वरुड/दि.19- महाराष्ट्र की सीमा से सटे पांढूर्णा में प्रति वर्ष पोले के दूसरे दिन गोटमार की जाती है. देशभर में यह गोटमार प्रसिद्ध है. शुक्रवार की सुबह 11 बजे जिलाधिकारी मनोज पुष्प, एसपी विनायक वर्मा, एसडीओ आर.आर. पांडे व एसडीपीओ राकेश पंड्रो की उपस्थिति में यह गोटमार शुरु हुई. जाम नदी उफान पर होने से दोनों गुट के नागरिक झंडा तोड़ने में असफल रहे.
इस दौरान एक-दूसरे पर किए गए पथराव में 514 लोग घायल हो गए. इसमें कुछ लोग विकलांग हुए वहीं 3 की हालत चिंताजनक होने से उन्हें नागपुर मेडिकल रेफर किया गया है. इस घायलों में पांढूर्णा के खारी वार्ड निवास रामचंद्र खूरसंगे, शास्त्री वार्ड के सागर शंकर कुमरे और झिल्पा निवास संजय शानु वाडोदे का समावेश है. दोनों गांव के नगरिकों में आपसी सौहार्द है, लेकिन पोले के दूसरे दिए एक-दूसरे पर जमकर पथराव करने से नहीं भूलते. पथराव में इस वर्ष भी सैकड़ों नागरिक घायल हुए. पथराव के दौरान पुलिस का काफी जद्दोजहद करना पड़ा. यह दृश्य देखने के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र ेक दूरदराजों से नागरिक बड़ी संख्या में उमड़ पड़े.
पांढूर्णा के इस गोटमार में अब तक 13 लोगों की मृत्यु हुई है. वरुड शहर में 35 कि.मी. दूरी पर मध्यप्रदेश के पांढूर्णा में जाम नदी के किनारे सावरगांव ग्राम पंचायत है. इस गोटमार की कहानी भी कुछ अजीब है. 300 वर्ष पूर्व पांढूर्णा व सावरगांव के लड़के-लड़की के बीच प्रेमसंबंध हुए. उस जमाने में प्यार करना एक तरह से अपराध माना जाता था, जिसमें प्रेमी युगल को घर और समाज का भारी विरोध हुआ. परिणामस्वरुप दोनों ने एक साथ भाग जाने का निर्णय लिया. दोनों गांव को जोड़ने वाली जाम नदी के पास पहुंचे. तब तक दोनों के भाग जाने की खबर आग की तरह फैल गई थी. दोनों गांव के नागरिक जाम नदी के किनारे धमक पड़े. इस समय इस प्रेमी युगल का विरोध करते हुए दोनों गांव के लोगों ने एक-दूसरे पर जमकर पथराव किया. प्रेमी युगल एक तरफ रह गए थे. दोनों गांवों के बीच ही यह गोटमार हुई थी. जिसमें प्रेमी युगल में से एक को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. यह घटना मानो देववाणी के अनुसार हुई. ऐसा मानकर इसकी कारण मिमांसा न करते हुए गोटमार की परंपरा आज भी शुरु है.