सबके सामने जातिवाचक गाली-गलौच करने पर ही लागू हो सकती है एट्रोसिटी
हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
* विवादास्पद एफआईआर हुई रद्द
नागपुर/दि.24- यदि सार्वजनिक तौर पर कुछ लोगों के सामने जातिवाचक गाली-गलौच की जाती है, तो ही एट्रोसिटी एक्ट की धारा 3 (1) (आर) (एस) अंतर्गत अपराध दर्ज किया जा सकता है. इस आशय की बात मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ द्वारा एक मामले में फैसला सुनाते हुए कही गई.
अमरावती जिले की धारणी पुलिस ने गोपीबाई कासदेकर की शिकायत के आधार पर एड. धर्मेंद्र सोनी के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध दर्ज किया था. जिससे एड. सोनी ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी. गोपीबाई कासदेकर ने अपनी शिकायत में कहा था कि, वह 15 मार्च 2020 को गैस सिलेंडर व रेग्यूलेटर लेने हेतु एड. सोनी के भाई की एजेंसी में गई. जहां पर सोनी ने एजेंसी के कैबिन के भीतर उसके साथ जातीवाचक गाली-गलौच की. हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी तथ्यों की जांच-पडताल के बाद माना कि, इस मामले में एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं लागू नहीं होती.
न्या. सुनील शुक्रे व न्या. गोविंद सानप की दो सदस्यीय खंडपीठ ने मामले की सुनवाई पश्चात इस एफआईआर को रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि, एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध दर्ज होने हेतु संबंधित घटना सार्वजनिक तौर पर कुछ लोगों के सामने घटित होना जरूरी होता है और ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता के अलावा चश्मदीद गवाहों का सामने आना सबसे महत्वपूर्ण होता है. किसी बंद कमरे में किसी व्यक्ति द्वारा कही गई बात को एट्रोसिटी एक्ट के लिए पर्याप्त आधार या सबूत नहीं माना जा सकता.