डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन एन्ड वैलिडिटेशन में पकडी गई विद्यापीठ की गडबडी
खुद कुलपति व राज्यपाल के सामने पेश किये गये फर्जी आंकडे
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विद्यापीठ के कारनामे ‘हरि अनंता, हरि कथा अनंता’
अमरावती/दि.20- इस समय नैक समिती द्वारा संगाबा अमरावती विद्यापीठ को दिये गये ‘बी प्लस प्लस’ मानांकन व 2.93 स्कोर का मामला चर्चा में चल रहा है. यह चर्चा इसलिए भी वाजिब है, क्योेंकि इससे पहले वर्ष 2015-16 में इसी नैक समिती द्वारा संगाबा अमरावती विद्यापीठ को ‘ए’ मानांकन देने के साथ ही 3.07 का स्कोर दिया गया था. ऐसे में मौजूदा मानांकन व स्कोर को देखकर साफ है कि, नैक मूल्यांकन में संगाबा अमरावती विद्यापीठ की स्थिति पिछड गई है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि, नैक मानांकन में संगाबा अमरावती विद्यापीठ का स्कोर घसरने और स्थिति के पिछडने की वजहों पर बात की जाये और उनकी मीमांसा भी की जाये. इसी प्रयास के तहत गत रोज ‘अमरावती मंडल’ में विद्यापीठ के नैक मानांकन से संबंधित खबर की पहली किश्त प्रकाशित की गई थी. वहीं आज इस खबर की दूसरी व अंतिम किश्त प्रकाशित की जा रही है. जिसमें कुछ तकनीकी मुद्दों पर बात करने का प्रयास किया जायेगा.
चूंकि नैक समिती द्वारा विद्यापीठ के कार्य प्रदर्शन और हासिल उपलब्धियों के आधार पर ही यह मूल्यांकन किया जाता है, तो इसका साफ मतलब है कि, कार्य प्रदर्शन और उपलब्धियों के मोर्चे पर संगाबा अमरावती विद्यापीठ नैक समिती के मानकों पर खरा नहीं उतर पाया और अपनी पुरानी सम्मानजनक स्थिति से एक पायदान नीचे खिसक जाने की अवमानपूर्ण स्थिति का विद्यापीठ को सामना करना पडा. ऐसे में यह देखना बेहद जरूरी है कि, संगाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा अपने कार्य प्रदर्शन को लेकर नैक समिती के सामने क्या जानकारी रखी गई और उन्हें नैक समिती ने किस हद तक खरा पाया, जिसके आधार पर संगाबा अमरावती विद्यापीठ का मूल्यांकन किया गया.
बता दें कि नैक परीक्षण के लिए आवेदन करने के साथ ही किसी भी विद्यापीठ को सेल्स स्टडी रिपोर्ट यानी स्वमूल्यांकन करते हुए उसकी जानकारी नैक समिती को भेजना होता है. इसके साथ ही रिपोर्ट से संबंधित आंकडे और दस्तावेज भी नैक समिती को भेजे जाते हैं, जिसका नैक द्वारा अपने स्तर पर परीक्षण किया जाता है, जिसे डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन एन्ड वैलिडिटेशन (डीवीवी) कहा जाता है. डीवीवी के तहत नैक समिती द्वारा इन आंकडों एवं दस्तावेजों का अपने स्तर पर परीक्षण करने के साथ ही जमीनी हकीकत का मुआयना करने के लिए समिती सदस्यों को संबंधित विद्यापीठ में भेजा जाता है. इसके तहत विद्यापीठ में आनेवाले समिती सदस्यों द्वारा 300 अंकों के आधार पर गुणांकन दिया जाता है. वहीं अपने पास आयी रिपोर्ट, आंकडों और दस्तावेजों के आधार पर कंप्यूटर प्रणाली के जरिये बंगलुरू स्थित नैक समिती द्वारा 700 अंकों के आधार पर अंक प्रदान किये जाते है. इसके तहत विद्यापीठ की ओर से पेश किये गये आंकडों की पडताल करते हुए नैक द्वारा उन आंकडों की ‘असलियत’ भी खोजी जाती है. ऐसे में एक तरह से डीवीवी को ‘सच का आईना’ भी कहा जा सकता है.
