लेटफार्म मिल सके.

  • अब तक के अनुभवों से निराश हैं शिक्षक मतदाता

इस चुनाव को लेकर कुछ शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना रहा कि, वे विगत 18 वर्षों के दौरान तीन शिक्षक विधायक देख चुके है, जो विशुध्द रूप से शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि थे. इन 18 वर्षों के दौरान पहले दो कार्यकाल में जिन लोगों ने इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, उस समय उनके समविचारी दलों की ही सरकार थी. वहीं विगत छह वर्षों के दौरान भी लगभग यही स्थिति रही, लेकिन इसके बावजूद संभाग में शिक्षकों की समस्याएं हल होने में कोई विशेष सहायता प्राप्त नहीं हुई. इसकी सीधी और साफ वजह यही कही जा सकती है कि, यद्यपि वे विधायक किसी राजनीतिक विचारधारा के समर्थक थे, किंतु उन्हें उन राजनीतिक दलों का सीधा प्रश्रय प्राप्त नहीं था. ऐसे में हालात कई बार ऐसे हो जाते थे, कि जब शिक्षक विधायक विधान परिषद में अपनी बात रखने के लिए खडे होते थे, तो सदन लगभग पूरी तरह से खाली हो जाया करता था. यद्यपि शिक्षक विधायकों द्वारा उठाये गये मुद्दे सदन पटल पर दर्ज किये जाते थे और सदन की कार्रवाई का हिस्सा भी होते थे. लेकिन इस परिस्थिति में रखी गयी बात अपना असर पैदा नहीं कर पाती थी. ऐसे में इस बार शिक्षकों में यह धारना बलवति होती जा रही है कि, शिक्षक विधायक के तौर पर किसी ऐसे व्यक्ति को चुना जाये, जो शिक्षा क्षेत्र में शानदार पकड रखने के साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में भी अच्छाखासा दखल रखता हो और यदि ऐसा व्यक्ति किसी सशक्त राजनीतिक दल से जुडा हो, तो उस जरिये संभाग एवं राज्य के शिक्षकों की समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर यानी केंद्र सरकार तक प्रखरता के साथ पहुंचाया जा सके. ऐसे हालात में संभाग के दर्जनों शिक्षक संगठन इस चुनाव में भाजपा द्वारा अपना अधिकृत प्रत्याशी बनाये गये डॉ. नितीन धांडे के पक्ष में अपना रूझान बनाने लगे है.

  • उच्च विद्याविभूषित व शिक्षकों के लिए समर्पित हैं डॉ. नितीन धांडे

उल्लेखनीय है कि, बतौर चिकित्सक एमबीबीएस व एमडी की उच्च विद्याविभूषित पदवी प्राप्त डॉ. नितीन धांडे इससे पहले करीब 18 वर्षों तक शिक्षा क्षेत्र में बतौर प्राध्यापक कार्य कर चुके है. यद्यपि आज डॉ. नितीन धांडे विदर्भ क्षेत्र की दूसरी सबसे बडी शिक्षा संस्था विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के लगातार दूसरी बार अध्यक्ष निर्वाचित होकर काम कर रहे है, किंतु संस्था पदाधिकारी का जिम्मा उन्हें उत्तराधिकार के तौर पर मिला है. ऐसे में संस्थाध्यक्ष रहने के बावजूद डॉ. नितीन धांडे का पूरा झुकाव शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों से संबंधित समस्याओं को हल करने की ओर है. इसके साथ ही वे भाजपा के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भी है. और संभाग के विद्यार्थियों के लिए बेहतरीन शिक्षा व रोजगार के शानदार अवसर उपलब्ध कराने के लिए भी सतत प्रयासरत रहते है. जिसे संभाग के शिक्षक अपने लिए काफी मुफीद मानकर चल रहे है. ऐसे में इस चुनाव में अभी से भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल का अधिकृत प्रत्याशी रहनेवाले प्रा. डॉ. नितीन धांडे की दावेदारी मजबूत कही जा सकती है, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा.

