शिलालेख पर नाम को लेकर सिनेट सभा में हंगामा

अमरावती /दि.30 – संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ में भारतीय संविधान की प्रस्तावना वाले शिलालेख पर सिनेट सभा में प्रस्ताव रखनेवाले सदस्य का नाम प्रस्तावक के तौर पर लिखा जाए, इस मुद्दे को लेकर गत रोज भी विद्यापीठ की अधिसभा यानिक सिनेट सभा में तुफानी चर्चा हुई. प्राचार्य डॉ. राधेश्याम सिकची द्वारा यह मुद्दा उपस्थित किए जाने के बाद भैयासाहेब मेटकर, डॉ. प्रवीण रघुवंशी व डॉ. हेमंत देशमुख ने इसका जमकर विरोध किया और कहा कि, विद्यापीठ द्वारा किसी गलत परंपरा को शुरु नहीं किया जाना चाहिए.
बता दें कि, अमरावती विद्यापीठ परिसर में ज्ञानस्त्रोत केंद्र इमारत के पास स्थित चौराहे पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना एवं संत गाडगेबाबा की दशसूत्री का शिलालेख लगाने का प्रस्ताव पिछली सिनेट सभा में डॉ. संतोष बनसोड द्वारा रखा गया था. यह प्रस्ताव मान्य हो जाने के पश्चात सिनेट सदस्य डॉ. सुभाष गवई ने उक्त शिलालेख पर डॉ. संतोष बनसोड के नाम का उल्लेख प्रस्तावक के तौर पर करने का सुझाव रखा था. जिसे लेकर सिनेट सभा में कोई निर्णय नहीं हुआ था. इसके बाद इसी मुद्दे को गत रोज भी सिनेट सभा में प्राचार्य डॉ. राधेश्याम सिकची द्वारा उपस्थित किया गया. जिसका भैयासाहेब मेटकर ने विरोध किया और कहा कि, इससे एक गलत परंपरा शुरु होगी. जिसके तहत प्रस्ताव रखनेवालों की संख्या बढेगी, ताकि उनके नाम शिलालेख पर दर्ज हो सके. इसके लिए एक अलग तरह की स्पर्धा शुरु होकर विद्यापीठ के समक्ष नई दिक्कत पैदा हो जाएगी. इस विषय पर अपने विचार रखते हुए डॉ. रवींद्र मुंदे ने कहा कि, कोई प्रस्ताव मान्य होना यह पूरे सभागृह का निर्णय रहता है, ऐसे में केवल प्रस्तावक के नाम का उल्लेख करना योग्य नहीं है. साथ ही डॉ. प्रवीण रघुवंशी ने कहा कि, आज यदि एक प्रस्तावक का नाम शिलालेख पर दर्ज किया गया, तो आगे चलकर प्रस्तावकों की कतार लग जाएगी और यदि प्रस्तावक का नाम लिखा जाता है, तो फिर अनुमोदक का भी नाम लिखा जाना चाहिए. इसके साथ ही डॉ. रघुवंशी ने यह सवाल भी उपस्थित किया कि, क्या हम सभी केवल नाम के लिए काम कर रहे है, इसके अलावा डॉ. रघुवंशी ने किसी भी शिलालेख पर उसका निर्माण करनेवाले अभियंता के नाम का उल्लेख रहने का भी विरोध किया.
इस पूरी चर्चा के चलते सिनेट सभागृह में वातावरण जमकर गरमाया हुआ था. पश्चात सभापति कुलगुरु डॉ. मिलिंद बारहाते ने इस प्रस्ताव को सभी के अनुमति से अमान्य करते हुए इस विवाद को खत्म किया. इस बैठक में कुलसचिव डॉ. अविनाश असनारे व प्र-कुलगुरु डॉ. महेंद्र ढोरे सहित सभी सिनेट सदस्य उपस्थित थे.

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