* जमीन पर उतरकर समस्याएं जानें, खोजें हल
नागपुर/दि.16– कर्नाटक चुनाव के परिणाम और 5 राज्यों में हो रहे चुनावी दंगल के बीच सभी पार्टी ने नेताओं को यह आभास होने लगा है कि सोशल मीडिया से चुनाव नहीं जीता जा सकता. इसके लिए उन्हें और कार्यकर्ताओं को जमीन पर उतरना ही पडेगा. अगर केवल सोशल मीडिया के भरोसे रहे तो यह अपनी ही कब्र खोदने जैसा होगा. बीते दिनों तो एक आयोजन में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को यह समझ दी थी कि जमीन पर उतरे व जनता से सीधे संपर्क करें. संवाद करें और उनकी परेशानियों अडचनों को दूर करने के लिए मदद करें. आपकी सेवा भावना से ही लोग आपसे जुडेंगे. हालाकि भाजपा ही ऐसी पहली पार्टी रही है जिसने सोशल मीडिया को अपना हथिया बनाकर सत्ता हासिल की. उनके चुनाव जीते. लेकिन समय बीतने के साथ पार्टी नेताओे की समझ में आने लगा कि अब हालात बदल रहे हैं और केवल सोशल मीडिया उध्दार नहीं कर सकता.
* अन्य पार्टियों ने भी बदली थी रणनीति
2014 के बाद से खासकर बीजेपी ने सोशल मीडिया को अपनाकर सत्ता हासिल किया था. बाद में कई राज्यों में चुनाव भी जीते. राजनीति में सोशल मीडिया की भूमिका अहम की गई. सत्तादल ने इसका जमकर उपयोग किया. समय के साथ -साथ यह परवान भी चढा और व्यापक असर भी डालने लगा. इतना ही नहीं कांग्रेस . राकां, संपा, बसपा, शिवसेना सहित अन्य सारी पार्टी नेता भी यह मानने लगे कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वे भाजपा से काफी कम पड रहे है. कांग्रेस सहित सारी पार्टियों ने सोशल मीडिया सेल बनाया और बीजेपी के जवाब में इस प्लेटफार्म पर उतरे. लेकिन अब बीते कुछ वर्षो में लोगों को लगने लगा कि वर्चुअल व धरातल की तस्वीर में जमीन आसमान का अंतर है. लोगाेंं में नेताओ की विलप्स को लेकर फेक या डीप फेक होने की चर्चा व बहस तक होने लगी.चुनावों में इसका असर पडने लगा है. कर्नाटक चुनाव में सोशल मीडिया व डिजिटल प्लेटफार्म का भरपूर उपयोग के बाद भी बीजेपी को बुरी तरह हार का सामना करना पडा.
* अब जाकर आंख खुलने लगी
– अब बीजेपी कांग्रेस सहित सभी दलों के समझ में आ गया कि जो आभासी दुनिया में समर्थक नजर आते है. हकीकत की दुनिया में वे होते ही नहीं. मतलब सोशल मीडिया के फॉलोअर्स या लाइकर्स वोटों में उतनी संख्या में बिल्कुल परिवर्तित नहीं होते. यही कारण है कि देश के 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में नेता खुद जनता के बीच प्रत्यक्ष पहुंच रहे है.
– मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, तेलंगाना, राजस्थान में मुख्यमंत्रियों ने चुनाव घोषित होने के पहले और चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया के उपयोग मर्यादित कर प्रत्यक्ष जनता के बीच पहुंचने का रास्ता चुना है. उनकी यह भी समझ में आया कि सोशल मीडिया में उनके भाषणों वक्तव्यों के लिए विलप से छेडछार कर विरोधी पक्ष भी उनके ही खिलाफ उपयोग करता है.
– यह भी समझ में आया कि सोशल मीडिया के इस दुष्परिणाम से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि वे खुद जनता के बीच पहुंचे. यही कारण है कि अब सारे पार्टी नेेता अपने पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओ को सीधे लोगों के घर- घर तक पहुंचने की नसीहत दे रहे है.