  • शानदार उपलब्धियों से भरा है डॉ. धांडे का सफर

– चुनावी घोषणापत्र में शिक्षकों के लिए किये जानेवाले कामों की संकल्पना सामने रखी
विदर्भ क्षेत्र की दूसरी सबसे बडी शिक्षा संस्था विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के अध्यक्ष एवं ख्यातनाम समाजसेवी प्रा. डॉ. नितीन रामदास धांडे ने अमरावती संभाग के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से शिक्षक विधायक पद हेतु चुनाव लडने का फैसला करने के साथ ही उन्होंने अपना चुनावी घोषणापत्र जारी करते हुए संभाग के शिक्षकों के समक्ष अपने द्वारा किये जानेवाले कामों की संकल्पना पेश की और अब तक अपने द्वारा किये गये कामोें का ब्यौरा भी संभाग के शिक्षकों के समक्ष रखते हुए उन्हें शिक्षकों की समस्याओं एवं प्रलंबित मसलों को हल करने हेतु एक अवसर प्रदान करने का आवाहन किया है. जिसमें उनके द्वारा दी गई जानकारी से संभाग के शिक्षक अच्छेखासे प्रभावित हुए है. विशेष तौर पर डॉ. नितीन धांडे की शैक्षणिक योग्यता और अब तक उनके द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों ने शिक्षक मतदाताओं पर अच्छा-खासा प्रभाव डाला है. अपने घोषणापत्र में डॉ. नितीन धांडे ने कहा है कि, वे सुशिक्षित व सुसंघटित समाज के निर्माण हेतु पूरी तरह से कटिबध्द है. साथ ही शिक्षकों से संबंधित विषय हमेशा से ही उनकी पहली प्राथमिकता में रहे है. क्योंकि वे स्वयं कभी एक शिक्षक रह चुके है और इस समय महाराष्ट्र राज्य की एक अग्रणी शिक्षा संस्था के अध्यक्ष भी है. उनकी शिक्षा संस्था में 3 हजार प्राध्यापक, शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारी कार्यरत है. जिनकी समस्याओं और दिक्कतों को वे बेहद करीब से जानते है. अत: समूचे संभाग के शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की समस्याओं के खिलाफ आवाज मुकर करने के लिए वे विधान परिषद में अमरावती संभाग के शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करना चाहते है.

  • जबर्दस्त नेतृत्वगुण के धनी हैं डॉ. नितीन धांडे

बता दें कि, नागपुर के सरकारी मेडिकल कालेज एमबीबीएस, एमडी की उच्च पदवियां प्राप्त करनेवाले डॉ. नितीन धांडे ने 19 वर्ष तक सहायक प्राध्यापक व सहयोगी प्राध्यापक के तौर पर काम किया है. साथ ही वे वर्ष 2004 से 2006 तक विदर्भ युथ वेलफेअर सोसायटी के कोषाध्यक्ष रहे और उनके कामोें को देखते हुए कार्यकारिणी ने कालांतर में उन्हें इस सोसायटी का अध्यक्ष नियुक्त किया. इस संस्थांतर्गत उनके मार्गदर्शन में कुल 50 शालाओं व महाविद्यालयों का समावेश है. जिसमें 2 इंजिनिअरींग, 2 फार्मसी, 1 डेंटल, 1 समाजकार्य, 1 तंत्रनिकेतन, 11 कनिष्ठ व वरिष्ठ महाविद्यालय, 2 सीबीएसई मान्यता प्राप्त शाला, 1 आश्रमशाला व 2 छात्रावासों का समावेश है. वर्ष 2014 में संस्था का पदभार स्वीकारने के बाद डॉ. धांडे के मार्गदर्शन की वजह से संस्थांतर्गत संचालित होनेवाले सभी महाविद्यालयों को एनबीए व नैक का मानांकन प्राप्त हुआ है. इसके अलावा संस्था को भारत सरकार की ओर से विभिन्न पुरस्कार व सहायता निधी भी प्राप्त हुए है. साथ ही उनके मार्गदर्शन के तहत वर्ष 2016 में टाईटन्स् पब्लिक स्कूल व किंडरगार्टन (बडनेरा), वर्ष 2017 में फार्मसी कालेज (बडनेरा), वर्ष 2018 में सीबीएसई मान्यता प्राप्त टाईटन्स पब्लिक स्कूल (बडनेरा) व तपस्या पब्लिक स्कूल (आर्वी) की स्थापना हुई, और संस्था द्वारा संचालित दंत महाविद्यालय में एमडीएस के 2 पदव्युत्तर पाठ्यक्रमों की शुरूआत होने के साथ ही उन्हें डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता भी प्राप्त हुई.

