विदर्भ

जाति आधारित आरक्षण के विरोध के कारण एट्रॉसीटी नहीं होती

नागपुर हाईकोर्ट का फैसला

नागपुर /दि. 6– जाति आधारित आरक्षण का विरोध किए जाने से एट्रासीटी कानून के तहत अपराध दर्ज नहीं होता, ऐसा मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक प्रकरण के फैसले में स्पष्ट किया. न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फलके ने यह फैसला सुनाया.
मध्य प्रदेश के प्रियमवदा चौधरी ने अपने दोस्त विशाल वाडेकर के साथ वॉटस्ऍप मेजेस के जरिए संवाद करते हुए जाति आधारित आरक्षण का विरोध किया था. उस समय दोनों नागपुर में शिक्षा ले रहे थे. इस कारण विशाल ने अंबाझरी थाने में शिकायत दर्ज की थी. प्रियमवदा व उसके पिता अनूपकुमार के खिलाफ एट्रासीटी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था. साथ ही पुलिस ने विशेष सत्र न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की थी. इस कारण चौधरी पिता-पुत्र ने खुद को आरोप से मुक्त करने के लिए सत्र न्यायालय में अर्जी की थी. यह अर्जी 5 अगस्त 2021 को मंजूर की गई. इस फैसले के खिलाफ विशाल ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने विविध बातों को ध्यान में रखते हुए चौधरी पिता-पुत्र द्वारा कोई भी अपराध न किए जाने की बात स्पष्ट करते हुए विशाल की याचिका खारिज कर दी.
* शिकायत को पांच माह विलंब
चौधरी पिता-पुत्र की तरफ से एड. आर.के. तिवारी ने पक्ष रखते हुए पुलिस थाने में पांच माह देरी से शिकायत दिए जाने और यह शिकायत व्यक्तिगत द्वेष के चलते करने की तरफ ध्यान केंद्रीत किया. साथ ही प्रियमवदा ने सार्वजनिक तौर पर कोई भी आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया. उसने केवल विशाल के साथ बातचीत करते हुए खुद की भूमिका रखी. इस कारण उसकी कृति एट्रासीटी कानून के तहत अपराध साबित नहीं करती, ऐसा भी एड. आर.के. तिवारी ने कहा.

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