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राज्य में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो मात्र कागजातों पर

राज्य में इसी कारण बढ रही वन्य प्राणियों की तस्करी

  •  केंद्रीय पर्यावरण, वन व मौसम बदल मंत्रालय के थे आदेश

अमरावती/प्रतिनिधि दि.30  – वन्यजीवों की शिकार, अवैध व्यापार व वनों में अपराधों की बढती संख्या, आंतरराष्ट्रीय शिकारियों की सक्रिय टोलियां व होने वाले व्यापार देख इसपर राज्यस्तर पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए राज्यों ने पूर्ण समय समर्पित ऐसा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो स्थापन करना चाहिए, इस तरह के निर्देश केंद्रीय पर्यावरण, वन व मौसम बदलाव मंत्रालय ने 14 नवंबर 2014 में सभी राज्यों को दिये थे. मिझोरम छोड किसी भी राज्य ने इस तरह के ब्यूरो की स्थापना नहीं की. जिससे राज्यभर में वन्यजीवों की तस्करी बढ चुकी है. भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 अंतर्गत देश के सभी वन्य जीवों को सुरक्षा प्रदान की गई हेै. किंतु वन्यजीवों के शिकारी, अवैध व्यापार व अपराधों की बढती संख्या, आंतरराष्ट्रीय शिकारियों की सक्रीय टोलियां और होेने वाले व्यापार देख इसपर राज्य स्तर पर प्रभावी नियंत्रण रखना यह समय की जरुरत है. वर्तमान स्थिति में कार्यरत प्रशासकीय यंत्रणा में कमी रहने से वन्यजीव अपराध नियंत्रण प्रभावी रुप से करना संभव नहीं है. जिससे राज्य वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्युरो की जरुरत अधोरेखित होती है.
फिलहाल बढते वन्यजीव अपराध नियंत्रीत करने के लिए वन विभाग के बाद वन व पुलिस यंत्रणा संयुक्त रुप से काम करने वाली एक संघ व्यवस्था नहीं है. साथ ही वन व पुलिस विभाग यह अलग अलग प्रशासकीय यंत्रणा रहने से संयुक्त काम करने काफी मर्यादा है. जिससे संसाधनों के सुसज्ज व परिपूर्ण रहने वाली स्वंतत्र यंत्रणा स्थापन करना अनिवार्य है. केंद्रीय वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो का प्रादेशिक कार्यालय मुंबई में है. इस कार्यालय अंतर्गत महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा राज्य व दिव तथा दमन आदि केंद्रशासित प्रदेश मिलाकर तीन राज्य व एक केंद्रशासित प्रदेश आते है. इसके लिए केवल एक प्रादेशिक संचालक, दो पुलिस निरीक्षक व तीन सिपाही है. तीन राज्य व एक केंद्रशासित प्रदेश इतना बडा कार्यक्षेत्र देखा तो केवल पांच मानव संसाधन पर कामकाज की कमान है. इसके अलावा अन्य भी काम उनके पास रहने से वन्यजीव अपराध नियंत्रण करने मर्यादा आती है.

  • राज्य में बडी मात्रा में होती है शिकार

महाराष्ट्र यह नैसर्गिक रुप से जैव संपन्न राज्य है. राज्य के 6 व्याघ्र प्रकल्प, 6 राष्ट्रीय उद्यान व पूरे 50 से ज्यादा अभ्यारण्य व संवर्धन आरक्षित क्षेत्र में तथा प्रादेशिक वन विभाग अंतर्गत आरक्षित जंगल रहने वाले वन्य बडी मात्र में जैव विविधता पायी जाती है. किंतु आज भी बाघ, तेेंदुएं व अन्य वन्य प्राणियों के शिकारी और अवैध व्यापार का धोका है. बाघ, तेंदुआ, भालू, जंगली बिल्ली, हिरण वर्गीय प्राणी जैसे चितल के साथ ही राष्ट्रीय पक्षी मोर, तितर, बटेर व स्थलांतरीत पक्षी आदि की शिकार बडी मात्रा में होते दिखाई देती है.

बाघ व अन्य वन्यजीवों की शिकार व व्यापारी विरोधी मुहिम में वन विभाग के साथ काफी कार्रवाईयां की है. यह अनुभव व प्रत्यक्ष जरुरत ध्यान में रख स्वतंत्र ‘राज्य वन्यजीव अपराध अन्वेषण ब्यूरो’ निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता है. राज्य वन्यजीव मंडल के माध्यम से मुख्यमंत्री को अपील करेंगे. बाघ व वन्यजीवों के बारे में संवेदनशील रहने वाली यह सरकार निश्चित ही इसका सकारात्मक विचार करेगी, यह विश्वास है.
– यादव तरटे पाटिल
सदस्य, राज्य वन्यजीव मंडल

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