विदर्भ

गडकरी की नाराजगी पड गई मुंडे पर भारी

स्मार्ट सिटी CEO का मामला साबित हुआ मुसीबत

नागपुर – स्मार्ट सिटी प्रकल्प पर कब्जा पाने का प्रयास करना तुकाराम मुंंडे को मनपा आयुक्त पद से हटाने का एक बडी वजह साबित हुई है. स्मार्ट सिटी प्रकल्पों पर जिस पध्दति से मुंडे ने कब्जा करने का प्रयास किया. उससे वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री और नागपुर के सांसद नितिन गडकरी नाराज हो गये थे. यही नाराजगी मुंडे पर भारी पड गई और उनको नागपुर से अपनी रवानगी करनी पडी है. यहां एक अधिकारी ने बताया कि तुकाराम मुंडे ने जब से नागपुर मनपा आयुक्त के पद की जिम्मेदारी संभाली तब से ही वे अन्य दूसरे अधिकारियों को ही नहीं तो राजनीतिक दल के नेताओं को भी तवज्जों नहीं दे रहे थे.

उन्होंने एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया कि मानो सभी राजनीतिक नेता भ्रष्ट है और स्वयं जनता के हित का काम कर रहे है. मनपा में जो भ्रष्टाचार फल फूल रहा था. वह नष्ट करने का वे काम कर रहे थे. उनकी कार्यशैली से अधिकारी भी आवक थे. इतना ही नहीं तो विभागीय आयुक्त और पुलिस आयुक्त की बैठक भी वे बीच में ही छोडकर जारहे थे. बैठक में जो कुछ भी चर्चाए होती थी उस बारे में वे तुरंत मुंबई मेें जानकारी दे रहे थे. जिससे वे यह दिखाने का प्रयास कर रहे थे कि जो कुछ चल रहा है वे स्वयं ही कर रहे है. जबकि अन्य अधिकारी कुछ काम नहीं करते है. जिससे अधिकारियों में सहयोग का माहौल नहीं रहा. सूत्रों के अनुसार मुंडे ने पुलिस आयुक्त भूषण कुमार उपाध्याय को लेकर भी षडयंत्र रचा और मुख्यमंत्री से कानाफूसी की कि वे चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार हो सकते है. जिसके बाद पुलिस आयुक्त के तबादले की खबरे भी तेजी से फैल गई. लेकिन इसमें गृहमंत्री अनिल देशमुख ने हस्तक्षेप किया.

देशमुख ने कहा कि मुझे सूचित न करते हुए पुलिस आयुक्त का तबादला कैसे किया जा सकता है. नागपुर के हालत काफी बेहतर है. जिसके बाद उपाध्याय के तबादले का मामला शांत हुआ. कहा जा रहा है कि भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं को परेशान करने के लिए मुंडे को नागपुर में भेजा गया था. पूर्व मुख्यमंत्री व विधानसभा के विरोधी पक्ष नेता देवेन्द्र फडणवीस के निकटतम माने जानेवाले महापौर संदीप जोशी का मुंडे के साथ खुले तौर पर संघर्ष चल रहा था. नाग नदी के लिए गडकरी ने निधि लाया था. मो. इजराइल इस अधिकारी के नेतृत्व में काम शुरू था. उन्हें की मुंडे ने हटा दिया. इजराइल यह सेवानिवृत्त हुए थे. लेकिन उनकी क्षमता देखकर उनको मानधन पर प्रकल्प की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन मुंंडे ने गडकरी की एक बात भी नहीं सुनी और उनको हटा दिया. शहर में अधिकांश मुद्दों पर उन्होंने गडकरी को भरोसे में नहीं लिया जिससे गडकरी नाराज थे. वहीं दूसरी ओर मुंडे ने स्मार्ट सिटी प्रकल्प पर अपनी पकड मजबूत कराई. वे स्वयं ही सीईओ बने व यहां से १४ करोड का निधि जो कचरा ट्रांसफर स्टेशन के लिए प्राप्त हुआ था उसे बायोमायनिंग प्रोजेक्ट में हस्तांतरित किया. स्मार्ट सिटी प्रकल्प के अन्य कार्य को भी उन्होंने कैची लगाई. मुुंडे को गडकरी से मुलाकात की जरूरत भी नहीं लगी.

एकबार भी वे गडकरी से मुलाकात करने नहीं गये. जिससे शहर में यह संदेश पहुंचा कि मुंडे गडकरी को महत्ता नहीं दे रहे है. इन सभी बातों से गडकरी नाराज थे. नागपुर स्मार्ट सिटी प्रकल्प यह गडकरी की ही देन है. उन्होंने यह प्रकल्प लाया है. लेकिन इस प्रकल्प के सीईओ पद पर मुंडे विराजमान हुए और प्रकल्प में बाधाए लाना शुरू किया. इस मामले की गंभीर दखल लेकर गडकरी ने नगरविकास मंत्रालय को पत्र लिखकर शिकायत दर्ज कराई. केन्द्रीय मंत्री हरदीपसिंग पुरी के साथ चर्चा भी की. इसके बाद दिल्ली से जांच के लिए एक समिति नागपुर पहुंची. इस समिति ने मुंडे का सीईओ पद गैर कानूनी होने की जानकारी दी. जिसके बाद मुुंडे को परेशानी में लाने के लिए उनके कार्यो की जांच शुरू की गई. इसके बाद मुंबई की सूचना पर मुंडे ने गडकरी से मुलाकात कर अपना पक्ष रखा.

उध्दव ठाकरे के पास गडकरी ने जताई नाराजगी

गडकरी के नाराजगी की जानकारी मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे को मिलते ही उन्होंने गडकरी को फोन किया व यह स्पष्ट किया कि उनको परेशान करने का कोई उद्देश्य नहीं है. उध्दव ठाकरे और गडकरी के बीच काफी अच्छे संबंध है. बावजूद इसके गडकरी ने अपनी नाराजगी स्पष्ट रूप से जताई. इसी दरमियान राष्ट्रवादी नेता शरद पवार को भी गडकरी ने फोन किया व मुंडे के प्रति नाराजगी दूर कर कोई भी कडी कार्रवाई नहीं करने की विनती की. सूत्रों की माने तो इसके बाद एक अदृश्य समझौता हुआ कि मुंडे को तत्काल नागपुर से बदल दिया जाए. जिससे गडकरी की प्रतिमा बरकरार रहे. इसी तरह मुंडे की नागपुर से रवानगी की गई है.

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