राज्य के 32 में से 31 महामंडलों को वेतन आयोग का लाभ
कर सहूलियत के लिए शासन ने करना चाहिए प्रयास
चांदूर बाजार/दि.17 – गत कुछ दिनों से एसटी कर्मचारियों की हड़ताल व आंदोलन शुरु है. एसटी कर्मचारी व राज्य सरकार के अन्य कर्मचारियों के वेतन में अंतर यह आंदोलन का मुद्दा है. यात्री, नागरिकों को परेशानी होकर आंदोलन हो रहा है फिर भी एसटी कर्मचारियों की मांगें उचित है.अन्य सरकारी,अर्धसरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन का विचार करते हुए एसटी कर्मचारियों को सिपाही से भी कम वेतन दिया जा रहा है. राज्य केे 32 में से 31 महामंडल वेतन आयोग के कक्ष में है.
एसटी कर्मचारियों की यह मांग मंजूर करना शासन को भारी पड़ने वाला है. क्योंकि शासन की तिजोरी पर और बोझ बढ़ने वाला है. पहले ही कर्ज में डूबे व हर वर्ष त्रुटी का अर्थसंकल्प प्रस्तुत करने वाली राज्य सरकार को यह अतिरिक्त बोझा सहन करना भारी पड़ने वाला है. इसलिए ही शासन की ओर से हड़ताल खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन एसटी महामंडल सही में नुकसान में है क्या, इस बारे में सरकार को विचार करना जरुरी है. एसटी की ठोकताला को देखते हुए आय 96,651.4 करोड़ रुपए है तो खर्च 1,04,671.7 करोड़ रुपए है. इस कारण ही एसटी हमेशा नुकसान में दिखाई देती है.
इस खर्च का विश्लेषण किया जाये तो यह दिखाई देता है कि एसटी को 11,524.8 करोड़ रुपए यात्री कर भरना पड़ता है. 154.7 करोड़ रुपए टोल भरना पड़ता है. इसी तरह घसारा 3315.1 करोड़ रुपए हिसाब में लिया जाता है. ऐसे कुल 16,381.5 करोड़ रुपए होते हैं.
अन्य महामंंडलों को यह खर्च नहीं होने के कारण एसटी की तुलना में वह नुकसान में दिखाई नहीं देती. एसटी महामंडल यह कर नहीं भरने के कारण हमेशा नुकसान में दिखाई देती है. लेकिन इस कर का लाभ शासन को ही होता है. इसी कारण शासन हमेशा एसटी महामंडल को अपने दबाव में रख रही है, ऐसा दिखाई दे रहा है. क्योंकि एसटी यह अर्धसरकारी महामंडल है.
इस महामंडल को यात्री व टोल वसुली से अलग करना शासन के लिए सहज संभव नहीं है. एखाद साहित्य, वस्तु, गाड़ी की उम्र कागज पर ही खत्म होती है. फिर भी वह सदैव इस्तेमाल में लायी जाती है. इन तीनों करो से एसटी को सहूलियत दी जाये, तभी महामंडल सदैव नफे में चल सकता है.