विदर्भ

बंदी के आदेश तोडकर पांढूर्णा में हुई गोटमार

(Gotmar) ३०० वर्ष पुरानी परंपरा कायम

  •  १५० से अधिक घायल

  • वाहनों पर भी पत्थराव

  • प्रशासन हुआ विवश, पुलिस बनी मुकदर्शक

प्रतिनिधि/ दि.२०

वरुड – पिछले ३०० वर्ष से मध्यप्रदेश के पांढूर्णा में गोटमार की परंपरा है. पोला के पाडवा के दिन पांढूर्णा व सावरगांव के नागरिक नदी की दोनों ओर खंडे होकर एक-दूसरे पर पत्थराव कर नदी में से पूजा किया गया झंडा ले जाने का प्रयास करते है. इस बार कोरोना वायरस को देखकर गोटमार पर पाबंदी लगाई गई थी. परंतु दोनों गांववासियों ने बंदी के आदेश को न मानते हुए परंपरा कायम रखी. इसमें १५० से अधिक लोग घायल हुए. पुलिस के वाहनों की भी तोडफोड हुई. प्रशासन आखिर विवश हो गया. पुलिस कर्मचारी भी मुकदर्शक बनकर खडे रह गए.

फिलहाल पूरे देशभर में कोरोना वायरस का प्रादुर्भाव बढने के कारण छिंदवाडा के जिलाधिकारी ने पांढूर्णा में होने वाले गोटमार को इस बार बंद रखने के आदेश जारी किये थे. दो दिन पूर्व पांढूर्णा व सावरगांव के नागरिकों की बैठक ली गई थी. इसके कारण इस बार गोटमार नहीं होगी, लगभग ऐसा तय हो गया था. परंतु कल बुधवार को पोले के दूसरे दिन दोनों गांव के नागरिकों ने आगे आकर नदी में पेड पर भगवान झंडा लगाया. यहां गोटमार न हो इसलिए पहले से ही बडी संख्या में पुलिस जवान तैनात किये गए थे. मगर पारंपारिक जगह पर झंडा लगने के बाद दोनों गांव के नागरिकों ने गोटमार शुरु की. पेड पर से झंडा उतारने के लिए दोनों गांव के स्पर्धक नदी में उतरे स्पर्धक झंडा न उतारने पाये इसलिए जबर्दस्त गोटमार शुरु हो गई. इसमें दोनों गांव के कई लोग घायल हो गए, उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया. नागरिकों व्दारा शुरु किये गए गोटमार को देखते हुए पुलिस ने मुकदर्शक की भूमिका अपनाई. कुछ पुलिस कर्मचारियों ने विरोध करने का प्रयास किया. मगर हजारों नागरिकों की गोटमार देखते हुए पुलिस को मजबूरी में शांत होना पडा. दोपहर से शुरु हुई गोटमार शाम तक शुरु थी. शाम तक कोई भी स्पर्धक पेड से झंडा नहीं उतार पाया. इसके बाद दोनों गांव के नागरिकों ने पेड से झंडा उतारकर नदी के तडपर स्थित चंडिका माता के मंदिर में रखा. कोरोना को देखते हुए प्रशासन ने बंदी लागू की फिर भी आदेश को न मानते हुए गोटमार शुरु की गई, अब प्रशासन व्दारा उनके खिलाफ क्या कदम उठाए जाते है, इस ओर सबका ध्यान लगा हुआ है. इस दौरान वरुड से पांढुर्णा की ओर जाने वाले मार्ग पर नाकाबंदी की गई थी.

अनोखी गोटमार विख्यात

है सीपीएन्ड बेरार के कालखंड में महाराष्ट्र में रहने वाले फिलहाल मध्यप्रदेश के भाग छिंदवाडा जिले के पांढूर्णा गांव में पोले के दूसरे दिन होने वाली गोटमार पूरे विश्व में विख्यात है. गोटमार के दिन पांढुर्णा गांव के पास से गुजरने वाली नदी में पेड पर भगवा झंडा लगाया जाता है. पांढुर्णा के गांववासी व पैल किनारे सावरगांव के नागरिक पेड का भगवा झंडा उतारने का प्रयास करते है, इसके विरोध में गांव के स्पर्धक झंडा न उतारने पाये इसलिए दोनों ही गांव के लोग जमकर पत्थराव करते है. इस गोटमार में कई लोग घायल हुए है, कई स्थायी तौर पर विकलांग हो गए है, इसके बावजूद भी हर वर्ष बडे ही उत्साह के साथ गोटमार खेला जाता है.

प्रेमी युगल के विवाह की आख्यायिका

उस कालखंड में पांढुर्णा के युवती का सावरगांव के युवक के साथ प्रेमविवाह हुआ था. इसके बाद दोनों नदी से सावरगांव की ओर जा रहे थे, इस समय दोनों गांव के नागरिकों ने उनपर जमकर पत्थराव किया. जिसके चलते दोनों प्रेमी युगल की वहीं पर मौत हो गई तब नदी के तट पर स्थित चंडिका माता मंदिर के पास दोनों को समाधि दी गई थी तब से पांढूर्णा की यह गोटमार परंपरा शुरु है, जो पूरे विश्व में अपने आप में एक अनोखी परंपरा मानी जाती है.

Related Articles

Back to top button