सास-ससुर नहीं, पति-पत्नी का संसार चाहिए, कहने वाली पत्नी को खावटी भी नहीं
उच्च न्यायालय का निर्णय ः छल का आरोप साबित नहीं हुआ
नागपुर/दि.23– सास-ससुर के साथ नहीं रहने की बात कहने वाली व पति को सिर्फ दोनों ही साथ रहने के लिए बाध्य करने का प्रयास करने वाली पत्नी को मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने भी खारिज कर दिया. परिवार न्यायालय के पश्चात उच्च न्यायालय ने उसे खावटी के लिए अपात्र ठहराया. न्यायमूर्ति गोविंद सानप ने यह निर्णय दिया.
प्रकरण के दंपत्ति नागपुर निवासी होकर उनका 18 अप्रैल 2018 को विवाह हुआ. विवाह पश्चात पति व सास-ससुर ने बौद्ध धर्म छोड़कर क्रिश्चन धर्म में प्रवेश किया. पत्नी महानुभाव पंथ की अनुयायी है. उसने क्रिश्चन धर्म स्वीकार नहीं किया. जिसके चलते पति व सास-ससुर द्वारा उसका शारीरिक, मानसिक छल किया जा रहा था. उन्होंने उसे घर से बाहर निकाला. परिणामस्वरुप वह मायके चली गई. ऐसा आरोप था. लेकिन यह आरोप सिद्ध नहीं हुआ.
पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में दिए जबाब पर से उसकी पति के खिलाफ कोई शिकायत नहीं, यह दिखाई दिया. वहीं उसे सास-ससुर नहीं चाहिए, यह स्पष्ट हुआ. 2010 में वह 2020 में पति के साथ मायके से वापस आयी थी. छल हुआ होता तो वह ससुराल नहीं आयी होती, वह महानुभाव पंथीय मंदिर में भी जाती थी.
ठोस कारण बगैर अलग हुई
पत्नी किसी भी ठोस कारण बगैर पति से अलग हुई है. पति ने उसे ससुराल वापस लाने का प्रयास किया. लेकिन उसने प्रतिसाद नहीं दिया. पति ने स्वयं पत्नी की देखभाल करना टाला नहीं, इसके लिए उसे खावटी नहीं दी जा सकती, ऐसा मत उच्च न्यायालय ने व्यक्त किया. पारिवारिक न्यायालय ने 9 मई 2014 को पत्नी की मासिक पांच हजार रुपए खावटी की मांग नामंजूर की थी, जिसके चलते उसने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी.