मुख्य समाचार

सुप्रीम कोर्ट के स्थगनादेश से मराठा समाज में रोष व संताप की लहर

विविध प्रतिनिधियों ने फैसले को बताया आश्चर्यकारक

  • विद्यार्थियों व युवाओं के सपने धुमिल होने की आशंका जतायी

अमरावती प्रतिनिधि/दि.१० – महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को नौकरी और शिक्षा में आरक्षण के मामले पर गत रोज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जहां उच्चतम न्यायलय ने सरकारी नौकरियों व शैक्षिक संस्थानों में २०२०-२१ सत्र के लिए आरक्षण पर रोक लगा दी और सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने मामले को विचार के लिए बडी बेंच में भेजा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीजी दाखिलों को नहीं छेडा नहीं जाएगा. साथ ही चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि मामले के लिए बडी बेंच का गठन करेंगे जोकि मराठा आरक्षण की वैधता पर विचार करेगी. इस मामले को लेकर दैनिक अमरावती मंडल ने मराठा आरक्षण के मसले को लेकर हुए आंदोलनों में सक्रिय रहे मराठा समाज के स्थानीय पदाधिकारियों से बातचीत करते हुए उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही. जिसमें अधिकांश ने इस फैसले पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि, यह फैसला आश्चर्यकारक रहने के साथ ही बेहद दुर्देवी व दुर्भाग्यशाली है और इससे मराठा समाज के विद्यार्थियों एवं रोजगार की तलाश में रहनेवाले युवाओं के सपने प्रभावित होंगे.

न्याय के लिए इंतजार हुआ लंबा.
मराठा सmayoura deshmukh-amravati-mandalमाज विगत लंबे समय से संघर्षरत रहने के साथ ही अपने लिये न्याय की प्रतिक्षा कर रहा है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से हमारा यह इंतजार और अधिक लंबा हो गया है. न्याय मिलने में हो रही इस देरी की वजह से समाज के विद्यार्थियों व युवाओं में निराशा का वातावरण है. जिसके लिए पूरी तरह से सरकार जिम्मेदार है. सरकारने सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण को लेकर बेहद प्रभावी तरीके से अपना पक्ष रखना चाहिए था, जिसमें सरकार काफी हद तक नाकाम रही है.
– मयूरा देशमुख राष्ट्रीय संगठक, जीजाउ ब्रिगेड.

मौजूदा सरकार के प्रयास कम पडे.
मराठा आरक्षण को लेकर राज्य के पूर्ववर्ती फडणवीस सरकार ने बेहद अभ्यासपूर्ण तरीके से आरक्षण का मसौदा व कानून तैयार करने का काम किया था, जो हाईकोर्ट के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में भी स्टैण्ड हुआ. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में चल pravin-pote-amravati-mandalरही सुनवाई के समय राज्य की मौजूदा महाविकास आघाडी सरकार द्वारा सही ढंग से कदम नहीं उठाये गये. अब मौजूदा सरकार के प्रयास कम पड गये. जिसका नतीजा आज हम सभी के सामने है. हालांकि इस बात को लेकर राहत जतायी जा सकती है कि, अब मराठा आरक्षण की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की बडी बेंच करेगी, लेकिन मामले को संविधानपीठ के पास भेजते समय सुप्रीम कोर्ट ने जारी शैक्षणिक सत्र के लिए मराठा आरक्षण को जिस तरह से स्थगनादेश दिया है, वह मौजूदा सरकार की विफलता को दर्शाता है.
– प्रवीण पोटे पाटिल पूर्व राज्यमंत्री व पालकमंत्री.

