नागपुर/दि.14– कभी-कभी कोर्ट में नए-नए मामले देखने को मिलते हैं. मुंबई हाईकोर्ट के नागपुर खंडपीठ में इसी तरह का एक मामला दायर किया गया था. इस मामले में पति को पहले आयुर्वेदिक डॉक्टर मानते हुए उस क्षमता में पत्नी को गुजारा भत्ता दिया गया था, लेकिन पत्नी का गुजारा भत्ता 20 प्रतिशत कम कर दिया गया क्योंकि हाई कोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि पति एक्यूपंक्चर डॉक्टर था.
मामले में पति वाशिम का रहने वाला है, जबकि पत्नी बुलडाणा जिले की रहने वाली है. दंपति की 12 साल की बेटी और 9 साल का बेटा है. पारिवारिक मतभेदों के कारण पत्नी अपने दो बच्चों के साथ अलग रह रही है, इसलिए उसने अपने सह-बच्चों के भरण-पोषण के लिए प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी की अदालत में आवेदन दायर किया. उस समय, उनके पति ने वह बीएएमएस स्नातक होने की बात मंजूर की थी, लेकिन बी.ए.एम.एस. मतलब बैचलर ऑफ एक्यूपंक्चर मेडिसिन एंड सर्जरी, उन्होंने ये मतलब नहीं बताया. परिणामस्वरूप 27 अप्रैल 2022 को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी अदालत ने यह मानते हुए कि, बी.ए.एम.एस. इस डिग्री का मतलब बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी है, पत्नी को पांच हजार रुपये और दोनों बच्चों को एक-एक हजार रुपये का मासिक भत्ता दिया गया. इसके बाद सत्र न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. इसके लिए पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि वह आयुर्वेदिक डॉक्टर नहीं, बल्कि एक्यूपंक्चर डॉक्टर है. इस मामले को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने पत्नी का मासिक गुजारा भत्ता 20 फीसदी घटाकर 4 हजार रुपये कर दिया. तथा दोनों बच्चों का गुजारा भत्ता जस की तस कायम रखा.
* पति की मासिक कमाई 15 हजार रुपए
पति का कहना है कि वह मरीजों के इलाज के लिए केवल 50 रुपये लेता है और प्रति माह 15 हजार रुपये कमाता है, साथ ही यह भी कहा कि आयुर्वेदिक और एक्यूपंक्चर की उपाधियों को एक समान नहीं माना जा सकता है पत्नी और बच्चों का गुजारा भत्ता घटाकर नौ हजार रुपये किया जाए. लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी मांग अंशत: ही मंजूर की.