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इस बार सरकारी नियमों का पालन करते हुए होगा विठ्ठल नाम का गजर

 सरकार ने नहीं दी पंढरपुर की पैदल वारी की अनुमति

  •  केवल 10 मानांकित पालखियों को ही पंढरपुर आने की छूट

  •  कौंडण्यपुर से माता रूख्मिणी की पालखी व पादुकाएं जायेंगी पंढरपुर

  •  427 वर्ष पुराना है कौंडण्यपुर की पालखी का इतिहास

अमरावती/प्रतिनिधि दि.16 – प्रतिवर्ष आषाढी एकादशी के पर्व पर समूचे राज्य से लाखों की तादाद में वारकरी संप्रदाय के भाविक श्रध्दालु पंढरपुर की पैदल वारी यानी यात्रा करते है. इसके तहत राज्य के कोने-कोने से मंदिर संस्थानों की पालखियां एवं संत विभूतियों की चरण पादुकाएं पैदल वारी के तहत पंढरपुर ले जायी जाती है. किंतु गत वर्ष कोविड संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरकार द्वारा पंढरपुर वारी को अनुमति देने से इन्कार कर दिया गया था और राज्य की 10 प्रमुख मानांकित पालखियों को ही पैदल वारी की बजाय निजी वाहनों के जरिये पंढरपुर आने की छूट दी गई थी. जिसमें केवल 20 से 25 लोगों को ही पंढरपुर आने की अनुमति दी गई थी. चूंकि इस समय भी कोविड संक्रमण का खतरा बना हुआ है. ऐसे में प्रशासन द्वारा इस बार भी पंढरपुर की पैदल वारी को अनुमति देने से इन्कार किया गया है और गत वर्ष की तरह इस बार भी राज्य की 10 प्रमुख पालखियों को विशेष वाहनों के जरिये पंढरपुर आने की अनुमति दी गई है. जिसमें आलंदी व देहू की पालखी के साथ 100-100 तथा अन्य आठ पालखियोें के साथ केवल 50-50 लोगोें को ही पंढरपुर आने की अनुमति प्रदान की गई है. यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, जिन 10 प्रमुख पालखियों को कोविड प्रतिबंधात्मक नियमों का पालन करते हुए पंढरपुर आने की अनुमति दी गई है, उनमें अमरावती जिले के श्री क्षेत्र कौंडण्यपुर स्थित माता रूख्मिणी देवी की पालखी का भी समावेश है. अमूमन प्रतिवर्ष आषाढी एकादशी से करीब एक माह पूर्व कौंडण्यपुर से माता रूख्मिणी की पालखी पंढरपुर के लिए पूरे हर्षोल्लास के साथ प्रस्थान करती है. किंतु इस बार भी गत वर्ष की तरह विशेष सरकारी बस के जरिये पालखी को पंढरपुर भेजा जाना है. अत: आषाढी एकादशी से चार-पांच दिन पूर्व यह पालखी पंढरपुर के लिए रवाना होगी.
ज्ञात रहें कि, इस वर्ष आषाढी एकादशी आगामी 20 जुलाई को पड रही है. ऐसे में 14 या 15 जुलाई को श्री क्षेत्र पंढरपुर के माता रूख्मिणी की पालखी पंढरपुर के लिए रवाना होगी. इस पालखी में माता रूख्मिणी की उत्सव मूर्ति सहित श्री संत सदाराम महाराज की चरण पादुकाएं रहेगी. बता दें कि, संत सदाराम महाराज ने ही वर्ष 1594 में इस पालखी व वारी की परंपरा शुरू की थी और यह परंपरा विगत 427 वर्षों से लगातार चली आ रही है. जिसकेतहत इस वर्ष भी कौंडण्यपुर से पालखी पंढरपुर के लिए रवाना होगी. जिसके तहत दो सरकारी बसों में पालखी के साथ कौंडण्यपुर स्थित विठ्ठल रूख्मिनी संस्थान के पदाधिकारियों व सेवाधारियों सहित कुल 50 वारकरी रवाना होंगे.

