विदर्भ

कोयले पर आधारित प्रकल्प स्वच्छ ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया तो 5700 करोड का फायदा

क्लाइमेट रिस्क होरायझन्स संस्था ने किया सर्वेक्षण

* क्लाइमेट रिस्क होरायझन्स संस्था ने किया सर्वेक्षण
नागपुर/दि.7 – राज्य के सबसे पुराने और सर्वाधिक खर्चिले कोयले पर आधारित बिजली निर्माण प्रकल्पों का इस्तेमाल स्वच्छ ऊर्जा के लिए करने पर काफी लाभदायक हो सकता हैं. इसमें प्रकल्पों की जमीन और कायले पर आधारित विद्युत निर्मिती की कुछ सुविधा का इस्तेमाल स्वच्छ ऊर्जा और ग्रीड स्थिरताकरण सेवा के लिए करने पर 5700 करोड रुपए का लाभ हो सकता हैं. यह बात क्लाइमेट रिस्क होरायझन्स नामक संशोधन संस्था के माध्यम से किए गए सर्वेक्षण में दिखाई दी हैं.
राज्य के कोयले पर आधारित पुरानी बिजली निर्मिती (4020 मेगावैट) के केंद्र बंद करना और उसका अन्य ऊर्जा के लिए इस्तेमाल करने के काम का खर्च और लाभ यह दोनों बातें अभ्यास के जरिए आंकडेवारी के साथ प्रस्तुत की हैं. इस तरह का सर्वेक्षण पहली बार ही किया गया हैं. ऑक्सफर्ड विद्यापीठ के ऑक्सफर्ड सस्टेनेबल फायन्स ग्रुप के ट्रांझिशन फायन्स रिसर्च के प्रमुख डॉ. गिरीश श्रीमली ने राज्य के सर्वाधिक खर्चिले रहे भुसावल, चंद्रपुर, कोराडी, खापरखेडा और नाशिक के बिजली निर्माण केंद्र का अभ्यास किया हैं. डॉ. गिरीश श्रीमली ने कहा कि, कोयले पर आधारित बिजली निर्माण केंद्रों का कार्यकाल समाप्त हो गया हैं, अथवा वह समाप्त होने की कगार पर हैं. इन केंद्रोें को शुरु रखने के लिए प्रति किलो वैट 6 रुपए खर्च हो रहा हैं. यह प्रकल्प बंद करने का खर्च 1756 करोड रुपए हैं. वहां की जगह और मूलभूत सुविधा का इस्तेमाल सौर ऊर्जा और बैटरी के लिए करने पर इसका लाभ 4356 करोड रुपए हो सकता हैं. इस कारण इस विषय पर आगे क्या निर्णय होता है यह देखना भी आवश्यक हैं.

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