विदर्भ

वन्यजीव संघर्ष में ४४६ लोगों की मौत

बीते १० वर्षों का है आंकडा

  • सबसे ज्यादा मौते चालू वर्ष में

  • बाघ और तेंदूए की दहशत सबसे ज्यादा

नागपुर प्रतिनिधि/दि.१३ – बाघ बचाओ, जंगल बचाओ का नारा वन विभाग की ओर से दिया जा रहा है. इसके बावजूद मनुष्य और वन्यजीवों के बीच होने वाले संघर्ष को लेकर अब तक कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है. बीते १० वर्षों में राज्यभर में ४४६ लोगों को वन्यजीव संघर्ष में अपनी जान गवानी पडी है. वहीं इसी दौर में बाघ, तेंदूआ और रिछ इन ४५ हिंसक वन्य प्राणियों को भी अपनी जान गवानी पडी है. बता दें कि, बीते १० वर्षों में राज्य में बाघों की संख्या बडे पैमाने पर बढ गयी है. इसके अलावा तेंदूआ और अन्य प्राणियों की संख्या भी बढ गई है. वनविभाग के आंकडेवारी के अनुसार राज्य में ३१२ बाघों का पंजीयन किया गया है. वहीं बीते १० वर्षों के दौर में बाघ और तेंदूए के हमले में मारे गये व्यक्तियों की संख्या अधिक है. बाघ के हमले में जहां १५३ और तेंदूए के हमले में १२८ लोगों की मौत हुई है. वहीं जंगली सुअरों के हमले में ८९ लोगों की मौत हुई है. जिससे पता चलता है कि, राज्य में बाघ और तेंदूए की दहशत सबसे ज्यादा है.

  • बीते १० वर्षों में १६ बाघों की करंट लगने से मौत

बिजली का जाल बिछाकर बाघ और तेंदूए की हत्या किये जाने के मामले राज्य में सर्वाधिक है. जनवरी २०१० से सितंबर २०२० इन १० वर्षों में १६ बाघ, १८ तेंदूए और ११ भालुओं की मृत्यु करंट लगने से हुई है. जंगल में शिकारियों और किसानों द्बारा फसलों की सुरक्षा के लिए लगाये गये बिजली तारों से यह घटनाएं सामने आयी है. इसके अलावा विष प्रयोग की घटनाएं भी सामने आयी है.

  • सबसे ज्यादा मौतें जारी वर्ष में

वन्यजीव संघर्ष में इंसानों की सबसे ज्यादा मौतें जारी वर्ष में हुई है. सितंबर २०२० के अंत तक यह संख्या ५६ तक पहुंच गई है. २०१६ में यहीं आंकडा था. इसी तुलना में बीते वर्ष २०१९ में ३९ लोगों की मृत्यु हुई है. जबकि २०१७ में यह संख्या ५४ थी.

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