  • इस बार नहीं होगा ‘रिंगण महोत्सव’

बता दें कि, प्रति वर्ष आषाढी एकादशी के उपलक्ष्य में समूचे महाराष्ट्र राज्य के कोने-कोने से पंढरपुर के लिए पालखी व वारी रवाना होती है. साथ ही कर्नाटक के अंकली से श्रीमंत सरदार शितोले द्वारा मानांकित अश्व भी पंढरपुर वारी के लिए भेजे जाते है, जो आषाढी एकादशी से ठीक 12 दिन पहले अंकली से प्रस्थान करते है और तमाम लाव-लश्कर व हजारों भाविकों के साथ 11 दिनों के दौरान अंकली से आलंदी पहुंचते है. जहां से ज्ञानेश्वर माऊली की पालखी का प्रस्थान होता है. इस दौरान इन मानांकित अश्वों के साथ आयोजीत किया जानेवाला रिंगण महोत्सव पूरे राज्य के आकर्षण का केंद्र रहता है. जिसमें लाखों वारकरी शामिल होते है. किंतु गत वर्ष कोविड संक्रमण के चलते अश्वों का प्रतिकात्मक प्रस्थान हुआ और रिंगण महोत्सव आयोजीत नहीं किया गया. वहीं इस वर्ष भी शिंतोले वाडा में माऊली की पालखी के साथ जानेवाले मानांकित अश्व हिरा और मोती को पूरी तरह से तैयार रखा गया है. इन दोनों अश्वों के साथ सरदारों का दल भी रवाना होता है. इस वर्ष आलंदी से माऊली की पालखी का प्रस्थान 2 जुलाई को होगा. ऐसे में अश्वों के प्रस्थान को लेकर 21 जून तक निर्णय होना अपेक्षित है. ऐसा श्रीमंत सरदार महादजी शितोले का कहना है.

  •  दशमी को पहुचेंगी सभी पालखियां, यात्रा कालावधि में भाविकों के लिए दर्शन रहेंगे बंद

राज्य के विभिन्न हिस्सों से निकलनेवाली 10 मानांकित पालखियों का दशमीवाले दिन पंढरपुर मेें आगमन होगा और सभी पालखियां यहां से पौर्णिमा को प्रस्थान करेंगी. प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी विठ्ठल-रूख्मिणी की शासकीय महापूजा के साथ ही गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी इस बात को मान्यता दी गई है कि, भगवान विठ्ठल संतों से भेंट हेतु रवाना हुए है. इस दौरान ‘श्री’ का नित्योपचार परंपरानुसार शुरू रखा जायेगा और आषाढी यात्रा कालावधी के दौरान मंदिर को आम भाविकों के लिए बंद रखा जायेगा.

  • वाखरी से पंढरपुर तक पैदल वारी करेंगी सभी पालखियां

जानकारी के मुताबिक राज्य के विभिन्न हिस्सों से विशेष वाहनों के जरिये रवाना होनेवाली सभी पालखियां वाखरी पहुंचने के बाद पंढरपुर तक अगले डेढ किमी की यात्रा प्रातिनिधिक स्वरूप में पैदल वारी करते हुए पूर्ण करेंगी. इस वर्ष देहू व आलंदी से निकलनेवाली पालखियों के साथ 100-100 वारकरी तथा शेष 8 पालखियों के साथ 50-50 वारकरियों को उपस्थित रहने की अनुमति दी गई है और इस वर्ष एकादशी पर आयोजीत होनेवाले रथोत्सव में रथों की बजाय स्वतंत्र वाहन के जरिये 10 मानकरी व मंदिर समिती के पांच कर्मचारी ऐसे कुल 15 लोगों को अनुमति दी गई है.

  • सभी उत्सवों में रहेगी सीमित लोगों की उपस्थिति

इस वर्ष महाद्वार काला उत्सव व श्री संत नामदेव महाराज समाधि समारोह के लिए 1+10 लोगों को अनुमति दी गई है. साथ ही संतों की पादुका भेंट व मानांकित पालखियों के लिए 40 वारकरियों को अनुमति दी जायेगी. संतों के नैवेद्य व पादुका पूजन के लिए दशमी से पौर्णिमा ऐसे 6 दिन केवल 2-2 व्यक्तियों को अनुमति रहेगी. भगवान विठ्ठल की प्रक्षाल पूजा के लिए समिती सदस्यों द्वारा की जानेवाली सपत्निक पूजा में 2+3, रूख्मिणी माता की प्रक्षाल पूजा में 2+3, श्रीं के रूद्र अभिषेक व श्री रूख्मिणी माता के पवनमान अभिषेक के पूजन में 11-11 पूजारियों को उपस्थित रहने की अनुमति रहेगी. साथ ही 20 जुलाई को आषाधी एकादशीवाले दिन स्थानीय महाराज के तौर पर कुल 195 लोगोें को श्री विठ्ठल-रूख्मिणी माता के मुख दर्शन की अनुमति दी जायेगी. जिन्हें प्रवेश पत्रिका व दर्शन का समय मंदिर समिती द्वारा दिया जायेगा.

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