महाविकास आघाडी सरकार की विफलता हुई उजागर.
राज्य की पूर्ववर्ती फडणवीस सरकार ने मराठा समाज को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए बेहद सही ढंग से कदम उठाये थे. साथ ही राज्य में राज्य पिछडावर्गीय आयोग बनाने की पहल की थी. यदि वह आयोग बन जाता, तो विशेष पिछडावर्गीय प्रवdinesh-suryavanshi-amravati-mandalर्ग के आरक्षण के लिए आज तकलीफ नहीं जाती. वहीं राज्य की मौजूदा महाविकास आघाडी सरकार सुप्रीम कोर्ट को यह आश्वासन देने में विफल रही कि, मराठा आरक्षण की वजह से पिछडावर्गीयों के आरक्षण पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा. यह एक तरह से महाविकास आघाडी सरकार की विफलता है. वैैसे भी महाविकास आघाडी सरकार को समाज के किसी भी वर्ग से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह सरकार केवल अपनी राजनीति करने में ही व्यस्त है. – प्रा. दिनेश सूर्यवंशी प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, भाजपा.

आश्चर्यकारक है स्थगनादेश का फैसला.
मराठा आरक्षण के समर्थन में दायर की गई याचिका में इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ को सौंपने की मांग की गई थी, जो स्वीकार कर ली गई, यह अच्छी बात है. लेकिन शिक्षा में प्रवेश के आरक्षण को जारी शैक्षणिक सत्र में स्थगित रखने को लेकर sanjay-khodke-amravati-mandalदिया गया आदेश बेहद आश्चर्यकारक है. इस स्टे ऑर्डर के खिलाफ आगामी सोमवार या मंगलवार को चुनौती देते हुए याचिका दायर की जायेगी, ताकि किसी भी विद्यार्थी का कोई शैक्षणिक नुकसान न हो. राज्य सरकार मराठा आरक्षण को लेकर पूरी तरह से गंभीर है और हम राज्य में मराठा आरक्षण लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबध्द भी है.
– संजय खोडके प्रदेश उपाध्यक्ष, राकांपा.

 

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के प्रयास कम पडे.
हाईकोर्ट के फैसले को देखते हुए मराठा आरक्षण को स्थगनादेश नहीं मिलना था, लेकिन बावजूद इसके स्थगनादेश मिला है. इससे ध्यान में आता है कि, राज्य की महाविकास आघाडी सरकार सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण का पक्ष रखने में नाकाम रही है. आरक्षण मराठा समाज का अधिकार है तथा किसी भी अन्य संवर्ग के आरक्षण का धक्का लगाये बिना मराठा समाज कोlinata-pawar-amravati-mandal आरक्षण दिया गया था. ऐसे में मराठा आरक्षण की वजह से किसी पर भी अन्याय होने का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन इसके लिए बेहद जरूरी था कि, राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण का मसला बेहद प्रभावी तरीके से उठाया जाता, किन्तु महाराष्ट्र सरकार इस काम में विफल रही है. जिसकी वजह से मराठा समाज को काफी नुकसान का सामना करना पडेगा. अत: सरकार ने इस दिशा में जल्द से जल्द आवश्यक कदम उठाने चाहिए.
-लिनता पवार जिलाध्यक्ष (पश्चिम), जीजाउ ब्रिगेड.

 

युवाओं के भविष्य के साथ राजनीतिक खिलवाड न हो.
मराठा आरक्षण के लिए विगत पंद्रह वर्षों से भी अधिक समय से आंदोलन चल रहे है और लंबे संघर्ष के बाद मराठा समाज के हिस्से में आरक्षण मिलने की खुशी आयी, qकतु अब इस मामले को लेकmanali-tayde-amravati-mandalर विशुध्द तौर पर राजनीति चल रही है. जिसका शिकार मराठा समाज के आम युवाओं व विद्यार्थियों को होना पड रहा है. इस समय कोरोना की महामारी के चलते पहले ही हालात बेहद विपरित है. ऐसे समय राज्य सरकार एवं अदालत ने आम लोगों की भावनाओं को केंद्र में रखकर विचार करना चाहिए और जनभावनाओं के साथ बिल्कूल भी खिलवाड नहीं होना चाहिए. – प्रा. मनाली तायडे जिलाध्यक्ष, जीजाउ ब्रिगेड.

