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सत्ता में आना तो दूर, उन्हें चुनाव लडने का भी नैतिक अधिकार नहीं

परिवर्तन पैनल के संयोजक व प्रत्याशी संजय खोडके का कथन

  • पत्रवार्ता में जिला बैंक के पूर्व सत्ताधिशों को जमकर लिया आडे हाथ

  • ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर लगाये भ्रष्टाचार के आरोप

अमरावती/प्रतिनिधि दि.24 – विगत 11 वर्षों से जिला बैंक की सत्ता में रहे तत्कालीन पूर्व अध्यक्षों व उनके समर्थक संचालक द्वारा बैंक का कामकाज बेहद मनमाने ढंग से चलाया गया. इसके सबूत अब विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा जारी किये जानेवाली रिपोर्ट के जरिये सामने आ रहे है और भ्रष्टाचार के एक के बाद एक कई खुलासे हो रहे है. इसके बावजूद तत्कालीन पूर्व अध्यक्ष सहित उनके समर्थक बैंक संचालक मंडल का चुनाव लड रहे है. जबकि हकीकत यह है कि, उन लोगों के पास बैंक की सत्ता में आना तो दूर, बैंक के संचालक मंडल का चुनाव लडने का भी कोई नैतिक अधिकार नहीं है. इस आशय का प्रतिपादन जिला बैंक का चुनाव लड रहे परिवर्तन पैनल के संयोजक तथा ओबीसी संवर्ग के प्रत्याशी संजय खोडके द्वारा किया गया.
स्थानीय होटल रामगिरी में परिवर्तन पैनल की पहली अधिकारिक पत्रकार परिषद शुक्रवार 24 सितंबर की दोपहर बुलायी गयी थी. जिसमें परिवर्तन पैनल के सभी प्रत्याशी एक मंच पर आये. साथ ही इस पैनल में मार्गदर्शक की भूमिका निभानेवाले पूर्व मंत्री व शिवाजी शिक्षण संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन देशमुख, पूर्व राज्यमंत्री वसुधा देशमुख तथा पूर्व विधायक व भाजपा नेता अरूण अडसड, विधायक सुलभा खोडके एवं शिवसेना के जिला प्रमुख राजेश वानखडे भी मंचासीन थे. इसके साथ ही परिवर्तन पैनल की ओर से जिला बैंक का चुनाव लड रहे राज्यमंत्री बच्चु कडू, विधायक राजकुमार पटेल, विधायक प्रताप अडसड, राजेंद्र महल्ले, रविंद्र गायगोले, राजाभाउ देशमुख, माया हिवसे, जयश्री देशमुख, अनंत देशमुख आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे.
इस पत्रकार परिषद में नाबार्ड एवं जिला विशेष लेखा परीक्षक द्वारा बैंक के कामकाज को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट को मीडिया के समक्ष पेश करते हुए संजय खोडके ने कहा कि, दोनों ही रिपोर्ट में विगत 11 वर्षों के दौरान बैंक में हुई तमाम तरह की आर्थिक गडबडियां खुले तौर पर उजागर की है. जिससे साफ है कि, बैंक में विगत 11 वर्षों के दौरान बडे पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है और बैंक की सत्ता में रहनेवाले तत्कालीन संचालकों ने किसानों का हित देखने की बजाय अपने व्यक्तिगत हितों को पूरा किया और बैंक को अपनी काली कमाई का अड्डा बनाया. नाबार्ड की रिपोर्ट के आधार पर संजय खोडके ने कहा कि, विगत 11 वर्ष के दौरान बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष ने सारे अधिकार अपने पास रखे थे और मुख्य कार्यकारी अधिकारी का काम भी वे खुद ही कर रहे थे. जिसके तहत कर्ज, तबादले, पदोन्नति व निलंबन जैसे तमाम प्रशासकीय मामलों को लेकर सीईओ की बजाय बैंक के अध्यक्ष द्वारा फैसले लिये जाते थे, जो पूरी तरह से गैरकानूनी था. इसके साथ ही नाबार्ड द्वारा ऑडिट रिपोर्ट में जिन गलतियों की ओर बैंक का ध्यान दिलाया जाता था, उनमें से किसी भी गलती को बैंक द्वारा सुधारा नहीं गया. बल्कि अपनी मर्जी से ही कामकाज किया जा रहा था. इसके अलावा इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि, बैंक की शाखाओें में दैनंदिन नकद रकम क्षमता से अधिक रखी जाती थी और नकद रकम की प्रत्यक्ष जांच लेखा परीक्षक के जरिये नहीं होती थी. साथ ही बैंक द्वारा नाबार्ड सहित आरबीआई के निर्देशों का भी मनमाने ढंग से उल्लंघन किया गया. सबसे प्रमुख बात यह है कि, नोट बंदी के दौरान बैंक के 370.04 रूपये जिस वाहन से जप्त किये गये थे, वह बैंक की अधिकृत कैश वैन नहीं थी. साथ ही इस रकम को बोरों में भरकर ले जाया जा रहा था. इसके अलावा बैंक द्वारा पुलिस को समाधानकारक जवाब नहीं दिये गये. जिसकी वजह से उस रकम को जप्त कर लिया गया और हाईकोर्ट ने भी बैंक के खिलाफ आदेश जारी किया. साथ ही रिजर्व बैंक ने भी उस रकम को स्वीकार करने से इन्कार किया. जिसके चलते बैंक पर 370.04 लाख रूपये का कर्ज हो गया. इसके अलावा नाबार्ड ने यह भी पाया कि, बैंक के सीईओ पद पर जयसिंह राठोड की नियुक्ति भी गैरकानूनी थी. क्योंकि राठोड इस पद के लिए अपात्र थे.
इसके साथ ही संजय खोडके ने उपनिबंधक सहकारी संस्था के सहकार आयुक्त द्वारा पदभरती को लेकर जारी किये गये आक्षेप, बैंक के लगातार बढते एनपीए, जिला विशेष लेखा परीक्षक की रिपोर्ट, किसानों को कर्ज दिये जाने की बजाय नियमबाह्य तरीके से बैंक के पैसे का म्युच्युअल फंड में निवेश, दस वर्षों से लेखा परीक्षण में बैंक का ब वर्ग में ही रहने एवं इसकी वजह से जिला परिषद द्वारा अपनी निधी बैंक से वापिस निकाल लिये जाने, बैंक के तत्कालीन सत्ताधारियों द्वारा संचालक मंडल की प्रत्यक्ष सभा केवल पांच मिनट में ही निपटा लिये जाने, खाताधारक किसानों को बैंक द्वारा फसल कर्ज नहीं दिये जाने और बैंक के संचालकों, कर्मचारियों व चार्टर्ड अकांउंटंस की मिलीभगत से नियमों का उल्लंघन कर म्युच्युअल फंड में निवेश करने तथा इस निवेश की आड में कमीशनखोरी करने जैसे तमाम मामलों को लेकर संजय खोडके ने इस पत्रवार्ता में अपने विचार रखे. साथ ही कहा कि, जिन लोगों ने किसानों की जिला बैंक को अपनी निजी संपत्ति मानकर दस वर्ष तक मनमाने ढंग से काम किया, उनकी सारी कारगुजारिया अब उजागर हो गई है. ऐसे में इस बार जिला बैंक के मतदाता निश्चित तौर पर परिवर्तन पैनल का साथ देंगे और परिवर्तन पैनल द्वारा बैंक की सत्ता में आने के बाद जिला बैंक को एक बार किसानों की बैंक के तौर पर स्थापित किया जायेगा, एवं किसानों के हितों का पूरी तरह से ख्याल रखा जायेगा.

