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कल श्रध्दापूर्वक होगी ज्येष्ठा गौरी की स्थापना

कल होगा पूजन व महाप्रसाद

अमरावती/प्रतिनिधि दि.२४  – ज्येष्ठा गौरी यानी महालक्ष्मी पूजन को महाराष्ट्र का एक प्रमुख पर्व माना जाता है. भाद्रपद माह के शु्नल पक्ष में अनुराधा नक्षत्र में अपने-अपने कुलाचार के अनुसार विभिन्न परिवारों द्वारा महालक्ष्मी व ज्येष्ठा गौरी की स्थापना की जाती है. इस परंपरा के तहत इस वर्ष सोमवार २४ अगस्त को ज्येष्ठा गौरी की स्थापना कर आव्हान किया जायेगा. वहीं दूसरे दिन मंगलवार २५ अगस्त को ज्येष्ठा गौरी पूजन व महाप्रसाद का आयोजन होगा एवं तीसरे दिन बुधवार २६ अगस्त को ज्येष्ठा गौरी का विसर्जन किया जायेगा. बता दें कि, महाराष्ट्र के प्रमुख पर्वों में से एक रहनेवाले महालक्ष्मी पूजन में कुल एवं स्थान के अनुरूप जेष्ठा गौरी पूजन की पध्दति व परंपरा चली आ रही है. कई परिवारों में ज्येष्ठा गौरी के मुखौटे स्थापित कर पूजन किया जाता है. वहीं कुछ परिवारों में जलस्त्रोत पर जाकर पांच, सात व ग्यारह पत्थर लाकर उनकी पूजा की जाती है.

इसके अलावा कुछ परिवारों में पांच मटकोें का पिरामिड तैयार कर उन पर गौरी के मुखौटे स्थापित किये जाते है और इस पिरामिड को साडी-चोली पहनाकर आकर्षक श्रृंगार करते हुए ज्येष्ठा गौरी पूजन किया जाता है. वहीं कुछ परिवारों में धान्य की आरास यानी गेहू, चावल, ज्वारी, हरभरा व दाल आदि में से एक अथवा दो अनाज का भंडार लगाकर उस पर मुखौटे सजाये जाते है. ज्येष्ठा गौरी आगमनवाले दिन शाम के समय अथवा पंचांग में शुभ मुहूर्त देखकर मुखौटों तथा लक्ष्मी के हाथ का पूजन किया जाता है और उसी रात ज्येष्ठा गौरी की स्थापना की जाती है. साथ ही गौरी-महालक्ष्मी व महालक्ष्मी सहित उनके एक पुत्र व पुत्री की भी स्थापना की जाती है.

१६ सब्जियों का लगता है भोग

ज्येष्ठा गौरी महालक्ष्मी की स्थापना होने के बाद दूसरे दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है और देवी को महानैवेद्य अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि, इन तीन दिनों के दौरान ज्येष्ठा गौरी अपने मायके आती है और उन्हें पूरण के साथ ही १६ तरह की सब्जियों, १६ तरह के कोqशबीर, १६ तरह की चटनी व १६ तरह के पक्वान्नों का भोग अर्पित किया जाता है. साथ ही पूरण से निर्मित १६ दियों से देवी की आरती की जाती है. इसके अलावा शाम के समय हल्दी-कुमकुम का कार्यक्रम आयोजीत कर रातभर जागरण किया जाता है. पश्चात तीसरे दिन खीर-कानवले का नैवैद्य अर्पित कर देवी का विसर्जन किया जाता है. जिसके तहत परंपरा के अनुरूप मुखौटों को अपने स्थान से हिलाया जाता है और नदी से लाये गये पत्थरों को नदी में विसर्जित करते समय नदी की मिट्टी लाकर उसे घर में छिडका जाता है.

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