नागपुर/ दि.17 – नई विचाराधारा वाले राज्य के रुप में महाराष्ट्र की पहचान बनी हुई है. बावजूद इसके जातिगत भेद अभी भी दूर नहीं हुआ है. अनुसूचित जाति और जनजाति के नागरिकों पर हो रहे अत्याचार की संख्या बढती जा रही है. साल 2017 से 4 वर्षों की अवधि में राज्य में एट्रासिटी का प्रमाण बढ गया है. इन अपराधों की संख्या में 50 फीसदी से अधिक इजाफा हुआ है. यह आंकडेवारी अनेक सवाल उत्पन्न करने वाली साबित हो रही है.
यहां बता दें कि अनुसूचित जाति और जनजाति के नागरिकों पर अत्याचार अथवा सामाजिक अवमानना करने पर एट्रासिटी प्रतिबंधात्मक अधिनियम अंतर्गत अपराध दर्ज किया जाता है. नेशनल क्राईम रेकॉड्स ब्युरो की रिपोर्ट के अनुसार एट्रासिटी के अपराध में देश में राज्य का पांचवां नंबर आता है. साल 2017 में महाराष्ट्र में एट्रासिटी अंतर्गत 2 हजार 153 मामले दर्ज किये गए. 2019 में यहीं आंकडा 2 हजार 709 पर पहुंचा. जबकि साल 2020 में 3 हजार 232 अपराध दर्ज किये गए. दर्ज किये गए कुल मामलों में अनुसूचित जाति पर हुए अन्यायों के 2 हजार 569 व अनुसूचित जनजाति के खिलाफ 663 अपराधों का समावेश है.
बरी होने वालों का प्रमाण बढा
एट्रासिटी के विविध अपराधों के लिए 400 महिलाओं सहित कुल 7 हजार 624 लोगों की गिरफ्तारियों की जा चुकी है. इनमें से 6 हजार 318 लोगों के खिलाफ चाजर्र्सिट दायर की गई है. पुलिस की ओर से साल 2020 में अनुसूचित जाति व जनजाति के नागरिकों के खिलाफ अन्याय से संबंधित कुल 4 हजार 780 अपराधों की जांच हुई है. इनमें 2019 के लंबित 1 हजार 547 मामलों का समावेश है.
एट्रासिटी अंतर्गत दाखिल किये गए अपराधों में महिला अत्याचार की 663 मामलों का समावेश है. इनमें नाबालिग पर अत्याचार के पोस्को अंतर्गत दाखिल किये गए 98 मामलों का समावेश है.
न्यायालय में 2 हजार 708 मामले दाखिल किये गए है. इस अवधि में पुराने तथा तत्कालीन दर्ज कुल 15 हजार 181 मामलों की सुनवाई हुई है. इनमें केवल 51 मामलों में 101 लोगों को सजा हुई है. जबकि 362 मामलोें में 887 लोगों को निर्दोष बरी किया गया है. वहीं 97.1 फीसदी मामले लंबीत थे.एट्रासिटी के वर्षनिहाय अपराध
वर्ष अनु.जाति अनु. जनजाति
2017 1,689 464
2018 1,974 526
2019 2,150 559
2020 2,569 663
—————————————-
वर्ग सजा पाने वाले निर्दोष बरी
अनुसूचित जाति -87 697
अनु. जनजाति -14 190