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प्रदेशों के अनुसार बदलता है स्वाद भी
नागपुर प्रतिनिधि/दि.३१ – खिचडी एक ऐसा पदार्थ है जिसे अनेक मर्तबा विकल्प के तौर पर चुना जाता है. कुछ भी बनाने की इच्छा नहीं है और हलका-फुलका भोजन करना है और बार-बार नहीं कहने पर भी खिचडी पकाई जाती है. विकल्प के तौर पर बनाई गई खिचडी जब थाली में परोसी जाती है तब उसका स्वाद भी बढ जाता है. खिचडी यह वास्तविक रुप से परिपूर्ण आहार है. आम नागरिकों के घर में पकने वाला यह पदार्थ होटलों से लेकर ढाबों में भी अपना स्थान अब पक्का करते जा रहा है. भारतीय संस्कृति में खिचडी यह बेहरिन पदार्थों में से एक है. यदि साधारण भोजन चाहिए अथवा रात्री का भोजन करने के लिए खिचडी एक विकल्प है. खिचडी पाचन क्षमता के लिए हलकी होती है. छोटे बच्चों और बीमार व्यक्तियों के लिए खिचडी बेहतर आहार माना जाता है. आहर शास्त्र की दृष्टि से खिचडी यह बेहतर पदार्थों में से एक है. चावल, मूंग को एक साथ धोने के बाद गरमागरम तेल में जिरा और मोहरी का तडका देना ओर उसमें धोये गये चावल, मूंग को मिलाने और खिचडी पकने तक थोडा सब्र रखने लेकिन जब खिचडी पकने के बाद सब्र रखना कठीन ही साबित होता है. खिचडी पकते समय जब उसकी सुगंध आने लगती है, तो ऐसा लगता है कि कब खिचडी को थाली में लेकर खाया जाये. इसकी आतुरता रहती है. बाफ पर पकने वाली खिचडी में जब घी डाला जाता है, तो उसका स्वाद भी बढ जाता है.
यह खिचडी मूंग दाल से कुछ हद तक सुखी हो जाती है. लेकिन घी डालने के बाद उसका सूखापन कहा जाता है, वह पता ही नहीं चलता. कोई भी ज्यादा मेहनत न करते हुए स्वादिष्ट खिचडी बनाई जा सकती है. विदर्भ, कोकण, मराठवाडा और पश्चिम महाराष्ट्र हो या फिर खानदेश सभी ओर खिचडी बनाने की पद्धत समान ही नजर आती है. फक्र्र बस इतना ही होता है कि, कोई मूंग के बजाय तुअर दाल तो कोई चना दाल का उपयोग करता है. नागपुर के फेमस शेफ विष्णु मनोहर ने दो साल पहले चिटणिस पार्कन में ३ हजार किलो की खिचडी बनाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था. जिसके चलते नागपुर वासियों के लिए खिचडी शान की बात बनी हुई है.