नागपुर/दि.24 – बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने बुधवार को राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई. कहा कि वर्ष 2019 में महाआघाडी सरकार आने के बाद से ही विदर्भ की अनदेखी बढती जा रही है. वर्ष 2020 में विदर्भ विकास मंडल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नए मंडल का गठन नहीं हुआ है. यही नहीं, विदर्भ के अनेक विकासकार्य भी रोक दिए गये है. इन कार्यो के लिए मंजूर निधि भी अन्य कार्यो में डाल दी गई है. राज्य सरकार इन मुददों पर नागपुर खंडपीठ में भी जवाब देने से लगातार बच रही है. न्या. सुनील शुक्रे और न्या. अनिल किल्लोर की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार के इस बर्ताव से तो यही लगता है कि सरकार विदर्भ के साथ भेदभाव कर रही है. कोर्ट ने कहा कि विदर्भ इसी प्रदेश का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, लेकिन इसके विकास कार्यो के प्रति राज्य सरकार का रवैया उदासीन है. हाल ही में विदर्भ के विकास कार्यो के लिए मंजूर निधि को राज्य सरकार ने अन्य कार्यो में लगा दिया है. हाईकोर्ट में विदर्भ के विकास कार्यो के संबंध में दायर याचिकाओं के अनेक बार राज्य सरकार समय पर उत्तर प्रस्तुत नहीं करती दिखी और न ही निधि मंजूर करती है. इस मामले में प्रदेश महाधिवक्ता भी पर्याप्त समय दिए जाने के बावजूद कोर्ट में उत्तर नहीं दे रहे है. हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता को दो सप्ताह के में उत्तर के साथ सुनवाई में हाजिर होने के आदेश दिए है.
यह है मामला- हाईकोर्ट ने स्वतंत्र विदर्भ समर्थक नितीन रोंघे और विकास मंडल के पूर्व सदस्य डॉ. कपिल चंद्रायण द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश जारी किया है. अप्रैल 2020 में विदर्भ विकास मंडल का कार्यकाल समाप्त हुआ. राज्यपाल मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद ही इस मंडल का गठन कर सकते है.लेकिन मंत्रिमंडल ने राज्यपाल को ऐसी कोई सिफारिश नहीं की है.
कोर्ट की अखंडता और प्रतिष्ठा को कम करने का प्रयास न करें
नागपुर खंडपीठ में विविध कार्यो के लिए अब तक निधि मंजूर नहीं हुई है. बारिश के दिन में कोट के कुछ कमरों में भी पानी टपक रहा है. इस पर कोर्ट प्रशासन ने संबंधित अधिकारियों को संपर्क करके नागपुर खंडपीठ के विकास कार्यो के लिए निधि उपलब्ध कराने को कहा था. लेकिन लंबी प्रक्रिया का हवाला देकर यह काम पूरा नहीं किया गया. इस पर भी हाईकोर्ट ने सरकार को फटकारा है. आखिरकार नागपुर खंडपीठ के विकास कार्यो के लिए मंजूर निधि बॉम्बे हाईकोर्ट की प्रधान पीठ को कैसे दी जा सकती है? राज्य सरकार कोर्ट की अखंडता और प्रतिष्ठा को कम करने का प्रयास न करे.