विदर्भ

रक्त संबंधि रहनेवाले दो लोगों की जाति अलग-अलग कैसे?

हाईकोर्ट ने पडताल समिति को लगाई फटकार

नागपुर /दि. 25– रक्त संबंध के नियमों को कचरे की टोकरी में डालनेवाली अमरावती जिला जाति प्रमाणपत्र पडताल समिति को गत रोज मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने जमकर आडेहाथ लिया और रक्त संबंधि रहनेवाले लोगों की जाति अलग-अलग कैसे हो सकती है, यह सवाल पुछते हुए पडताल समिति को कडी फटकार भी लगाई. साथ ही समिति के विवादास्पद निर्णय को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को अनुसूचित जनजाति का जाति वैधता प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दिया.
इस मामले को लेकर मिली जानकारी के मुताबिक प्रभाकर हेडाऊ नामक याचिकाकर्ता के चचेरे भाई-बहन को हलबा अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र जारी किया गया और उन प्रमाणपत्रों की वैधता आज भी कायम है. जिसे लेकर कोई विवाद नहीं है, लेकिन इसके बावजूद समिति ने प्रभाकर हेडाऊ को वैधता प्रमाणपत्र देने से इंकार करते हुए उनका दावा 12 अक्तूबर 2022 को नामंजूर कर दिया. जिसके बाद प्रभाकर हेडाऊ ने पडताल समिति के फैसले के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्या. अविनाश घारोटे व न्या. अभय मंत्री की खंडपीठ ने पडताल समिति के निर्णय को लेकर अपनी नाराजगी जताने के साथ ही इस अजिबोगरीब फैसले के लिए समिति को जमकर आडेहाथ भी लिया. साथ ही कहा कि, प्रभाकर हेडाऊ को जाति वैधता प्रमाणपत्र देने से इंकार करने का कोई कारण रिकॉर्ड पर दिखाई नहीं देता है.

* इस ठोस सबूत की भी अनदेखी
बता दें कि, संविधान लागू होने से पहले जारी हुए दस्तवेजों का जाति वैधता प्रमाणपत्र संबंधि मामलो में काफी महत्व होता है. प्रभाकर हेडाऊ के चचेरे दादाजी के नाम पर 3 जुलाई 1931 को शाला का दाखिला जारी हुआ था. जिस पर हलबा जाति का उल्लेख है. हेडाऊ ने इन दाखिले को भी समिति के समक्ष प्रस्तुत किया था परंतु समिति ने इसकी ओर भी अनदेखी की. इस बात के लिए भी हाईकोर्ट ने समिति को फटकार लगाई. इस मामले में हेडाऊ की ओर से एड. शैलेश नारनवरे ने हाईकोर्ट में पैरवी की.

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