विदर्भ

रिश्वत के आरोप में २५ साल तक न्यायालय से किया संघर्ष

उच्च न्यायालय ने निर्दोष बरी किया

नागपुर दि. ७ -७०० रूपये की रिश्वत लेने के आरोप में अस्थायी पटवारी ने स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए २५ वर्ष तक न्यायालय से संघर्ष किया. इस पटवारी को मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने निर्दोष बरी किया. क्योंकि भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग पटवारी के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सके, ऐसा निर्णय में स्पष्ट किया गया.
मुरलीधर देवगडे ( बल्लारशा, जि. चंद्रपुर)ऐसा पटवारी का नाम है. न्याय देने मेें विलंब होना यानी न्याय देने से इनकार करना है. यह कहावत विधि क्षेत्र में प्रसिध्द है. देश की मुख्य समस्या यही है कि न्यायालय में अनेक-छोटे बड़े मामले वर्षो से प्रलंबित रहते है.जिसके कारण न्यायालय पर काम का बोझ बढता है और पक्षकारों का भी मानसिक तनाव बढता है. यह मामला इसी प्रकार का था.
देवगडे ने १९९७ में एक किसान को फेरफार करने के लिए ७०० रूपये मांगे. किसान ने उसे २०० रूपये दिए व ५०० रूपये बाद में देने का कहा. उसके बाद किसान ने भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग से शिकायत की. जिसके कारण जाल बिछाकर देवगडे को रिश्वत लेेते हुए रंगे हाथों पकडा गया. ऐसा सरकार का कहना था. ३ जनवरी २००८ को सत्र न्यायालय ने देवगडे को दोषी ठहराकर १ साल की सजा व १००० रूपये जुर्माना, ऐसी सजा सुनाई थी. उसके खिलाफ उसने उच्च न्यायालय में अपील दर्ज की थी.

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