विदर्भ

कोर्ट से धोखा करने का प्रयास न करें, हाईकोर्ट की फटकार

देरी से समर्पण के चलते अपात्र दो कैदियों को इमरजेंसी पैरोल दिलाने का किया प्रयास

नागपुर/दि.29 – कोर्ट में भ्रामक तथ्य प्रस्तुत कर अपने पक्षकार को इमरजेंसी पैरोल दिलाने का प्रयास करने वाले एक अधिवक्ता को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने जमकर फटकार लगाई. न्या. विनय देशपांडे और न्या. अमित बोरकर ने यहां तक कहा कि वकीलों को अपने पक्षकार को राहत दिलाने के लिए कोर्ट से धोखा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए.
वकीलों को उनके कर्तव्य याद दिलाते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि अदिवक्ता जब भी कोर्ट में कोई बात कहते हैं तो कोर्ट यह मानकर चलता है कि वह बात पूरी तरह सच होगी. एक वकील का कर्तव्य कोर्ट के समक्ष सही तथ्य रखने का होता है,न कि अपने पक्षकार के साथ मिलकर मनचाहा आदेश प्राप्त करने के लिए कोर्ट को धोखा देने का. यदि कोर्ट का कोई पुराना आदेश वकील के पक्षकार के खिलाफ है, लेकिन मुकदमे की सुनवाई के लिए महत्वपूर्ण है तो वकील को उस आदेश को कोर्ट के सामने रखना चाहिए. क्योंकि वकील की कोर्ट के प्रति प्रामाणिक र हने की भी जिम्मेदारी है. इस निरीक्षक के साथ हाईकोर्ट ने संबंधित अर्जी को खारिज कर दिया. उल्लेखनीय है कि नागपुर खंडपीठ में वकीलों की अनुशासनहीनता के कई मामले बीते कुछ दिनों से सामने आ रहे हैं. इनमें कोर्ट अधिवक्ताओं को फटकार लगा रहा है.

कारागृह में है दोनों कैदी

असगर शेख और मो. याकूब अब्दुल नागपुर मध्यवर्ती कारागृह में लंबी सजा काट रहे हैं. पूर्व में इन दोनों आरोपियों को जब पैरोल दी गई थी, तो इन्होंने तय तारीख के कई दिन बाद जेल में समर्पण किया था. इसलिए हाईकोर्ट के ही एक पुराने आदेश अनुसार ये दोनों कैदी कोरोना के चलते इमरजेंसी पैरोल के लिये पात्र नहीं थे. जेल प्रशासन ने इनकी पैरोल अर्जी खारिज की थी. जिसके कारण इन्होंने हाईकोर्ट में इमरजेंसी पैरोल के लिए याचिका दायर की. कोर्ट में कैदियों के वकील ने दावा कर दिया कि उन्होंने कभी भी देरी से समर्पण नहीं किया. कोर्ट ने वकील की बात पर विश्वास कर के पैरोल के आदेश जारी करने की तैयारी कर ली थी, लेकिन दस्तावेजों के गहर अध्ययन के बाद कोर्ट को हकीकत पता चली. कोर्ट के प्रश्न करने पर वकील ने भी स्वीकार कर लिया कि वह उक्त तथ्यों से अवगत था. इससे नाराज होकर कोर्ट ने उक्त निरीक्षण के साथ याचिका खारिज कर दी.

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