रिध्दपुर/ दि. 30- महानुभाव पंथियों की काशी के रूप में सर्वत्र विख्यात श्रीक्षेत्र रिध्दपुर भगवान गोविंद प्रभु व सर्वज्ञ चक्रधर स्वामी के वास्तव्य से पावन नगरी है. आषाढी एकादशी के दिन यात्रा महोत्सव व प्रसाद वंदना के लिए गुरूवार को जनसागर उमडा था. यहां के गोविंंद प्रभु राजमठ, गोपीराजबाबा मठ, यक्षदेव बाबा मठ, वाईनदेशकर बाबा मठ, तलेगांवकर बाबा मठ, भगतराज बाबा मठ में पवित्र आस्था प्रसाद का वंदन करने हजारों भक्त रिध्दपुर में आते है.
प्रसाद वंदना का मतलब क्या हैं ?
प्रसाद वंदना का मतलब है कि परमेश्वर ने प्रसन्न होकर भक्तों को दिया प्रसाद, उसी को प्रसाद वंदना कहा जाता है, इसमें प्रमुख रूप से चक्रधर स्वामी व गोविंद प्रभु द्बारा इस्तेमाल किए गए वस्त्र, शाल, धोती जैसी चीजे गत 850 वर्षो से पुरखों ने जतन कर रखे है. कागज के बोर्ड पर कपास में उस पवित्र चीजों के अवशेष रखकर उस पर जाली लगाई जाती है. उसके बाद उसे कव्हर लगाकर सुरक्षित पेटी में रखा जाता है. आषाढी एकादशी के दिन यह अनमोल विरासत भक्तों को वंदन करने के लिए खुली की जाती है. यहां के प्रसिध्द मठों में यह प्रसाद वंदना उपलब्ध होती है. श्री प्रभु की अष्टजया यात्रा की और एक विशेषता है. यवतमाल, अमरावती, वर्धा, वाशिम, नांदेड, अकोला, हिंगोली आदि जिलों के गवली समाज के लोग यहां आकर रिध्दपुर क्षेत्र की 8 दिशाओं में स्थित श्रीप्रभु के 8 तीर्थ स्थानों के दर्शन नंगे पांव तथा बिना रूके एक दिन में उनकी परिक्रमा पूर्ण करते है. परपंरा के अनुसार गवली परिवार का एक-एक सदस्य श्रध्दा के साथ यह परिक्रमा करता है. परपंरा अखंडित रखने के लिए हर वर्ष हजारों की संख्या में नागरिक श्री प्रभु के चरणों मेंं नतमस्तक होते है. इस वर्ष आषाढी एकादशी के दिन हजारों भक्तों ने प्रसाद वंदना का लाभ उठाया.