 

लगातार अन्याय का शिकार हो रहा मराठा समाज.
आरक्षण की सुविधा प्राप्त करने के लिए मराठा समाज ने काफी संघर्ष करने के साथ ही बडे-बडे त्याग भी किये है. अपनी इस मांग को लेकर मूक मोर्चा व क्रांति मोर्चा निकाले गये. जिसमें कई युवाओं की जाने भी गयी और समाज के कई लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. इसके बाद मिले मराठा आरक्षण पर यदि आज स्थगनादेश दिया जा रहा है, तो pratibha-dhok-amravati-mandalइसे मराठा समाज के साथ अन्याय ही कहा जा सकता है. मराठा समाज हमेशा से ही संस्कृति का रक्षण करता आया है और हमने देश व समाज के लिए हमेशा ही त्याग व बलिदान किये है. ऐसे में केंद्र तथा राज्य सरकार सहित सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को लेकर पूरी गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए. – प्रतिभा ढोक शहराध्यक्ष, जीजाउ ब्रिगेड.

 

मौजूदा वक्त की जरूरत है मराठा आरक्षण.
इस समय मराठा समाज आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक तौर पर पिछडा हुआ है. यह बात ग्रामीण स्तर तक किये गये सर्वेक्षण में सामने shobhana-deshmukh-amravati-mandalआयी है. इसके बावजूद मराठा आरक्षण को स्थगनादेश दिये जाने का निर्णय बेहद दु:खद है. जिसकी वजह से राज्य में मराठा समाज के लाखों विद्यार्थियों व बेरोजगार युवाओं का जीवन प्रभावित होगा. देखा जा रहा है कि, कई प्रवर्गों को अब जरूरत नहीं रहने के बावजूद आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. वहीं आर्थिक रूप से पिछडा वर्ग लगातार पिछडता जा रहा है. ऐसे में मराठा आरक्षण को मौजूदा वक्त की जरूरत कहा जा सकता है. जिसके संदर्भ में यदि जल्द ही कोई सार्थक निर्णय नहीं लिया गया, तो इस मांग के लिए दुबारा तीव्र आंदोलन किया जायेगा. – शोभना देशमुख जिला कार्याध्यक्ष, जीजाउ ब्रिगेड.

सरकार के प्रयास कम पडे.
मराठा आरक्षण को लेकर राज्य की मौजूदा सरकार द्वारा जिस प्रखरता के साथ प्रयास किये जाने थे, उतनी प्रखरता के साथ काम नहीं हो पाया. जिसका अंजाम अब हम सभी लोगोें के सामने है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण की सुनवाई बडी पीठ के पास भेजे जाने का फैसला बिल्कूल सही है, लेकिन जिस तरह से शिक्षा एवं नौकरी के लिए जारी वर्ष में स्टे ऑर्डर दिया गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार ने इस फैसले को चुनौती जरूर देनी चाहिए. – अभिजीत देशमुख.

 

सिर्फ महाराष्ट्र के लिए अलग मापदंड क्यों.
यह सही है कि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की अधिकतम सीमा को ५० फीसदी तय किया गया है, किन्तु तमिलनाडू जैसे राज्य में विगत अनेक वर्षों से आरक्षण की अधिकतम सीमा ५८ फीसदी है. साथ ही आर्थिक रूप से पिछडे वर्गों के लिए दिये गये १० chandu-mohite-amravati-mandalफीसदी आरक्षण की वजह से भी उपरोक्त निर्देश का उल्लंघन होता है. वहीं मराठा आरक्षण की वजह से महाराष्ट्र में अन्य किसी वर्ग का आरक्षण प्रभावित नहीं हो रहा था. बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट द्वारा महाराष्ट्र के लिए पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए अलग मापदंड क्यों अपनाये गये, यह समझ से परे है. ऐसे में हमें सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन की नई रूपरेखा तय करनी होगी. – चंद्रकांत मोहिते.

