विदर्भ

हत्या के लिए 14 वर्ष की सजा है गैरकानूनी

हाईकोर्ट ने आरोपी को दी उम्रकैद की सजा

नागपुर/ दि.14 हत्या करने वाले आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाने का प्रावधान भारतीय दंड संहिता में है. ऐसे में किसी हत्यारोपी को महज 14 वर्ष के कारावास की सजा सुनाना नियमबाह्य व गैरकानूनी है, इस आशय का निरीक्षण दर्ज करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने हत्या से संबंधित एक मामले में आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई तथा जिला व सत्र न्यायालय व्दारा दिये गए फैसले को बदल दिया.
जानकारी के मुताबिक अमरावती जिले की अंजनगांव सुर्जी तहसील अंतर्गत कसबे गव्हाण निवासी नारायण भुजंग मोरे (41) ने 3 अगस्त 2014 को अपनी पत्नी जया मोरे को जलाकर उसे जान से मार दिया था. आरोपी नारायण मोरे का विवाह जया के साथ 30 अप्रैल 2014 को हुआ था और विवाह के तुरंत बाद से वह अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताडित किया करता था. इसी के तहत उसने अपनी पत्नी की हत्या की थी. यह वारदात नांदगांव पेठ पुलिस थाना क्षेत्र अंतर्गत घटित हुई थी. पश्चात मामले की सुनवाई करते हुए 6 मई 2017 को अमरावती की जिला व सत्र अदालत ने आरोपी भुजंग मोरे को दोषी करार देते हुए भादंवि की धारा 302 (हत्या) के अंतर्गत 14 वर्ष के सश्रम कारावास व 20 हजार रुपए के आर्थिक दंड तथा धारा 498-अ (दहेज के लिए प्रताडना) के अंतर्गत 3 वर्ष सश्रम कारावास व 2 हजार रुपए के दंड की सजा सुनाई. इस फैसले के खिलाफ आरोपी ने राहत मिलने हेतु हाईकोर्ट में अपील दाखिल की. जहां पर न्या. विनय जोशी व न्या. वाल्मिकी मेनेजेस की अदालत ने रिकॉर्ड पर रहने वाले विभिन्न सबूतों को ध्यान में रखते हुए इस अपील को खारिज कर दिया. साथ ही हत्या से संबंधित मामलों में सजा को लेकर कानून की स्पष्ट व्याख्या करते हुए नारायण मोरे को 14 वर्ष की बजाय आजीवन कारावास की सजा सुनाई. साथ ही पेशे से मजदूर रहने वाले नारायण मोरे पर लगाए गए आर्थिक दंड को कम करते हुए दोनों मामलों में क्रमश: 2 हजार रुपए व 1 हजार रुपए का जुर्माना अदा करने हेतु कहा गया.

सत्र न्यायालय को सुनाए खडे बोल
भारतीय दंड संहिता में हत्या का अपराध साबित होने पर आरोपी को 14 वर्ष के कारावास की सजा सुनाने का प्रावधान नहीं है, बल्कि ऐेसे मामले में उम्रकैद यानी आजीवन कारावास की सजा देना ही आवश्यक है. ऐसे में हत्या का दोषी पाये गए आरोपी को इससे कम सजा देना कानून के खिलाफ है. इस आशय का निरीक्षण दर्ज करने के साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि, आखिर किस आधार पर सत्र अदालत ने कम सजा सुनाते हुए अधिक राशि का जुर्माना लगाया था.

 

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