 

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  •  किसानों के लिए हम उतरे है मैदान में

इस पत्रवार्ता में उपस्थित राज्यमंत्री एवं परिवर्तन पैनल के प्रत्याशी बच्चू कडू ने कहा कि, वस्तुत: उनका सहकार क्षेत्र से कोई वास्ता नहीं तथा वे चांदूर बाजार तहसील सेवा सहकारी सोसायटी के केवल सामान्य सदस्य है और इस समय राजनीतिक क्षेत्र में काफी बडे मुकाम पर भी है. ऐसे में जिला बैंक का संचालक पद उनके लिए कोई खास मायने नहीं रखता है. किंतु विगत 11 वर्षों से जिला बैंक का कामकाज जिस तरीके से चलाया गया और किसानों की इस बैंक को कंपनी की बैंक बना दिया गया, उसे देखते हुए जिले एवं किसानों के हितों के मद्देनजर उन्होंने जिला बैंक के चुनावी आखाडे में उतरने का निर्णय लिया. लगभग इसी वजह के चलते परिवर्तन पैनल के सभी प्रत्याशी चुनावी मैदान में है. राज्यमंत्री बच्चु कडू ने कहा कि, बैंक के तत्कालीन संचालक मंडल ने अपने कार्यकाल के दौरान किसानों को केवल 150 करोड रूपयों का कर्ज दिया. वहीं म्युच्युअल फंड कंपनी में 700 करोड रूपये निवेशित किये. जबकि बैंक में प्रशासकराज आते ही किसानों को 400 करोड रूपयों के कर्ज वितरित हुए. जिसका सीधा मतलब है कि, बैंक के तत्कालीन सत्ताधारियों ने किसानों की बैंक को किसानों से बहुत दूर ले जाकर रखा था. यहीं वजह है कि, विगत दस वर्ष के दौरान कई बार किसानों को कर्ज की मांग को लेकर अनशन तक करना पडा. यहीं वजह है कि, वे खुद इस बार अपने समविचारी सहयोगियों के साथ चुनावी मैदान में है और बैंक में परिवर्तन करने हेतु पूरी तरह से प्रतिबध्द है.

