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वैश्चिक बाजार में इस वर्ष तेजी दिखाई दे रही है
वर्धा/दि.8 – किसानों ने इस साल सोयाबीन की अपेक्षा कपास की बुआई अधिक की है. लेकिन निरंतर बारिश के कारण सोयाबीन मिट्टी मोल हो गया है. जिससे कपास में बाधा निर्माण हो गई है तथा कपास का उत्पादन घटने की संभावना बन गई है. ऐसी स्थिति में वैश्विक कपास की बाजार में तेजी होने से इस वर्ष कपास को 7 हजार रूपये प्रति क्विंटल भाव रहने की संभावना कृषि विशेषज्ञों की ओर से व्यक्त की जा रही है.
वैश्विक कपास बाजार में सन 1994 और 2011 के बाद इस साल भी तेजी दिखाई दे रही है. वैश्विक बाजार मेें 1994 में 1 पाऊंड रूई का भाव 1 डॉलर 10 सेंट प्रतिपाऊंड था तथा 2011 में वह रेकॉर्ड .2 डॉलर 14 सेंट प्रति पाऊंड तक बढ़ गया था तथा 2011 में वह वह रेकॉर्ड 2 डॉलर 14 सेंट प्रतिपाऊंड तक बढा था. 1995 के बाद वैश्विक बाजार में कपास का भाव कम हो गया है. वह 40 सेंट प्रति पाऊंड तक घट गया है. जिसके कारण 1997 से 2003 तक भारत में 110 लाख कपास गाड़ी का आयात किया था. उसके बाद यह भाव 2019 तक 70 से 1 डॉलर प्रति पाउंड दौरान रहा. 1994 में डॉलर रूपया विनिमय दर एक डॉलर का 33 से 34 रूपये था. इसलिए भारत में 2 हजार 500 रूपये प्रति किंवटल कपास का भाव था. 2001 में यह विनियम दर 53 रूपये होने से भारत में 6 हजार से 7 हजार 500 रूपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था. आज अमेरिका के कपास बाजार में रूई का भाव 1 डॉलर 13 सेंट से 1 डॉलर 15 सेंट प्रति पाऊंड है, 1 डॉलर का विनिमय दर 74 रूपये है.
इस प्रकार है कपास के भाव का हिसाब
1 क्विंटल कपास से 34 किलो रूई व 64 किलो सरकी मिलता है. 1 डॉलर 15 सेंट दर से 1 पाउंड रूई का भाव 187 रूपये था. जिसके कारण अपने पास 34 किलो रूई 6 हजार 363 रूपये की होगी तथा 64 किलो सरकी 30 रूपये प्रति किलो के हिसाब से 1 हजार 920 रूपये की होगी. जिसके कारण 1 क्विंटल कपास से मिलनेवाली रूई और सरकी का विचार करने पर भाव 8 हजार 250 रूपये था . जिससे प्रक्रिया खर्च व व्यापारी नफे के 1 हजार 250 रूपये जोडकर 7 हजार रूपये होते है. ऐसा कपास का भाव गणित कृषि विशेषज्ञ विजय जावंधिया ने रखा.