विदर्भ

हाईकोर्ट ने दी 45 मेडिकल छात्रों को बडी राहत

निजी मेडिकल कालेजों के फीस वसूली में सख्ती करने से रोका

प्रतिनिधि/दि.28
वर्धा -मराठा आरक्षण के चलते गुणवत्ता सूची में अव्वल स्थान पर रहने के बावजूद सरकारी मेडिकल कालेज की बजाय निजी मेडिकल कालेज में जिन विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है, उनसे निजी मेेडिकल कालेजों द्वारा शुल्क वसूली के लिए सख्ती ना की जाये. इस आशय का अंतरिम आदेश मुंबई उच्च न्यायालय तथा मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ द्वारा दिया गया है. जिसके चलते राज्य के 45 विद्यार्थियों को काफी राहत मिली है. यह याचिका वर्धा निवासी बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सचिन पावडे के पुत्र आयुष पावडे व अन्य 15 विद्यार्थियों द्वारा दाखिल की गई थी.
जानकारी के मुताबिक आयुष पावडे तथा अन्य 15 विद्यार्थियों को सरकारी मेडिकल कालेज की बजाय नागपुर के एनकेपी सालवे मेडिकल कालेज में प्रवेश लेना पडा था. वहीं दृष्टि पटेल व अन्य 30 विद्यार्थियों को मुंबई के निजी कालेजों में प्रवेश लेना पडा था. इन विद्यार्थियों ने अपने-अपने कालेजों में एमबीबीएस प्रथम वर्ष का शुल्क जमा करा दिया था. वहीं इस बीच राज्य सरकार ने एक अध्यादेश जारी करते हुए कहा कि, मराठा आरक्षण की वजह से जिन्हें सरकारी कालेज में प्रवेश नहीं मिला है, उनके द्वारा जमा कराये गये शुल्क का कुछ हिस्सा वापिस किया जायेगा और इन विद्यार्थियों को निजी कालेजों में सरकारी मेडिकल कालेज के बराबर ही शुल्क जमा करना होगा. वहीं शेष रकम राज्य सरकार द्वारा इन कालेजोें को दी जायेगी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से यह शेष शुल्क नहीं आने के चलते संबंधित निजी मेडिकल कालेजों में अपने विद्यार्थियों को आठ से दस लाख रूपयों का शुल्क जमा करने के संदर्भ में नोटीस जारी की. जिसके चलते आयुष पावडे सहित 15 लोगों ने नागपुर खंडपीठ में न्या. मनीष पितले व न्या. नितीन सूर्यवंशी की खंडपीठ के समक्ष तथा दृष्टि पटेल व अन्य 20 विद्यार्थियों ने मुंबई उच्च न्यायालय में न्या. ए. ए. सैय्यद व न्या. नितीन बोरकर की खंडपीठ के समक्ष याचिकाएं दाखिल की. जिन पर सोमवार को सुनवाई हुई. इस समय याचिकाकर्ताओं की ओर से एड. अश्विन देशपांडे ने कहा कि, इन विद्यार्थियों को मराठा आरक्षण की वजह से गुणवत्ता सूची में अव्वल स्थान पर रहने के बावजूद सरकारी मेडिकल कालेजों की बजाय निजी मेडिकल कालेजों में प्रवेश लेना पडा था. उनका शुल्क वापिस करने हेतु राज्य सरकार द्वारा अब तक 40 करोड रूपये मंजूर नहीं किये गये है. जिसकी वजह से निजी मेडिकल कालेजों द्वारा शुल्क वसूली के लिए सख्ती की जा रही है.

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