बोर प्रकल्प से न सांबर गए और न रानगवे आए
हस्तांतरण का प्रस्ताव धूल खा रहा, तकनीकी दिक्कतों की बाधा

वर्धा /दि.31– देश में सबसे छोटा व्याघ्र प्रकल्प के तौर पर वर्धा जिले के बोर व्याघ्र प्रकल्प की पहचान है. इस अभयारण्य में बाघों सहित तेंदूए, भालू, सांबर एवं अन्य वन्य प्राणियों की मौजूदगी है. साथ ही इस जंगल में भारतीय बायसन यानि रानगवा को लाने हेतु वन विभाग द्वारा हलचले तेज की गई थी. जिससे संबंधित प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया था. परंतु विगत तीन वर्षों से यह प्रस्ताव धूल खाते हुए पडा है.
वन विभाग ने बोर जंगल में बायसन को लाने का प्रयास शुरु करते हुए सन 2022 में इसे लेकर पेंच प्रकल्प को पत्र भेजा था. पेंच में रानगवा की संख्या स्थिर रहने के चलते बोर के जंगल में सांबर के बदले रानगवा लाने का प्रस्ताव पेश किया गया था. परंतु विविध प्रशासकीय एवंं तकनीकी दिक्कतों के चलते यह लेन-देन अधर में लटका रह गया. पर्यावरण विशेषज्ञों एवं वन्यजीव प्रेमियों के मुताबिक बोर जंगल में रानगवा की स्थायी तौर पर उपस्थिति रहने के चलते बाघ एवं अन्य भक्ष्यक प्राणियों हेतु संतुुलित अन्न श्रृंखला निर्माण हो सकती है. जिसके चलते जैव विविधता को गति मिल सकती है और परिसंस्था में स्थिरता आ सकती है.
देश के सबसे छोटे व्याघ्र प्रकल्पों में से एक बोर व्याघ्र प्रकल्प नीतिगत तौर पर पेंच, ताडोबा व मेलघाट जैसे प्रमुख व्याघ्र प्रकल्पों के साथ जुडा हुआ है. ऐसी स्थिति में बायसन के आगमन की वजह से यह परिसर और भी अधिक समृद्ध हो सकता है. जिसके चलते वन विभाग इस दिशा में कब किस तरह से ठोस कदम उठाता है, यह देखना काफी महत्वपूर्ण रहेगा.