कैदी को पैरोल नहीं देना पडा भारी
नागपुर – दि.25 एक कैदी को जानबुझकर संचित अवकाश यानि पैरोल देने से इंकार करना अमरावती सेंटल जेल अधीक्षक पर भारी पडा है. जब मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अमरावती जेल एसपी पर दावा खर्च ठोका है और यह रकम कारागार अधीक्षक को अपनी जेब से अदा करनी होगी. साथ ही दावा खर्च की रकम को उच्च न्यायालय की विधि सेवा उपसमिति द्बारा निर्धारित किया जाएगा.
मिली जानकारी के मुताबिक अमरावती सेंटल जेल में बंद रहने वाले मो. सजीर बशीर चव्हाण नामक कैदी ने कई बार पैरोल मिलने के लिए जेल प्रशासन के सामने आवेदन किया. जिसे हर बार जेल प्रशासन द्बारा नकार दिया गया. ऐसे में इस कैदी ने हर बार उच्च न्यायालय में गुहार लगाई और न्यायालय ने हर बार जेल प्रशासन के आदेश को रद्द कर इस कैदी को संचित अवकाश के तहत पैरोल देने का निर्देश दिया. यहीं मामला जब एक बार फिर दोहराया गया और यह कैदी पैरोल मिलने का निवेदन लेकर नागपुर हाईकोर्ट के पास पहुंचा, तो उसकी अपील पर सुनवाई करते हुए न्या. सुनील शुक्रे व न्या. महेंद्र चांगवानी ने कहा कि, इस मामले में जेल अधीक्षक द्बारा हर बार लापरवाही के साथ काम किया है. जिसकी वजह से राज्य सरकार का पैसा और अदालत का समय बर्बाद हुआ है. चव्हाण को इससे पहले 6 बार पैरोल मंजूर की गई और उसने हर बार कानून का पालन किया. जिसके तहत वह निर्धारित तारीख पर जेल में वापिस लौट आया. लेकिन इसके बावजूद पैरोल देने पर उसके फरार होने अथवा कानून व व्यवस्था के लिए खतरा निर्माण होने की संभावना जैसी वजहों को आगे कर जेल प्रशासन द्बारा उसके पैरोल आवेदन को नामंजूर किया गया. यह पूरी तरह से समज से परे है और जेल अधिकारी की लापरवाही को दर्शाता है. जिसके चलते इस कैदी को बार-बार अदालत के पास आना पड रहा है तथा मामले की सुनवाई के लिए सरकारी पैसा व अदालती समय की बर्बादी हो रही है. अत: इसकी क्षतिपूर्ति अमरावती जेल अधीक्षक की जेब से दावा खर्च के तौर पर वसूल की जाए.
हाईकोर्ट द्बारा दिये गये इस आदेश के चलते स्थानीय मध्यवर्ती कारागार प्रशासन में अच्छा-खासा हडकंप व्याप्त है. वहीं सेंटल जेल अधीक्षक से दावा खर्च के रुप में इतनी रकम वसूल की जानी है. इस बात का फैसला उच्च न्यायालय की विधि सेवा उपसमिति द्बारा लिया जाएगा.