विदर्भ

पानी पर तैरने वाले पत्थर हैं लाखों वर्ष पुराने जीवाश्म

धूप, हवा व बारिश के प्रभाव से मिला पत्थर का स्वरुप

* पुरातत्व विशेषज्ञों ने किया खुलासा
नागपुर/दि.10- कुछ दिन पूर्व यहां के अंबाझरी तालाब में पानी पर तैरते पत्थर पाए गए थे. जिसे लेकर अच्छी खासी उत्सुकता पैदा हो गई और कुछ लोग इसे ईश्वरिय चमत्कार की संज्ञा देने लगे. लेकिन भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों का मानना है कि, हकिकत में पत्थर की तरह दिखाई देने वाली यह वस्तु लाखों वर्ष पुराने जीवाश्म हैैं जो इतने वर्षो के दौरान धूप, हवा, बारिश, किचड व मिट्टी सहित मौसम के प्रभाव में आकर पत्थर के स्वरुप में बदल गए हैं. लेकिन भीतर रहनेवाले सूक्ष्म छिद्रों के चलते पत्थर में तबदील हो जाने के बावजूद वे पानी पर तैरते हैं.
इस संदर्भ में पुरातत्व वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत सोनोने ने बताया कि, कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर परिसर से डायनासोर के अंडे बरामद हुए थे, जो पत्थर की तरह ही दिखाई दे रहे थे. इसी तरह कुछ दिनों पूर्व निर्माण कार्य में प्रयुक्त होने वाली ईंटों के भी पानी पर तैरने की जानकारी सामने आयी थी. ईंटों को पकाने के लिए घासफूस और अनाज के भूसे का प्रयोग किया जाता हैं. करीब 1200 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में तपाए जाने के चलते ईंटों में किसी धातु की तरह सख्ती आ जाती हैं, लेकिन कई बार घासफूस व भूसे के अवशेष रहने के चलते ईंटों के भीतर सूक्ष्म छिद्र बन जाते हैैं और कभी-कभी अत्याधिक ताप की वजह से भी ईंटों के भीतर खाली जगह बन जाती हैं जिसके चलते पानी पर तैरती हैं. डॉ. सोनोेने के मुताबिक चंद्रपुर के साथ ही नागपुर के अंबाझरी, सेमिनेरी हिल्स व वायुसेना नगर परिसर में हजारों लाखों साल पहले घना जंगल हुआ करता था. जहां पर आदिमानव का अस्तित्व रहा करता था, यहि वजह है कि इस परिसर में अब तक कई बार आदिमानवों को अवशेष व पत्थर से निर्मित हथियार बरामद हुए हैं. इसमें से अधिकांश अवशेष लंबे समय तक जमीन के नीचे दबे रहने व उपेक्षित पडे रहने के चलते पत्थर के स्वरुप में परिर्वतित हो गए हैं. किंतु पत्थर की तरह दिखाई देने वाले इस जीवाश्मों के भीतर वातावरण के प्रभाव की वजह से सच्छिद्रता यानी कोरोसिटी बन गई हैं. ऐसे में पानी में गिरने के बाद इन जीवाश्मों की घनता कम होती हैैं और वे पानी पर तैरने लगते हैं. डॉ. सोनोने यह दावा भी किया कि, राम सेतु में प्रयुक्त किए गए पत्थर भी इसी तरह के जीवाश्म ही थे.

सेडीमेंटरी रॉक कहा जाता हैं इन्हें
विदर्भ का परिसर दख्खन के पठार क्षेत्र में आता है और यह हिस्सा बेसाल्ट के पत्थरों से बना हुआ हैं. जो करीब डेढ लाख वर्ष पहले ज्वालामुखी से तैयार हुआ था. इसके अलावा इस परिसर में सेडिमेंटरी रॉक भी दिखाई देते हैं. सेडिमेंटरी रॉक यानी पत्थर के स्वरुप में परिर्वतित हो चुके लाखों वर्ष पुराने जीवाश्म भी होते हैं. इस आशय की जानकारी देते हुए डॉ. सोनोने ने स्पष्ट किया कि, सेडिमेंटरी रॉक में कई स्तर होते हैं जो भीतर से पोकल रहने के साथ ही सच्छिद्र भी रहते हैं. रामसेतु में प्रयुक्त किए गए ‘पुमाइस’ पत्थर भी एक तरह से सेडिमेंटरी रॉक का ही प्रकार हैं. जिस तरह राजस्थान के परिसर में मार्बल, संगमरमर कडप्पा व कोटा पत्थर पाए जाते हैं उसी तरह दक्षिण भारत में ग्रेनाइट, मैट्राइट व डोलेराइट जैसे अलग तरह के पत्थर पाए जाते हैं. इन्हीं पत्थरों के साथ ही अलग-अलग इलाकों में सेडिमेंटरी रॉक भी बरामद होते हैं. जो दिखने में तो पत्थर की तरह होते हैं, लेकिन हकिकत में यह पत्थर नहीं, बल्कि लाखों वर्ष पुराने जीवाश्म रहते हैं.

 

Related Articles

Back to top button