आयएस अधिकारियों में से की जाए साई मंदिर संस्थान के सीइओ की नियुक्ति
उच्च न्यायालय ने जारी किए आदेश
औरंगाबाद/दि.20 – देश के सुप्रसिद्ध व भाविकों के आस्था केंद्र श्री साईबाबा संस्थान मंदिर में सीइओ की नियुक्ति सीधे आयएस कैडर के अधिकारियो में से की जाए ऐसे आदेश हाईकोर्ट द्बारा दिए गए है. साईबाबा मंदिर संस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पद पर कान्हूराज बगाटे की नियुक्ति की गई थी. किंतु वे आयएस कैडर के नहीं थे. जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन किया गया ऐसा उच्च न्यायालय द्बारा कहा गया और उच्च न्यायालय द्बारा नाराजगी भी व्यक्त की गई. न्यायाधीश गंगापुरवाला व न्यायाधीश एस.डी.कुलकर्णी की खंडपीठ ने सीइओ की नियुक्ति को लेकर आदेश दिए जिसमें कहा गया है कि मंदिर संस्थान में सीइओं की नियुक्ति आयएस कैडर के अधिकारियों में से ही की जाए.
संस्थान के पूर्व विश्वस्थ उत्तमराव शेलके ने नए विश्वस्थ मंडल की नियुक्ति के संदर्भ में औरंगाबाद खंडपीठ में जनहीत याचिका दाखल की थी. जिसमें कहा था कि मंदिर संस्थान में सीइओ की नियुक्ति आएएस अधिकारियो में से की जाए. याचिका में एड. प्रज्ञा तलेकर, एड. अजिंक्य काले तथा एड. उमाकांत कावठे ने शेलके की ओर से पैरवी की थी. मंदिर संस्थान के कामकाज की देखरेख के लिए राज्य सरकार द्बारा 12 सदस्यो की 2016 में नियुक्ति की थी. इन सदस्यों में से चंद्रशेखर कदम, सचिन तांबे तथा प्रताप भोसले ने राजीनामा दिया था.
डॉ. मनीष कायंदे, रविंद्र मिर्लेकर व अमोल किर्तिकर संस्था की बैठक में सतत अनुपस्थित रहने की वजह से राज्य सरकार द्बारा उन्हें अपात्र घोषित कर दिया गया था. जिसकी वजह से शिर्डी मंदिर संस्थान का कामकाज केवल 6 सदस्य संभाल रहे थे. अध्यक्ष सुरेश हावरे, मोहन जयकर, राजेंद्रसिंग राजपाल, विपिन कोल्हे, भाऊसाहब वाघचोरे तथा शिर्डी नगर पंचायत के अध्यक्ष इन छह सदस्यों की बैठक बुलायी गई. इन सदस्योे का कार्यकाल 27 जुलाई 2019 को समाप्त हो गया था.
संस्था की बैठक में 6 सदस्य अपेक्षित थे. जिसमें 6 सदस्यों ने चुनाव के मुहाने पर निर्णय लेते हुए जनहीत याचिका द्बारा आरोप लगाया था. अक्तूबर 2019 में न्यायाधीश प्रसन्न वराले व न्यायाधीश अनिल घोटे की खंडपीठ ने शिर्डी संस्थान के कामकाज के विषय में निर्णय लेने के लिए चार सदस्यीय समितियां गठन करने के आदेश दिए थे. शुक्रवार को की गई सुनवाई के दरमियान दो महीनों में विश्वस्थ मंडल की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार की ओर से अभिवचन दिया गया. सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकील डी. आर. काले ने पैरवी की.