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प्रत्यक्ष निरीक्षण व नैक मूल्यांकन में जमीन आसमान का फर्क
यहां यह सर्वाधिक उल्लेखनीय है कि, संगाबा अमरावती विद्यापीठ के दौरे पर आयी नैक समिती के सदस्यों द्वारा अपने परीक्षण में संगाबा अमरावती विद्यापीठ को 300 में से 94 फीसदी अंक प्रदान किये गये. वहीं जो आंकडे और दस्तावेज संगाबा अमरावती विद्यापीठ की ओर से नैक (बंगलुरू) को भेजे गये थे. उनका परीक्षण करते हुए कंप्यूटर प्रणाली के जरिये संगाबा अमरावती विवि को महज 60 फीसद अंक मिले है. ऐसे में साफ समझा जा सकता है कि, जहां पर ‘मानवीय हस्तक्षेप’ था, वहां पर गडबडी हुई, क्योंकि मानवीय हस्तक्षेप को कुछ हद तक ‘मैनेज’ किया जा सकता है, लेकिन जैसे ही संगाबा अमरावती विवि की ओर से पेश किये गये आंकडों को बंगलुरू स्थित नैक की कंप्यूटर प्रणाली ने तय मानकों के आधार पर परखा, तो कई गडबडियां सामने आयी. यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि, अब तक अमूमन यह इतिहास और अनुभव रहा है कि प्रत्यक्ष दौरे पर आनेवाली समिती द्वारा परीक्षण के बाद दिये गये अंक कम होते हैं और नैक बंगलुरू द्वारा दिये जानेवाले अंक अधिक रहते हैं. इसके बावजूद वर्ष 2015-16 में संगाबा अमरावती विद्यापीठ को ‘ए’ मानांकन प्राप्त हुआ था. किंतु ऐसा पहली बार हुआ है, जब प्रत्यक्ष दौरे पर आयी नैक समिती के सदस्यों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में रहनेवाले 300 में से ‘रिकॉर्डतोड’ 94 फीसद अंक दिये गये. लेकिन खुद नैक ने अपने अधिकार क्षेत्रवाले 700 अंकों का मूल्यांकन करते हुए इससे करीब दो-तिहाई कम यानी केवल 60 फीसद अंक प्रदान किये. यही सबसे मुख्य वजह रही कि, इस बार संगाबा अमरावती विवि को एक पायदान नीचे खिसककर ‘बी प्लस प्लस’ मानांकन और 2.93 के स्कोर पर संतोष करना पडा.
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मूल्यवर्धित व जीवनकौशल्य पाठ्यक्रमों की स्थिति
नैक समिती द्वारा जिन प्रमुख मुद्दों को लेकर अंकदान एवं परीक्षण किया जाता है, उनमें सबसे प्रमुख मुद्दा यह है कि, विगत पांच वर्ष के दौरान विद्यापीठ द्वारा चलाये जानेवाले मूल्यवर्धित व जीवनकौशल्य पाठ्यक्रम में कितने विद्यार्थी प्रवेशित हुए, इसे लेकर विद्यापीठ द्वारा पेश किये गये आंकडे काफी हैरतअंगेज है, क्योेंकि खुद विद्यापीठ के मुताबिक वर्ष 2015-16 व 2016-17 के दौरान मूल्यवर्धित व जीवनकौशल्य आधारित पाठ्यक्रमों में कोई विद्यार्थी प्रवेशित नहीं हुआ था. वहीं वर्ष 2017-18 में केवल 173 तथा वर्ष 2018-19 में 599 विद्यार्थी इन पाठ्यक्रमों में प्रवेशित हुए थे. चूंकि एक्यूएआर व एसएसआर रिपोर्ट को गठ्ठा पध्दति से पेश किया गया था. अत: नैक के पास इन आंकडों की पडताल हेतु कोई पर्याय नहीं था. जिसकी वजह से नैक ने डीवीवी के बाद इन आंकडों को जस का तस स्वीकार किया, लेकिन वर्ष 2019-20 में विद्यापीठ द्वारा इन पाठ्यक्रमों में 641 विद्यार्थी प्रवेशित बताये गये थे, जिसकी पडताल करने के बाद डीवीवी में नैक ने पाया कि, विद्यापीठ में वर्ष 2019-20 के दौरान इन पाठ्यक्रमों के लिए केवल 155 विद्यार्थी ही प्रवेशित थे. यहां पर दो सवाल खडे होते हैं, पहला यह कि, क्या खुद विद्यापीठ को इस बात की सटीक और सही जानकारी नहीं थी कि, उसके यहां किस पाठ्यक्रम में कितने विद्यार्थी प्रवेशित हैं और दूसरा यह कि, पांच लाख की विद्यार्थी संख्या रहनेवाले संगाबा अमरावती विद्यापीठ में केवल पांच-छह सौ विद्यार्थी ही मूल्यवर्धित व जीवन कौशल्य आधारित पाठ्यक्रम से कैसे जुडे हैं, जबकि यह संख्या तो काफी अधिक होनी चाहिए. क्योंकि मौजूदा दौर की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए रोजगार सक्षम शिक्षा देना बेहद अनिवार्य है. लेकिन अमरावती विद्यापीठ में जहां विगत तीन वर्ष के दौरान महज डेढ हजार से कम विद्यार्थियों को मूल्यवर्धित व जीवनकौशल्य आधारित शिक्षा दी गई. वहीं इससे पहले दो वर्ष किसी भी विद्यार्थी को ऐसी कोई शिक्षा नहीं दी गई. ऐसे में एक और सवाल खडा होता है कि, क्या संगाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा केवल कागजी डिग्रियोंवाले स्नातक व स्नातकोत्तर विद्यार्थी तैयार किये जा रहे हैं, जिनके बौध्दिक ज्ञान व कौशल्य का कोई स्तर ही नहीं है.