आघाडी सरकार मौका चूक गयी.
राज्य की पूर्ववर्ती फडणवीस सरकार ने मराठा आरक्षण को लेकर बेहद शानदार और अभ्यासपूर्ण काम किया था, लेकिन बाद में सत्ता में आयी तीन दलोंवाली आघाडी सरकार ने इस काम को सही ढंग से आगे नहीं बढाया और आघाडी के काल में मराठा आरक्षण की पूरी बिघाडी हो गयी. ऐसे में कह सकते है कि, मौजूदा राज्य सरकार मराठा ambadas-kachole-amravati-mandalआरक्षण को लेकर एक बेहद शानदार मौके से चूक गयी है. – अंबादास काचोले,छावा संगठन.

 

 

सरकार के प्रयास कम पड गये.
पिछली सरकार ने मराठा आरक्षण को लेकर कुछ वक्त जरूर लिया था, लेकिन इस मामले में काम बेहद पुख्ता तरीके से किया था. लेकिन pravin-raut-amravati-mandalमौजूदा सरकार इस मसले को बेहद ढिलाई से ले रही है. और इसकी पैरवी में काफी लापरवाही बरती जा रही है. यदि आपसी राजनीति को परे रखते हुए यह केस लडा जाता, तो आज स्थगनादेश की नौबत नहीं आती. यह सीधे तौर पर राज्य सरकार की नाकामी है. वैसे भी इससे पहले कांग्रेस व राकांपा की सरकार द्वारा समाज समाज को दिया गया आरक्षण हाईकोर्ट में टीक नहीं पाया था. – प्रा. प्रवीण राउत.

राजनीति से परे रखकर देखा जाये मामले को.
देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आदर करते है, लेकिन इस मामले में राज्य सरकार को अपने स्तर पर काफी अधिक प्रयास करने होंगे, ताकि कोई सकारात्मक परिणाम निकलकर सामने आये, चूंकि इस aniket-deshmukh-amravati-mandalसमय यह मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है. अत: अदालती फैसले के खिलाफ सडक पर उतरकर आंदोलन नहीं किया जा सकता. ऐसे में दलगत राजनीति को परे रखते हुए सभी ने इस मामले में व्यापक समाजहित को सामने रखकर विचार करना चाहिए. – अनिकेत देशमुख.

 

 

मौजूदा सरकार मराठा आरक्षण को लेकर गंभीर नहीं.
राज्य की पूर्ववर्ती फडणवीस सरकार द्वारा जिस तरह से मराठा आरक्षण के पक्ष में काम किया गया, वह अपने आप में बेहद अभ्यासपूर्ण तरीका था. लेकिन इसके बाद सत्ता में आयी तीन दलोंवाली महाविकास आघाडी सरकार शायद चाहती ही नहींvinod-kankale-amravati-mandal कि, मराठा समाज को आरक्षण मिले. इसी वजह से सारी गडबडियां हो रही है. ऐसे में मराठा समाज को चाहिए कि, मौजूदा राज्य सरकार पर मराठा आरक्षण के लिए आवश्यक दबाव बनाया जाये. -विनोद कंकाले.

 

 

आश्चर्यकारक व पक्षपातपूर्ण फैसला. मराठा समाज द्वारा मराठा आरक्षण के मामले को संविधानपीठ के पास भेजने की मांग की गई थी, जो पूरी हुई. लेकिन जिस तरह से मराठा आरक्षण को स्थगनादेश दिया गया है, उसे देखते हुए मामला कुछ पक्षपातपूर्ण लग रहा है. आर्थिक आधार पर दिये गये १० फीसदी आरक्षण की वजह से ५० फीसदी की अधिकतम सीमा का उल्लंघन हो रहा है, उसे स्टे ऑर्डर नहीं दिया गया है. तमिलनाडू में ५८ फीसदी आरक्षण है, उसे भी स्टे ऑर्डर नहीं दिया गया, लेकिन मराठा आरक्षण को स्टे ऑर्डर दिया गया है. यह समझ से परे है. इस मामले की सुनवाई ९ अथवा ९ से अधिक जजों की बेंचवाली संविधानपीठ में होनी चाहिए. साथ ही स्टे ऑर्डर के बावजूद महाराष्ट्र सरकार अपने स्तर पर एक अध्यादेश निकालकर इस आरक्षण को जारी रख सकती है. – प्रा. अंबादास मोहिते.

Related Articles

Back to top button