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‘उन’ ईवीएम को किया जायेगा कस्टडी से मुक्त

  •  हाईकोर्ट ने माना चुनाव आयोग का निवेदन

  •  मामला अमरावती संसदीय क्षेत्र में हुए चुनाव का

नागपुर/प्रतिनिधि/दि.2 – बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ द्वारा केंद्रीय चुनाव आयोग के उस निवेदन को मान्य कर लिया है. जिसमें आयोग ने अमरावती संसदीय क्षेत्र में हुए लोकसभा चुनाव में प्रयुक्त ईवीएम और वीवीपैट मशीनों को कस्टडी से मुक्त करने की अपील की गई थी. बता दें कि, अमरावती जिले के पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल व उनके स्वीय सहायक सुनील भालेराव ने विगत लोकसभा चुनाव में सांसद निर्वाचित हुई नवनीत राणा के निर्वाचन के खिलाफ नागपुर हाईकोर्ट में चुनाव navयाचिका दायर की थी, जो इस समय विचाराधीन है. इस याचिका के चलते उस चुनाव के दौरान अमरावती जिले में प्रयोग में लाये गये ईवीएम व वीवीपैट मशीनों को सील कर दिया गया था.
गत रोज निर्वाचन आयोग की ओर से एड. नीरजा चौबे ने हाईकोर्ट में आवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि, चुनाव आयोग को इन मशीनों का उपयोग अन्य चुनावों में करना है. अत: इन मशीनों को कस्टडी से मुक्त कर चुनाव आयोग के सुपुर्त किया जाये, ताकि इन्हें प्रयोग में लाया जा सके. साथ ही चुनाव आयोग की ओर से यह दलील भी दी गई कि, ईवीएम व वीवीपैट मशीनों को कस्टडीमुक्त करने से चुनाव याचिका पर कोई असर नहीं पडेगा. इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान सभी पक्षों का युक्तिवाद सुनने के बाद हाईकोर्ट ने निर्वाचन आयोग की अपील को मान्य कर लिया.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, कुछ समय पूर्व सांसद नवनीत राणा ने एक अपील दायर करते हुए हाईकोर्ट से इस मामले को रफा-दफा करने का निवेदन किया था. जिसे हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया. वहीं उनके निर्वाचन का विरोध करनेवाले याचिकाकर्ताओें ने अपनी याचिका में दावा किया है कि, विगत लोकसभा चुनाव में अमरावती संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जाति संवर्ग हेतु आरक्षित था और नवनीत राणा ने अनुसूचित जाति से सम्बध्द न रहने के बावजूद फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर इस सीट से चुनाव लडा और उनकी जीत से आरक्षित संवर्ग के प्रत्याशियों के हित बाधित हुए है. याचिकाकर्ताओं द्वारा बताया गया कि, अमरावती संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडने हेतु नवनीत राणा ने खुद के लुहाणा जाति से वास्ता रखने का प्रमाणपत्र पेश किया था, जबकि नवनीत राणा के पिता का जाति प्रमाणपत्र मुंबई की जाति वैधता जांच समिती द्वारा पहले ही खारिज कर दिया गया है. अत: साफ है कि, उनका जाति प्रमाणपत्र पूरी तरह से फर्जी था और इस प्रमाणपत्र के आधार पर उनका निर्वाचन भी अवैध है.

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