* लोगों ने जीवाश्मस्थलों पर कर लिया खेती-किसानी हेतु अतिक्रमण
चंद्रपुर/दि.08– जिले की वरोरा तहसील अंतर्गत टेम्भुर्डा-पिसदुरा में 65 मिलियन वर्ष पुरानी विरासत बताने वाले डायनासोर के जीवाश्मस्थल अब नष्ट हो गये है. खेती-किसानी हेतु ग्रामीणों द्वारा किये जाने वाले अतिक्रमण तथा संशोधकों द्वारा जीवाश्म चुरा लिये जाने की वजह से यह विरासत धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है. साथ ही आगामी समय में यह जीवाश्मस्थल संशोधकों के लिए अध्ययन हेतु उपलब्ध भी नहीं रहेगा. ऐसी आशंका पर्यावरण अभ्यासकों द्वारा जतायी गई है.
बता दें कि, चंद्रपुर जिले के टेम्भुर्डा व पिसदुरा में बडे पैमाने पर डायनासोर के जीवाश्म पाये जाते है. इसी परिसर के पास स्थित भद्रावती तहसील में भी डायनासोर के कई जीवाश्म पाये गये है, लेकिन पिसदुरा में डायनासोर की हड्डियों व मल सहित लाखों-करोडों वर्ष पुराने शंख व सीप व वनस्पति बडे पैमाने पर पाये गये थे. जिसके चलते पर्यावरण अभ्यासक प्रा. सुरेश चोपने ने वर्ष 1999 से लेकर अब तक इस परिसर का सर्वेक्षण कर डायनासोर सहित इस परिसर में लाखों-करोडों वर्ष पहले रहने वाले सबूतों को इकट्ठा किया था. वहीं विगत 27 अप्रैल को प्रा. सुरेश चोपने ने इस परिसर को सर्वेक्षण की दृष्टि से भेंट दी, तो उन्होंने पाया कि, ज्यादातर जीवाश्म नष्ट हो गये है.
उल्लेखनीय है कि, जहां एक ओर पूरी दुनिया में ऐसे स्थानों पर पर्यटन व अध्ययन के लिए संरक्षित किया जाता है. वहीं दूसरी ओर सरकारी अनदेखी के चलते राज्य में इस तरह के कई स्थान बडी तेजी से नष्ट हो रहे है.
प्रा. सुरेश चोपने द्वारा अब तक संकलित किये गये सभी जीवाश्म व साक्षों को संशोधकों व विद्यार्थियों हेतु अश्मसंग्रहालय के जरिए उपलब्ध कराया गया है. इसके साथ ही तत्कालीन जिलाधीश कृष्णराव भोगे ने एक प्रस्ताव पेश करते हुए पिसदुरा में डायनासोर पार्क व भद्रावती में विशालकाय पुरातत्व संग्रहालय स्थापित करने का प्रयास किया था. परंतु इस प्रस्ताव को तत्कालीन सरकार द्वारा समय पर मंजूरी नहीं दिये जाने के चलते डायनासोर के जीवाश्मस्थल सहित जिले के पुरातत्विय व ऐतिहासिक विरासत स्थलों का संरक्षण नहीं हो पाया. इसके साथ ही चंद्रपुर जिले से लाखों-करोडों वर्ष पुराने जीवाश्मों सहित कई पुरातन मूर्तियां भी चुराई जा चुकी है, ऐसा दावा भी प्रा. सुरेश चोपने द्वारा किया गया है.
* जीवती के बाद अब पिसदुरा
जीवती में स्थित जीवाश्मस्थलों को कुछ संशोधकों व भूगर्भीयशास्त्र के विद्यार्थियों ने अपने अध्ययन हेतु जीवाश्म संकलित करते हुए खत्म कर दिया. वहीं अब संरक्षित नहीं किये जाने की वजह से पिसदुरा स्थित डायनासोर का जीवाश्मस्थल भी खत्म होने की कगार पर है. सरकार सहित संशोधकों व आम नागरिकों ने इन अमूल्य स्थलों का जतन करना चाहिए. साथ ही बेहद अनमोल रहने वाली इस विरासत को अगली पीढी हेतु देखने व अध्ययन करने के लिए संरक्षित रखना चाहिए.
* 6 करोड साल पहले के जीवाश्म
बता दें कि, करीब 65 मिलियन यानि 6 करोड वर्ष पहले एक विशालकाय उल्का आकर धरती से टकराई थी. जिसकी वजह से पृथ्वी पर कई स्थानों पर ज्वालामुखियों में विस्फोट होने लगा. जिनका गर्म लावा उत्तर व पश्चिम से होता हुआ चंद्रपुर की ओर बहकर आया. इस गर्म लावे की चपेट में आने की वजह से पूरी तरह विकसित हो चुके विशालकाय आकार वाले डायनासोर की प्रजाति के कई प्राणियों की मौत हो गई. जो एक के बाद एक बेसाल्ट पत्थरों का एक के उपर एक स्तर बनते रहने की वजह से पत्थरों की सतह के काफी नीचे दब गये. यह सतह पश्चिम महाराष्ट्र में जमीन से काफी नीचे है. वहीं चंद्रपुर में बेसाल्ट पत्थरों की मोटाई बहुत अधिक नहीं रहने के चलते लाखों वर्ष बाद जमीन के नीचे दबे डायनासोर के जीवाश्म धीरे-धीरे उपर आने लगे और अब करीब साढे 6 करोड साल बाद डायनासोर के जीवाश्म वर्धा, गडचिरोली व उमरेड परिसर में बरामद हुए. परंतु उन्हें संरक्षित नहीं किये जाने की वजह से अब इन स्थानों पर भी जीवाश्म लगभग नष्ट हो गये है.