नागपुर/दि.9 – भोजन में दाल यह महत्वपूर्ण घटक माना जाता है. लेकिन 4-6 माह में ही दाल खराब होने लगती है. जिसके चलते दाल को संग्रहित रखने की समस्या भी निर्माण होती है. इस समस्या का हल नागपुर दाल मिल क्लस्टर व भाभा एटोमेटिक रिसर्च सेंटर ने ढूंढ निकाला है. गॅमा तकनीकी सहयोग से दाल की उम्र बढ़ाने के लिए संशोधन शुरु किया गया है. यह प्रयोग जल्द ही शुरु होगा, जिससे कीड़े लगने और अन्य बीमारियों से दाल की सुरक्षा की जा सकेगी.
यहां बता दें कि दाल का उत्पादन होने के बाद भाव नहीं मिलने पर किसान स्टॉक रखने पर ज्यादा खर्च करते हैं. कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव किया जाता है. जिससे दाल का पोषण मूल्य कम होता है. अनेक बार दाल खरीदी करने के बाद भी कीड़े, फफूंद का असर दिखाई देता है. गॅमा तकनीकी की सहायता से इस समस्या को हल किया जा सकता है. नागपुर परिसर में विविध प्रकार की दालों पर प्रक्रिया करने वाले यूनिट्स की संख्या बढ़ी है. विशेषतः अरहर पर प्रक्रिया की जाती है. यह दाल संपूर्ण मध्यभारत सहित तेलंगाना, आंध्रप्रदेश व चेन्नई तक बिक्री हेतु जाती है. साधारणतः 3 से 4 महीने में ही दाल को दीमक लगने लगती है. 6 महीनों से ही नुकसान शुरु हो जाता है. विशेषतः चना दाल, तुअर दाल, मटर पर दीमक लगती है. यह समस्या किसानों व ग्राहकों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है. इसलिए दाल मिल क्लस्टर ने संशोधन शुरु किया है. भाभा एटोमेटिक रिसर्च सेंटर के संशोधकों का इसमें समावेश है. शुरुआती चरण में तुअर, चना और बेसन पर गॅमा तकनीकी व्दारा प्रयोग किया जाएगा. दाल का स्वाद, पोषण मूल्य आदि पर गॅमा रोशनी का क्या असर होता है, यह जांचा जाएगा. यह जानकारी नागपुर दाल मिल क्लस्टर प्रा. लि. के संचालक मनोहर भोजवानी ने दी.
15 दिनों में होगी शुरुआत
आगामी 15 दिनों में गॅमा रोशनी का उपयोग कर दाल की उम्र बढ़ाने का प्रयोग शुरु किया जाएगा. लगभग 6 महीने यह परीक्षण चलेगा. प्रयोग सफल होने पर पूरे देशभर में यह प्रक्रिया चलाई जाएगी.