विदर्भ

नागपुर उपविभाग में एक साल में दोगुना हुई बाघों की संख्या

वर्चस्व की लडाई में एक दूसरे पर कर रहे हमला

नागपुर/प्रतिनिधि दि.१४ – बाघों की संख्या बढना एक अच्छा संकेत है किंतु एक चिंता का विषय यह भी है कि बाघ वनक्षेत्र तक ही सीमित न रहकर इंसानी बस्तियों तक भी पहुंच रहे है. नर बाघ वर्चस्व की लडाई में एक दूसरे पर हमला कर रहे है. यह टेरिटोरियल एनिमल है. जब संख्या से अधिक होते है तो अपना क्षेत्र छोडकर दूसरे क्षेत्रों में पहुंच जाते है और वहां उनका सामना दूसरे नर बाघों से होता है. दोनो ही बाघ एक दूसरे को इतना घायल कर देते है कि आखिरकार उनकी मौत हो जाती है.
बाघों की बढती संख्या इन्हें अब इंसानी इलाकों तक लेकर आ रही है. वर्तमान में 28 बाघ नागपुर के उपविभाग में मौजूद है. जबकि पिछले साल मार्च, अप्रैल तक इन बाघों की संख्या 11 थी. इसमें नागपुर, काटोल, रामटेक आदि डिविजनों का समावेश है. विशेषज्ञो की माने तो यह बाघ क्षेत्र की तलाश में शहर तक पहुंच जाते है. इस तरह की स्थिति बनी रहने से इंसान व वन्यजीवों में संघर्ष की स्थिति भी बढने की बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है. वन विभाग अंतर्गत तीन तरह के क्षेत्र आते है जिसमें कोर इलाका, वाइल्डलाइफ व प्रादेशिक क्षेत्र का समावेश है. कोर व वाइल्ड लाइफ में वन्य जीवों की मौजूदगी रहती है जबकि प्रादेशिक क्षेत्र में न के बारबर वन्यजीव रहते है. शाकाहरी वन्यजीव जैसे जंगली खरगोश, हिरण, नीलगाय यहां पाए जा सकते है यह इलाका गांव, सडक आदि से जुडा होता है.

  • फिलहाल ऐसी स्थिति

* नागपुर सब डिवीजन में हिंगणा, खापा व सावनेर प्रादेशिक क्षेत्र आता है. यहां फिलहाल दो से ज्यादा बाघोें की मौजूदगी बतायी जा रही है. यहां बाघ पेंच टाइगर रिर्जव से आते रहते है.
* कोटोल सब डिवीजन में कलमेश्वर व कोंडाली यहां पांच से अधिक बाघ मौजूद है जो बोर टाइगर रिर्जव से आए है.
* उमरेड सब डिवीजन में साउथ उमरेड, नार्थ उमरेड व बूटीबोरी का इलाका आता है. यहां बारा बाघ मौजूद है यह सभी बाघ पवनी व उमरेड तथा करांडला से यहां पहुंचे है.
* रामटेक सब डिवीजन में नौ बाघों की मौजूदगी है. यह बाघ चोर बाहुली, सिल्लारी व खुर्सापार इलाके से यहां आए है.

  • क्षेत्र की तलाश में आते है बाघ

बाघों में क्षेत्र पाने के लिए वर्चस्व की लडाई होती रहती है. जितने वाला बाघ उसी क्षेत्र में रह जाता है जबकि उससे कमजोर बाघ अन्य क्षेत्र की तलाश में बाहर निकल जाता है. प्रादेशिक इलाकों तक पहुंचते-पहुंचते इंसानों के इलाको तक पहुंच जाता है जहां इनका सामना इन्सानों से होता है और वन्यजीव व मानव संघर्ष का कारण बनता है.
– कुंदन हाथे,
सदस्य वन्यजीव सलाहगार मंडल महाराष्ट्र राज्य

Related Articles

Back to top button