विदर्भ

रेरा मामलों पर 60 दिनों में फैसला असंभव

खंडपीठ का अभाव रहने के चलते न्याय मिलने में हो रही देरी

नागपुर दि.6 – महाराष्ट्र स्थावर संपदा नियामक प्राधिकरण यानी महारेरा के पास दर्ज मुकदमों पर 60 दिनोें के भीतर फैसला सुनाये जाने का नियम व प्रावधान है. किंतु प्रलंबत मामलोें की वजह से त्रस्त ग्राहकों को त्वरित न्याय मिलना लगभग असंभव हो चला है. ऐसे में रेरा हेतु खंडपीठों की संख्या बढाये जाने की मांग जोर पकड रही है.
बता दें कि, घर का कब्जा समय पर नहीं दिया, इसी कारण के चलते घर खरीदना संभव नहीं रहने पर टोकन के तौर पर दी गई रकम अथवा घर के लिए अदा की गई पूरी रकम वापिस करने में बिल्डरों द्वारा टालमटोल की जाती है. ऐसी शिकायतें महारेरा के पास आती है. जिन पर प्राधिकरण के समक्ष सुनवाई होती है. कई बार ग्राहक और बिल्डर सुनवाई की झंझट में पडे बिना आपसी सामंजस्य से मामले हल कर लेते है और कई मामलों को आपसी समझौते से सुलझा लिया जाता है. किंतु जिन मामलों में ऐसा नहीं हो पाता, उन मामलों में प्राधिकरण की ओर से फैसला आने में काफी लंबा वक्त लगता है. बता दें कि, महारेरा कंसायलेशन फोरम द्वारा स्पष्ट तौर पर आदेश जारी किया गया है कि, शिकायत दर्ज होने के बाद अधिक से अधिक 60 दिनों के भीतर मामले का निपटारा करते हुए फैसला सुना दिया जाना चाहिए. किंतु इस समय महारेरा के पास 5 हजार से अधिक मामले प्रलंबित है. ऐसे में 60 दिन के भीतर मामलों की सुनवाई करते हुए अंतिम फैसला सुनाना संभव ही नहीं है. जिसके चलते अब ग्राहक संगठनों तथा बिल्डरों द्वारा नये खंडपीठ स्थापित करने की मांग की जाने लगी है.
ज्ञात रहे कि, महारेरा ने कोविड संक्रमण काल के दौरान ऑनलाईन सुनवाई करते हुए प्रलंबित मामलों को सुलझाने का प्रयास किया था. किंतु इसी दौरान गृहनिर्माण प्रकल्प पूरा करने में तय समय का पालन नहीं कर पानेवाले बिल्डरों के नाम घोषित हो गये. साथ ही कई प्रकल्पों को ब्लैक लिस्टेड भी किया गया. जिसके चलते नये सिरे से दाखिल होनेवाली शिकायतों की संख्या बढ गई है.

मामले की पहली सुनवाई में ही विलंब
महारेरा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए मुकदमा दायर करने के बाद पहली सुनवाई होने में ही करीब 9 से 10 महिने का समय लग जाता है. पहली सुनवाई के दौरान दोनों ओर के पक्षकारोें को सामंजस्य फोरम अंतर्गत विवाद खत्म करने और मामला सुलझाने के बारे में पूछा जाता है. जिससे किसी भी एक पक्षकार द्वारा इन्कार किये जाने पर 6 से 9 माह के बाद अगली सुनवाई होती है. ऐसे में इतनी धीमी गति से काम होने के चलते 60 दिनों के भीतर तो किसी स्थिति में रेरा संबंधी मामलोें की सुनवाई पूर्ण होकर अंतिम फैसला नहीं आ सकता. यह पूरी तरह से स्पष्ट है

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