विदर्भ

सुसाइड नोट में नाम होना ही काफी नहीं, गलत मंशा भी सिद्ध होनी चाहिए

आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला

  • हाईकोर्ट ने वाशिम के रिसोड नगर परिषद के तत्कालीन मुख्याधिकारी व अन्य को किया बरी

नागपुर प्रतिनिधि/दि.१९ – बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने कल्पेश वर्मा नामक युवक को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी वाशिम जिले के रिसोड नगर परिषद के तत्कालीन मुख्याधिकारी सुधाकर पानझाडे, नगरसेविका मीना अग्रवाल, उनके पति अशोक अग्रवाल व सुनील बागडिया नामक व्यवसायी को बरी किया है. कल्पेश के भाई की शिकायत पर रिसोड थाने में आरोपियों के खिलाफ १० अप्रैल २०१६ को भादवि ३०६, १२०-बी, ४७७-सी व ३४ के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. इस प्रकरण में हाईकोर्ट ने यह माना कि आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में किसी व्यक्ति को तब ही सजा दी जा सकती है, जब उसकी गलत मंशा सिद्ध की जा सके. केवल सुसाइड नोट में किसी व्यक्ति का नाम आना ही काफी नहीं है. दरअसल, कल्पेश के परिवार के पास क्षेत्र में ३२७ वर्ग मीटर जमीन है. यहां बने निर्माणकार्य को अवैध बता कर इसे गिराने के लिए नप ने कल्पेश के पिता को नोटिस भेजा था. वर्मा परिवार और प्रशासन का यह विवाद दीवानी न्यायालय में भी पहुंचा था. ७ अप्रैल को कल्पेश ने आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में उसने आरोपियों के नाम लिखे थे.

  • जमीन का आधा हिस्सा मांग कर दबाव बनाने का आरोप

कल्पेश के परिवार ने आरोप लगाया कि, अपने पद की धौंस दिखाकर कल्पेश से जमीन में आधा हिस्सा मांगा गया था. इसके कारण तनाव में आकर कल्पेश ने आत्महत्या कर ली थी. इस प्रकरण में कोर्ट ने माना कि सुसाइड नोट या किसी भी अन्य प्रकार से पीडित परिवार यह सिद्ध नहीं कर पाया कि, आरोपी अधिकारी-पदाधिकारियों ने कल्पेश को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाई या प्रताडित किया. मामले में सभी पक्षों को सुनकर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर दर्ज एफआईआर खारिज करने के आदेश जारी किए है.

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