  • कई सामाजिक संगठनोें के साथ है गहरा जुडाव

शिक्षा क्षेत्र के साथ शुरूआती दौर से जुडे रहने और विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी जैसी बडी शिक्षा संस्था का अध्यक्ष रहने के नाते हमेशा ही व्यस्त रहने के बावजूद डॉ. नितीन धांडे का शहर की सामाजिक संस्थाओं एवं सामाजिक कार्यों के साथ गहरा जुडाव रहा है और समाज के सभी वर्गों में उन्हें चाहनेवाले लोग मौजूद हैं. वर्ष 2014 में वे आंबेडकर जयंती पर निकलनेवाली एकता रैली के अध्यक्ष थे. साथ ही रामनवमी पर निकलनेवाली शोभायात्रा समिती के भी अध्यक्ष बने. इसके साथ ही वर्ष 2018 में वे रावण दहन समिती के अध्यक्ष नियुक्त हुए और करीब 27 वर्ष के बाद अमरावती में रावण पुतला दहन का सार्वजनिक आयोजन हुआ. इसके साथ ही वे वर्ष 2017 में हरिना नेत्रदान समिती के कार्याध्यक्ष रहे और वर्ष 2018 में एआईसीटीई के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल में उनका समावेश रहा. इसके अलावा डॉ. नितीन धांडे वर्ष 2018 में संत गाडगेबाबा गौरव पुरस्कार समिती के अध्यक्ष रहे और उनकी अगुआई में समाज में उत्कृष्ट कार्य करनेवाले गणमान्य नागरिकों का सत्कार व सम्मान किया गया.

  • क्यों बनना चाहते हैं शिक्षक विधायक

शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से अपनी दावेदारी के संदर्भ में डॉ. नितीन धांडे ने दैनिक अमरावती मंडल को बताया कि, मौजूदा दौर में शिक्षा क्षेत्र के सभी घटक यानी संस्थापक, संचालक, प्राचार्य, मुख्याध्यापक, प्राध्यापक, शिक्षक, लिपीक, शिपाई, परिचर, प्रयोगशाला सहायक व ग्रंथपाल आदि सरकार की बार-बार बदलनेवाली नीतियों और शर्तों की वजह से त्रस्त व असंतुष्ट है. इसमें भी राज्य सरकार ने मराठी शालाओं के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाते हुए शिक्षा पर होनेवाले खर्च को कम करने के लिए शिक्षकों को मजबूर किया है और अनुदानित, अंशत: अनुदानित, बिना अनुदानित, स्वयं वित्त सहायित, सीएचबी, शिक्षक सेवक व घोषित विद्यार्थी संख्या आधारित अनुदान जैसे विविध नये-नये विषय रोजाना सामने आ रहे है. जिसकी वजह से शिक्षकों और प्राध्यापकों का मनोबल टूट रहा है. ऐसे में शिक्षकों व प्राध्यापकोें के सम्मान हेतु, शिक्षा व्यवस्था के दोष खत्म करने हेतु, शिक्षकों व विद्यार्थियों की मांगों हेतु, पुरानी पेन्शन योजना मिलने हेतु, शिक्षा में बिना अनुदानित नीति खत्म करने हेतु, केजी से पीजी तक की शिक्षा नि:शुल्क करने हेतु, शिक्षा व्यवस्था में नीतिगत बदलाव लाने हेतु, स्वयं वित्त सहायित नीति रद्द करने हेतु वे यह चुनाव लड रहे है और उन्हें पूरा विश्वास है कि, उन्हें अमरावती संभाग के सभी शिक्षकों एवं प्राध्यापकों का पूरा साथ मिलेगा. जिसके दम पर वे विधान परिषद में संभाग सहित समूचे राज्य के शिक्षकों व विधायकों की समस्याओं को हल करने हेतु आवाज उठायेंगे.

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