विदर्भ

बूढ़े ताडोबा किंग ‘ वाघडोह ’ की मृत्यु

40 शावकों का पिता था टी-38

* उम्र के 17 वें वर्ष में ली आखरी सांस
चंद्रपुर/दि.24- ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के वाघडोह नामक बाघ की वृद्धावस्था के कारण मृत्यु हो गई. सोमवार की सुबह 8 बजे वनविभाग के कर्मचारी गश्त पर रहते समय टी-38 बाघ का मृतदेह सिनाला नर्सरी के पास उन्हें दिखाई दिया. उसकी अनुमानित उम्र 17 से 18 वर्ष थी. वाघडोह का जन्म ताडोबा के जंगल में हुआ था और उसकी मृत्यु भी जंगल में नैसर्गिक रुप से हुई.
जानकारी के अनुसार चंद्रपुर वनविभाग के चंद्रपुर वनपरिक्षेत्र अंतर्गत उपक्षेत्र दुर्गापुर, नियतक्षेत्र दुर्गापुर के सिनाला नर्सरी के पास सोमवार की सुबह करीब 8 बजे वाघडोह टी-38 बाघ मृत पाया गया. वह विगत 10 से 15 दिनों से परिसर में विचरण कर रहा था. वनकर्मी इस पर नजर रखे थे. बाघ की मौत होने की जानकारी मिलने पर वनविभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे. मृत बाघ के सभी अंग व नाखून, दांत, मुंह आदि सभी साबूत थे.
बाघ का प्राथमिक उपचार केंद्र में पशुवैद्यकीय अधिकारी डॉ. खोब्रागडे, डॉ. दामले, डॉ. कुंदन पोडचेलवार ने पोस्टमार्टम किया. इस समय मुख्य वनसंरक्षक प्रकाश लोणकर, विभागीय वन अधिकारी श्वेता बोडू, कोअर क्षेत्र के उपसंचालक काले, इको-प्रो के बंडू धोतरे, एनटीसीए के सदस्य मुकेश भांदककर, सहायक वनसंरक्षक एन.जे.चौरे, आरएफओ आर.डी. घोरुडे व कर्मचारियों की उपस्थिति में बाघ का दहन किया गया. बाघ क नमूने जांच के लिए कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) हैदराबाद में भेजे गए हैं.

ऐसा था वाघडोह
– ताडोबा का वाघडोह का नाले के परिसर में जन्म होने के कारण उसे नाल्ये के नाम पर ही वाघडोह नाम मिला.
– वाघडोह ताडोबा के करीबन 40 शावकों का पिता था, ऐसा बताया गया है.
-बड़े आकार और एक अच्छा पिता होने की वजह से सभी सैलानियों, मार्गदर्शक एवं रिसोर्ट संचालकों के दिल में बसा था. वाघडोह ने अपनी दीर्घ आयु से इतिहास रचा है. इतने वर्ष का होने के बावजूद वह पूर्णतः आत्मनिर्भर था. बाघ की मौत से चंद्रपुर जिले में वन्यजीव प्रेमियों में दुख का माहौल है.

चेहरे पर थे चोट के निशान
बताया जाता है कि वाघडोह के चेहरे पर चोट के निशान थे. इस कारण उसकी अलग पहचान थी. वृद्धावस्था के कारण कुछ वर्ष पहले ताडोबा के अन्य बाघों ने उसे जगह नहीं दी थी. सि कारण वह चंद्रपुर शहर के पास जंगल में विचरण कर रहा था. दो दिन पूर्व ही सिनाला के एक चरवाहे को उसने अपना निवाला बनाया था. शिकार करने की शक्ति नहीं होने के चलते यह बाघ गांव परिसर के मवेशियों का शिकार करता था.

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