डीआरटी पीठासीन अधिकारी भर्ती को हाईकोर्ट में चुनौती
केंद्र सरकार को नोटिस, 6 दिसंबर तक मांगा जवाब
नागपुर/दि.10– कर्ज वसूली न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी के 11 रिक्त पद भरने के लिए जारी हुए विज्ञापन के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की गई है. न्यायालय ने इस याचिका को गंभीरता से लेकर केंद्रिय वित्त विभाग के सचिव और विधि व न्याय विभाग के सचिव को नोटिस जारी किया है. साथ ही आगामी 6 दिसंबर तक जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं.
याचिका पर न्यायमूर्ति अतुल चांदूरकर व न्या. अभय मंत्री के सामने सुनवाई हुई. एड. सचिन फुलाडी ने यह याचिका दायर की है. संबंधित विज्ञापन 5 सितंबर 2023 को जारी किया गया है. पीठासीन अधिकारी की भर्ती न्यायाधिकरण सुधार कानून व नियमानुसार होने वाली है. याचिका में इसमें के कुछ प्रावधान की वैद्यतता को चुनौती दी गई है. इस कारण याचिका पर निर्णय होने तक पीठासीन अधिकारी की भर्ती न की जाए, ऐसा याचिकाकर्ता का कहना है. याचिकाकर्ता की तरफ से एड. तुषार मंडलेकर ने पक्ष रखा.
* यह प्रावधान अवैध ठहराने का अनुरोध
– न्यायाधिकरण सुधार नियम 3 (8) के मुताबिक पीठासीन अधिकारी पद के लिए केवल निवृत्त व वर्तमान जिला न्यायाधीश पात्र है. इसमें से वकील को छोडा गया है. 10 साल का अनुभव रहे वकील उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बन सकते हैं, लेकिन वे डिआरटी के पीठासीन अधिकारी नहीं बन सकते. इस कारण यह प्रावधान अवैध है, ऐसा याचिका में दर्ज किया गया है.
– न्यायाधिकरण सुधार कानून की धारा 3 (1) के मुताबिक डिआरटी पीठासीन अधिकारी होने के लिए कम से कम 50 वर्ष आयु रहना आवश्यक है. यह प्रावधान घटनाबाह्य रहने का दावा याचिकाकर्ता ने किया है.
– धारा 3 (6) के मुताबिक चयन समिति को डिआरटी पीठासीन अधिकारी व सदस्य भर्ती के लिए प्रक्रिया निर्धारित करने का अधिकार है. यह प्रावधान नियुक्ति की पारदर्शिता व प्रामाणिकता पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित करता है, ऐसा याचिका में कहा गया है.
– धारा 3 (7) के मुताबिक चयन समिति को प्रत्येक पद के लिए दो नाम केंद्र सरकार के पास भेजना है. पश्चात एक नाम अंतिम किया जाएगा. यह प्रावधान न्यायालय की स्वतंत्रता को बाधा पहुंचाने वाली है, ऐसा याचिका में दर्ज किया गया है.
– पीठासीन अधिकारी का कार्यकाल 4 साल का रहेगा. ऐसा प्रावधान धारा 5 में किया गया है. यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय में मद्रास बार एसोसिएशन के प्रकरण में दिए निर्णय को धूल में मिलाने का आरोप याचिकाकर्ता ने किया है.