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रिजर्व कैटेगिरी के छात्रों की संख्या में भी काफी फर्क
संगाबा अमरावती विद्यापीठ के प्रशासन की ‘संजीदगी’ और ‘सतर्कता’ का स्तर क्या है, इसे एक और उदाहरण से समझा जा सकता है. मूल्यांकन व परीक्षण के लिए नैक द्वारा विद्यापीठ से पूछा जाता है कि, उनके यहां विगत पांच वर्षों के दौरान आरक्षित सीटों पर कितने विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया. अब ये आंकडे तो बेहद सटीक व सही होने चाहिये. क्योेंकि किस संवर्ग में कितने विद्यार्थी प्रवेशित हुए, इसकी जानकारी विद्यापीठ के पास ही होती है. लेकिन यहां पर भी संगाबा अमरावती विद्यापीठ की गडबडी पकडी गई. संगाबा अमरावती विद्यापीठ की ओर से नैक समिती को भेजी गई रिपोर्ट में बताया गया कि, विगत पांच वर्षों के दौरान वर्ष 2015-16 में 670, वर्ष 2016-17 में 663, वर्ष 2017-18 में 908, वर्ष 2018-19 में 920 तथा वर्ष 2019-20 में 947 विद्यार्थियोें को आरक्षित सीटों यानी रिजर्व कैटेगिरी के तहत विभिन्न पाठ्यक्रमोें में प्रवेश दिया गया, लेकिन डीवीवी के बाद नैक ने पाया कि, विगत पांच वर्षों के दौरान संगाबा अमरावती विद्यापीठ में वर्ष 2015-16 में 383, वर्ष 2016-17 में 423, वर्ष 2017-18 में 562, वर्ष 2018-19 में 586 तथा वर्ष 2019-20 में 599 विद्यार्थी आरक्षित सीटों पर प्रवेशित हुए. उपरोक्त आंकडों में साफ-साफ और काफी बडा फर्क दिखाई देता है. ऐसे में क्या यह मान लिया जाये कि, क्या संगाबा अमरावती विद्यापीठ में बैठे और प्रतिमाह लाखों रूपयों का भारी-भरकम वेतन लेनेवाले लोगों को सामान्य सी गिनती भी नहीं आती.
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पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों की गिनती में भी भद्द पिटी
नैक द्वारा विद्यापीठ से पूछा जाता है कि, उनके यहां राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं मान्यता प्राप्त संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किये गये पूर्णकालिक शिक्षकों की संख्या कितनी है, जिस पर संगाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा नैक को बताया गया कि, वर्ष 2015-16 में 2, वर्ष 2016-17 में 6, वर्ष 2017-18 में 4, वर्ष 2018-19 में 14 तथा वर्ष 2019-20 में 22 पूर्णकालिक शिक्षकों को अलग-अलग स्तरों पर पुरस्कार प्राप्त हुए हैं. किंतु हैरत और शर्म की बात यह रही कि, नैक ने अपने परीक्षण में पाया कि, केवल वर्ष 2015-16 में संगाबा अमरावती विद्यापीठ के मात्र 1 पूर्णकालिक शिक्षक को पुरस्कार मिला है. वहीं वर्ष 2016-17 से लेकर 2019-20 तक किसी भी शिक्षक को कोई पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, जिन शिक्षकों की गिनती संगाबा अमरावती विद्यापीठ ने अपनी रिपोर्ट में की थी, आखिर उस गिनती का सच क्या है और यदि नैक की डीवीवी के मुताबिक विगत चार वर्षों में विद्यापीठ के किसी भी शिक्षक को कोई पुरस्कार नहीं मिले हैं, तो फिर विद्यापीठ ने चार वर्षों में 46 पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों की गिनती कैसे कर ली.
