नागपुर – /दि.25 मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक मामले को लेकर दिये गए फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि, जिस तरह पत्नी को अपने पति से खावटी कै तौर पर गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है, उसी तरह यह अधिकार पति के भी पास है कि, वह आर्थिक रुप से सक्षम पत्नी से गुजारा भत्ता मांग सकता है. अदालत के मुताबिक यह कानून किसी भी तरह का लिंगभेद नहीं करता है और पति व पत्नी दोनों ही एक-दूसरे पर खावटी मिलने हेतु दावा दाखिल कर सकते है.
न्या. रोहित देव व न्या. उर्मिला जोशी द्बारा अपने फैसले में कहा गया कि, हिंदू पद्धति से हुए विवाह के पश्चात अधिकार, जिम्मेदारी व दायित्व निश्चित करने हेतु हिंदू विवाह अधिनियम के रुप में एक परिपूर्ण कानून को अमल में लाया गया है. जिसकी धारा 25 में स्थायी तौर पर खावटी व धारा 24 में न्यायालय के समक्ष याचिका प्रलंबित रहते समय अस्थायी तौर पर खावटी देने का प्रावधान आय का कोई साधन नहीं रहने पर अपना खुद का उदर निर्वाह करने में असक्षम रहने वाली महिला द्बारा अपने पति से निर्वाह भत्ता मांगा जा सकता है. इसी तरह यदि पत्नी कमाती है और पति आर्थिक रुप से असक्षम है, तो पति भी अपनी पत्नी से खावटी मांग सकता है. यह अपने आप में बडी सीधी और स्पष्ट व्याख्या है.
बता दें कि, 22 जुलाई 2016 को अमरावती के पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी के लिए 10 हजार रुपए का खावटी मंजूर करने का फैसला सुनाया था. जिसके खिलाफ पुणे निवासी पति ने उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी. इस अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के इस प्रावधान की ओर ध्यान दिलाया. जिसके तहत कहा गया कि, हिंदू विवाह अधिनियम पीडित पति व पीडित पत्नी को समसमान रुप से न्याय दिलाता है और इस कानून में इस बात की ओर पूरा ध्यान रखा गया है कि, विवाह यह गुड्डे-गुडिया का खेल बनकर न रह जाए. छोटी-मोटी बातों को लेकर पति-पत्नी एक-दूसरे से दूर नहीं हो सकते और एक-दूसरे के संदर्भ में अपनी जिम्मेदारियों को नहीं झटक सकते. ऐसा भी अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया.