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विदर्भ के प्राकृतिक पर्यटन स्थलों का सर्किट केवल कागजों पर

हवा-हवाई साबित हुई वन व पर्यटन विभाग की घोषणा

अमरावती प्रतिनिधि/दि.१७ – विदर्भ क्षेत्र पर प्रकृति काफी मेहरबान है. यहां पर काफी घने जंगल है. जहां विभिन्न प्रजातियों के वन्य प्राणी एवं वृक्ष संपदा है. इस बात के मद्देनजर विदर्भ क्षेत्र में पर्यटन को बढाने हेतु कई योजनाएं बनायी गयी. जिसके तहत वन विभाग द्वारा महाराष्ट्र निसर्ग पर्यटन विकास मंडल की स्थापना की गई और विदर्भ में निसर्ग पर्यटन स्थलों का सर्किट तैयार करने की घोषणा भी की गई थी. लेकिन यह सबकुछ फिलहाल कागजों पर ही दिखाई दे रहा है और तमाम घोषणाएं फिलहाल हवा-हवाई है.
बता दें कि, 8 दिसंबर 2015 को महाराष्ट्र पर्यटन विकास मंडल की स्थापना की गई थी. विदर्भ परिसर के प्राकृतिक सौंदर्य और वन पर्यटन में उपलब्ध अवसरों को देखते हुए इसका मुख्यालय भी विदर्भ क्षेत्र के नागपुर में रखा गया. इसके अलावा विदर्भ में रहनेवाले सामाजिक वनीकरण के 18 प्रकल्पों सहित कुल 88 प्रकल्पों के विकास का प्रस्ताव 4 वर्ष पूर्व तैयार किया गया. जिसके लिए कुछ प्रमाण में निधी भी प्राप्त हुई और काम शुरू किया गया. विदर्भ क्षेत्र में निसर्ग पर्यटन का विकास हो, इस बात के मद्देनजर महाराष्ट्र निसर्ग पर्यटन विकास मंडल ने गत वर्ष विदर्भ में स्थित निसर्ग पर्यटन स्थलों का सर्किट तैयार करने की घोषणा की थी. जिसके अंतर्गत अमरावती जिले के मेलघाट सहित आलापल्ली, सिरोंचा, भामरागढ, ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प, पेंच अभयारण्य, बोर व्याघ्र प्रकल्प, कर्‍हांडला अभयारण्य व टिपेश्वर अभयारण्य आदि का इस सर्किट में समावेश करना तय किया गया था. लेकिन हकीकत में इस घोषणा के बाद कुछ भी नहीं हुआ. इस संदर्भ में अधिक जानकारी हासिल करने पर पता चला कि, महाराष्ट्र पर्यटन विकास मंडल के सहयोग से विदर्भ क्षेत्र में निसर्ग पर्यटन का सर्किट बनाया जाना था. लेकिन ऐसा करने के लिए अब तक कोई मुहूर्त ही नहीं मिला.
उल्लेखनीय है कि, राज्य सहित देश के विभिन्न हिस्सों से जब कोई पर्यटक विदर्भ क्षेत्र में पर्यटन के लिए आता है, तो उसे केवल ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प ही पता होता है. और वह यहां से मात्र दो दिन में वापिस लौट जाता है. लेकिन यदि विदर्भ क्षेत्र की साधनसंपत्ति का योग्य उपयोग करते हुए पर्यटन के लिहाज से उचित नियोजन किया जाये तो यहां निसर्ग व वन पर्यटन के लिए काफी संभावनाएं है. यहां पर आने के बाद पर्यटक कम से कम एक सप्ताह का समय विदर्भ में बिताये, इस तरह का सर्किट तैयार किया जाना बेहद जरूरी है. जिसके लिए केवल वन विभाग पर ही निर्भर न रहते हुए पर्यटन विकास मंडल, वस्तु संग्रहालय व पुरातत्व विभाग द्वारा संयुक्त रूप से नियोजन किया जाना चाहिए, क्योंकि फिलहाल विदर्भ में पर्यटन केवल बाघों के आसपास ही केंद्रीत है. जबकि यहां पर बाघों के अलावा भी और बहुत कुछ ऐसा है, जिसकी ओर ध्यान दिये जाने पर पर्यटन क्षेत्र में काफी विकास किया जा सकता है.

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