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रिसर्च पेपर प्रकाशन में भी पकडा गया झूठ
संगाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा नैक को बताया गया कि, ‘स्कोप्स’ तथा ‘वेव ऑफ सायन्स’ जैसे प्रतिष्ठित जर्नलों में समय-समय पर विद्यापीठ की ओर से शोध प्रबंध यानी रिसर्च पेपर प्रकाशित किये जाते हैं, जिसके तहत वर्ष 2015-16 में 156, वर्ष 2016-17 में 268, वर्ष 2017-18 में 134, वर्ष 2018-19 में 225 तथा वर्ष 2019-20 में 140 रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए है. किंतु डीवीवी के बाद नैक ने पाया कि, संगाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा वर्ष 2015-16 में 89, वर्ष 2016-17 में 70, वर्ष 2017-18 में 65, वर्ष 2018-19 में 120 तथा वर्ष 2019-20 में 75 रिसर्च पेपर प्रकाशित किये गये है. ऐसे में फिर वही सवाल उठाया जा सकता है कि, बाकी के रिसर्च पेपर कहां प्रकाशित हुए. बॉक्स
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रिसर्च पेपर के आंकडों को लेकर राज्यपाल से भी झूठ
सबसे उल्लेखनीय बात यहीं पर है, जिसका उल्लेख खबर के मुख्य शीर्षक में भी किया गया है. रिसर्च पेपर के प्रकाशन से संबधित मसले और आंकडों को लेकर विद्यापीठ प्रशासन एवं तत्कालीन कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर द्वारा विद्यापीठ के कुलपति एवं राज्य के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी तक को गुमराह किया गया. अपनी सेवानिवृत्ति से थोडा पहले तत्कालीन कुलगुरू डॉ. चांदेकर ने राज्यपाल कोश्यारी को अपने कार्यकाल से संबंधित एक पुस्तिका भेंट की थी. अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्तिका में साफ तौर पर लिखा गया है कि, विगत पांच वर्ष के दौरान संगाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा 900 से अधिक रिसर्च पेपर विभिन्न नामांकित जर्नलों में प्रकाशित किये गये. ध्यान देने लायक बात यह है कि, विद्यापीठ द्वारा अपनी रिपोर्ट अप्रैल माह में नैक को भेजी गई थी, जिसमें पांच वर्ष के दौरान 920 रिसर्च पेपर प्रकाशित होने का दावा किया गया था. वहीं 14 जून तक नैक द्वारा डीवीवी की प्रक्रिया पूर्ण करते हुए अपनी रिपोर्ट जारी कर दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि, विद्यापीठ द्वारा विगत पांच वर्षों के दौरान 920 नहीं, बल्कि केवल 419 रिसर्च पेपर प्रकाशित किये गये हैं. लेकिन इसके बावजूद और इसके बाद भी तत्कालीन कुलगुरू डॉ. चांदेकर ने राज्यपाल को सौंपी गई पुस्तिका में अपने कार्यकाल दौरान 900 से अधिक रिसर्च पेपर प्रकाशित होने का दावा किया था. जिसे पूरी तरह से झूठ व भ्रामक कहा जा सकता है. साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि, विद्यापीठ ने खुद अपने कुलपति के सामने गलत बयानी की है.
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पांच वर्ष में केवल 5.95 लाख रूपये का बाहरी फंड!
उल्लेखनीय है कि, अमूमन सभी विद्यापीठों द्वारा अपने पूर्व विद्यार्थियोें का सम्मेलन आयोजीत किया जाता है. जिसमें उनसे विद्यापीठ के विकास एवं शैक्षणिक सुविधाओं व सेवाओें के विस्तार हेतु आर्थिक सहयोग मांगा जाता है. विद्यापीठ से निकलकर अपने-अपने जीवन में किसी सफलतम मुकाम पर पहुंचनेवाले पूर्व विद्यार्थी अपने-अपने विद्यापीठों को ऐसे ‘एल्युमिनाय’ आयोजन के तहत लाखों-करोडों रूपयों का फंड भी देते है. इसके अलावा विद्यापीठों द्वारा अपने-अपने कार्यक्षेत्र अंतर्गत व संपर्क में रहनेवाले बडे उद्योग समूहों से बडे पैमाने पर सीएसआर फंड भी प्राप्त किया जाता है, ताकि संशोधन संबंधी कामों को गतिमान किया जा सके. हैरत की बात यह है कि, विगत पांच वर्ष के दौरान वर्ष 2015-16 से वर्ष 2017-18 तक तीन वर्षों में विद्यापीठ को एक रूपये का भी बाहरी फंड नहीं मिला. वहीं वर्ष 2018-19 में 2.73 लाख तथा वर्ष 2019-20 में 3.07 लाख रूपये का फंड मिलने की बात विद्यापीठ द्वारा नैक से कही गई. जिसकी ऐवज में नैक ने विद्यापीठ को बताया कि, वर्ष 2018-19 में 2.91 लाख तथा वर्ष 2019-20 में मात्र 3.05 लाख रूपये का फंड मिला है. यहां पर भी विद्यापीठ का गणित गडबडाया दिखा और अब विद्यापीठ इस सवाल के घेरे में भी है कि, जब विद्यापीठ के पास फंड ही उपलब्ध नहीं है, तो फिर विद्यार्थी विकास व संशोधन संबंधी काम कैसे गतिमान होंगे. बता दें कि, इन्हीं दो महत्वपूर्ण विषयों की वजह से विद्यापीठ का मानांकन नीचे खिसका है. सबसे उल्लेखनीय बात यह भी है कि, विगत पांच वर्षों के दौरान विद्यापीठ में कभी भी पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन ही नहीं हुआ, तो पूर्व विद्यार्थियों द्वारा अपने विद्यापीठ को सहायता कैसे प्रदान की जाती.
