मोर्शी / दि. ५– प्रधानमंत्री आवास योजना के घरकुल को शहरी क्षेत्र में २ लाख ५० हजार रुपए अनुदान दिया जाता है. किंतु ग्रामीण क्षेत्र में १ लाख ४० हजार रुपए अनुदान दिया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में दिया जानेवाला अनुदान कम है. बढ़ती महंगाई के इस दौरा में घरकुल निर्माण सामग्री के दरें भी बढने से लाभार्थियों में नाराजगी व्यक्त की जा रही है. अतिरिक्त कर्ज लेकर घरकुल का सपना पूरा करना पड़ रहा है. लाभार्थियों को हो रही तकलीफ को देखते हुए अनुदान बढ़ाकर देने की मांग ग्राम पंचायत सदस्य रूपेश वालके ने की है. ग्रामीण क्षेत्र में सीमेंट, लोहा, रेत, ईंटे आदि निर्माण सामग्री नहीं मिलती. यहां के लोगों को शहर से सामग्री लाना पड़ता है. जिसके कारण उनका अतिरिक्त खर्च हो रहा है. शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्र के लाभार्थियों को कम अनुदान मिलने से अनुदान बढ़ाकर देने की मांग जोर पकड रही है. महंगाई आसमान छू रही है. कम पैसों में घरकुल का निर्माण कार्य करना संभव नहीं हो रहा. सरकार की तरफ से मिलने वाला अनुदान भी समय पर नहीं मिलता. कर्ज लेकर लाभार्थियों को घरकुल का निर्माण कार्य करना पड़ रहा है. कई लाभार्थियों का निर्माण कार्य अध्ाूरा है. इसलिए सरकार ने बढ़ती महंगाई को देखते हुए शहरी क्षेत्र की तर्ज पर ग्रामीण क्षेत्र में भी ढाई लाख रुपए अनुदान देने की मांग ग्रापं सदस्य रूपेश वालके ने की है.
अनुदान के लिए काटना पड़ रहा चक्कर
सभी दस्तावेज जुटाने के बाद घरकुल मंजूर होता है. पहले चरण का काम पूरा होने के बाद पहली किश्त मिलती है. तथा अन्य काम पूरा होने के बाद दूसरे चरण का अनुदान मिलता है. घरकुल के निर्माण कार्य के लिए सरकार की तरफ से मिलनेवाले अनुदान के लिए संबंधित कार्यालय के अनेक चक्कर लाभार्थियों को काटना पड़ता है.
महंगाई से त्रस्त
बढ़ती महंगाई के कारण लाभार्थियों के समक्ष दिक्कतें आ रही है. वर्तमान में निर्माण कार्य सामग्री के दाम दोगुना होने से लाभार्थी परेशान है. १ लाख ४० हजार रुपए में घरकुल का निर्माण कार्य कैसे संभव होगा? यह सवाल उनके समक्ष निर्माण हो गया है.
अनुदान में बढ़ोतरी करें
घरकुल लाभार्थी को आर्थिक स्थिति को देखते हुए घरकुल का निर्माण कार्य करना पड़ता है. फिलहाल पीएम आवास योजना, आदिवासी घरकुल योजना, शबरी घरकुल योजना चलायी जा रही है, परंतु घरकुल के लिए कम अनुदान मिलने से दिक्कतें आ रही है. सरकार की तरफ से मिलने वाले अनुदान में बढ़ोतरी करने की जरूरत है.
रूपेश वालके, सदस्य, ग्रापं