 

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  • 700 करोड का निवेश तो एक छोटा मामला, और भी बहुत कुछ बाकी है

चांदूर रेल्वे निर्वाचन क्षेत्र के विधायक प्रताप अडसड ने इस पत्रवार्ता में कहा कि, अभी तो केवल इस बैंक के 700 करोड रूपये के निवेश का इकलौता मामला सामने आया है और अभी इस जैसे कई मामले सामने आना बाकी है. उन्होंने कहा कि, विरोधियों द्वारा बैंक के चुनाव को देखते हुए आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने की बात की जा रही है. किंतु हकीकत यह है कि, जब तक उन लोगों की बैंक में सत्ता रही, तब तक आर्थिक गडबडियों से संबंधित किसी भी मामले के दस्तावेज को बाहर नहीं आने दिया गया और जैसे ही बैंक में प्रशासकराज आया, वैसे ही बैंक के तत्कालीन सत्ताधारियों द्वारा किये गये काले कारनामोें का कच्चा चिठ्ठा खुलना शुरू हुआ. विधायक अडसड ने कहा कि, यह तमाम मामले केवल चुनावी मुद्दा नहीं है, बल्कि चुनाव निपट जाने के बाद ही इन सभी मामलों की सघन जांच करायी जायेगी और दोषी पाये जानेवाले लोगों के खिलाफ कडी कार्रवाई भी की जायेगी.

 

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  • बहुत हो चुकी ‘बंटी-बबलू’ की कारस्थानी

वहीं शिवाजी शिक्षण संस्था के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री हर्षवर्धन देशमुख ने इस पत्रवार्ता में उपस्थित रहकर परिवर्तन पैनल के प्रत्याशियों को अपना समर्थन देते हुए कहा कि, वे पहली बार जिला बैंक के किसी भी चुनाव में प्रत्यक्ष तौर पर सहभाग ले रहे है, क्योंकि ‘बंटी-बबलू’ की कारस्थानियां अब बहुत हो चुकी है तथा जिले के किसानों व सर्वसामान्य नागरिकोें के हितों को देखते हुए जिला बैक की सत्ता में ‘परिवर्तन’ होना बेहद जरूरी है.

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  • 11 वर्षों से किसान हितों की अनदेखी

वहीं इस पत्रवार्ता में उपस्थित पूर्व राज्यमंत्री वसुधा देशमुख ने कहा कि, जिला बैंक को किसानों की बैंक कहा जाता है. किंतु विगत 11 वर्षों के दौरान जिला बैंक मेें किसानों की ही अनदेखी की जाती रही. ऐसे में किसानों को न्याय दिलाने हेतु जिला बैंक में अब ‘परिवर्तन’ होना बहुत जरूरी है तथा निश्चित तौर पर जिला बैंक के मतदाता इस बार परिवर्तन पैनल के पक्ष में ही मतदान करेंगे.

 

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  • किसानों की बैंक में किसानों की ही अनदेखी

पत्रवार्ता में उपस्थित विधायक सुलभा खोडके ने कहा कि, जिला बैेंक पर पहला अधिकार किसानों का है. लेकिन विगत 11 वर्षों के दौरान किसानों की ही अनदेखी होती आयी है. ऐसे में अब किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम करने के लिए परिवर्तन पैनल द्वारा चुनाव लडा जा रहा है और बैंक की सत्ता में आने के बाद परिवर्तन पैनल द्वारा सबसे पहले बैंक को आर्थिक रूप से मजबूत करने के साथ-साथ किसानोें को आर्थिक तौर पर सक्षम किया जायेगा.

 

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  • किसानों के हितों के लिए दलगत राजनीति को परे रखा

इस समय पूर्व विधायक व भाजपा नेता अरूण अडसड ने कहा कि, परिवर्तन पैनल में शामिल सभी लोग भले ही अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा से वास्ता रखते है, किंतु जिले के किसानों के हितों को देखते हुए सभी ने अपनी दलगत राजनीति व वैचारिक मतभिन्नता को परे रखा है और सभी लोग परिवर्तन पैनल के जरिये एक मंच पर इकठ्ठा हुए है. हम सब की केवल इतनीही मंशा है कि किसानोें की बैंक रहनेवाली जिला बैंक का उपयोग किसानों के हितों के लिए हो.

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