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सभी क्षेत्रों को गंभीरतापूर्वक सोचना होगा
जैसे हमने कल भी कहा था कि, अमूमन लोग-बाग सोचते हैं कि, विद्यापीठ का मामला केवल शिक्षकों, विद्यार्थियों और विद्यापीठ के कर्मचारियों से संबंधित है, जिससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है. किंतु हकीकत में ऐसा नहीं है, क्योेंकि विद्यापीठ ही अपने कार्यक्षेत्र अंतर्गत आनेवाले भौगोलिक क्षेत्र की शैक्षणिक के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक दशा व दिशा तय करता है, जिसके दम पर संबंधित परिसर का भविष्य निर्धारित होता है. ऐसे में नैक मानांकन में विद्यापीठ के पिछडने को केवल विद्यापीठ का मसला न माना जाये, बल्कि समाज के सभी घटकों द्वारा विद्यापीठ प्रशासन पर इस बात को लेकर दबाव बनाया जाये कि, विद्यापीठ द्वारा अपनी शैक्षणिक सेवाओं व सुविधाओं के स्तर में सुधार किया जाये और विद्यापीठ को अपने व्यक्तिगत हितों व राजनीतिक आखाडा बनाने की बजाय विद्यापीठ के मूल उद्देश्य के तहत विद्यार्थियों को मुख्य केंद्र बिंदू मानकर उन्हें बेहतरीन व रोजगार सक्षम शिक्षा दी जाये. ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अंतत: यह हमारे और आपके बच्चों के भविष्य का सवाल है, यह हमारे संभाग की नई पीढी के शिक्षित होने के साथ ही सुशिक्षित होने का मसला है. अत: इसे लेकर हमें और आपको ही आवाज उठानी होगी. इसे महज विद्यापीठ और विद्यापीठ के अधिकारियों व पदाधिकारियों का मामला मानकर नहीं छोडा जा सकता.
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अन्य ‘रकानों’ के आंकडों में भी भारी-भरकम फर्क
इस खबर के साथ प्रकाशित विषय और उनसे संबंधित आंकडे तो केवल इक्का-दुक्का उदाहरण भर है. एक हजार अंकों के मूल्यांकन हेतु नैक द्वारा विद्यापीठ से करीब ढाई सौ मामलों को लेकर जानकारी मांगी जाती है तथा हर विषय के लिए चार-चार अंक दिये जाते है. लगभग सभी ‘रकानों’ में विद्यापीठ द्वारा जो आंकडे भरते हुए अपने ही हाथों अपनी पीठ थपथपाई गई और नैक समिती के सदस्यों की ‘शाही व आलीशान’ आवभगत करते हुए स्थानीय स्तर पर 94 फीसद अंक हासिल किये गये. उसका सच नैक की कंप्यूटरीकृत प्रणाली ने खोलकर सामने रख दिया और सभी रकानों में भरे गये आंकडों को डीवीवी के बाद घटा दिया गया. जिसकी वजह से नैक (बंगलुरू) द्वारा संगाबा अमरावती विद्यापीठ को 700 में से 60 फीसद अंक दिये गये. यदि उन सभी रकानों के आंकडों और तथ्यों को सामने रखा जाये, तो शायद इस खबर को अगले चार-पांच दिनों तक सिलसिलेवार प्रकाशित करना पडेगा. ऐसे में केवल कुछ उदाहरण देकर हम इस खबर को विराम दे रहे है.