विदर्भ

लोकसभा चुनाव में मेघे परिवार पहली बार अलिप्त

मुख्य कारण क्या?

वर्धा/दि.17– प्रत्येक जिले में राजनीति में कुछ बडे परिवार रहते है. उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहती है. चुनाव अवधि में तो परिवार के ऐसे बडे नेताओं का आशीर्वाद लिया ही जाता है. वर्धा जिले में वरिष्ठ नेता मेघे और उनके परिवार का ऐसा ही रुतबा है. 1998 से दत्ता मेघे जिले की राजनीति में प्रत्यक्ष रुप से शामिल हुए. एनसीपी की स्थापना होने पर उन्होंने ही संगठन के मजबूती की शुरुआत की. लेकिन सफलता नहीं मिली. वे कांग्रेस की तरफ से दो बार सांसद हुए. पश्चात 2014 में जिला कांग्रेस मुक्त करने की घोषणा करते हुए उन्होंने पुत्र सागर और समीर के सहित भाजपा में प्रवेश किया. मोदी के नेतृत्व में वे पहले चुनाव में सागर मेघे भाजपा की विरोध में कांग्रेस की तरफ से खडे रहकर पराजित हुए थे. पश्चात यह परिवार भाजपा में आ गया. अब पार्टी न छोडने की उन्होंने घोषणा की लेकिन राजनीति न करने की बात भी सागर ने कही. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सागर मेघे को चुनाव में मैदान में उतारने का प्रयास वरिष्ठ स्तर पर होता रहते सांसद रामदास तडस द्वारा जातिय समिकरण का दांव सफल रहा और मेघे पीछे पड गए. लेकिन जिले के प्रत्येक चुनाव में दत्ता मेघे के शब्द भाजपा में महत्वपूर्ण माने जाते रहे. अब मेघे परिवार में खामोशी है.

यह पहला चुनाव है जिसमें मेघे परिवार का कोई सदस्य दिखाई नहीं दे र हा है, ऐसा क्यों? ऐसे प्रश्न पर मेघे परिवार के सामाजिक चेहरे के रुप में पहचाने जानेवाले डॉ. उदय मेघे ने कहा कि, सक्रिय उपस्थिति नहीं है, ऐसा कहा नहीं जा सकता. साहेब की हालत ठिक न रहने से घर के बाहर नहीं निकलते. समीर मेघे नागपुर में सक्रिय है. सागर मेघे पूरा समय राजनीति में नहीं है. चार दिन पूर्व रामदास तडस को सावंगी बुलाकर प्रमुख सहयोगियों के साथ चर्चा हुई थी. दत्ता मेघे ने कुछ सूचना भी दी थी. अब आगामी एक-दो दिन में सागर मेघे द्वारा बैठक लेने की संभावना है, ऐसा भी डॉ. उदय ने कहा. लोकसभा चुनाव आया कि, सागर मेघे का नाम संभावित उम्मीदवार के रुप में चर्चा में रहता है. क्योंकी मेघे परिवार के व्यक्ति उम्मीदवार होने पर अनेक बातो से जिले में चुनाव रोमांचक होते रहने का जिले को अनुभव रहा है. अब मेघे के भतीजे डॉ. उदय मेघे का नाम संभावित उम्मीदवार के रुप में चर्चा में आने लगा है. इस कारण जिले की राजनीति में मेघे परिवार का नाम नहीं निकलना यह संभव न रहने का विश्वास सर्वदलित राजनीतिक नेता देते रहते है.

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